बिहार (BIHAR) के मुख्यमंत्री (Chief Minister) नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को किशोरावस्था से ही पाककला में महारत हासिल थी। नीतीश ने खाना पकाना कब और कैसे सीखा यह उनके बड़े भाई सतीश कुमार बताते हैं।

नीतीश कुमार के जीवन पर उनके दोस्तों के हवाले से राजकमल प्रकाशन ने ‘नीतीश कुमार-अंतरंग दोस्तों की नजर से’ नामक एक किताब छापी है, जिसके लेखक उदय कांत है।

गोल रोटी बनाते हैं नीतीश कुमार

नीतीश कुमार को खाना बनाना किशोर उम्र से बहुत पसंद हैं। सामान्यतः रोटी बनाने के श्रम से बचने के लिए पुरुष चावल और रसेदार सब्जी बनाकर काम निपटा देते हैं। लेकिन नीतीश कुमार ऐसा नहीं करते थे। उन्होंने दुखित की माई के नाम से लोकप्रिय एक बूढ़ी महिला से गोल रोटी सीखी। कुछ ही दिनों में वह नरम, गोल, बिना जली और अच्छी तरह पकी रोटी बनाने में निपुण हो गए। इसी प्रकार ही इन्होंने बढ़िया सब्जी और अच्छी दाल बनाने में भी सफलता पाई।

कैसे सीखा खाना बनाना?

भारत का सामाजिक ढांचा ऐसा रहा कि खाना पकाने का काम महिलाओं के हिस्से ही गया है। अब भी इस स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है तो पहले की क्या ही बात करें। यह बात उन दिनों की है जब नीतीश कुमार बख्तियारपुर स्थिति पैतृक आवास महिलाविहीन हो गया था। मां और सबसे छोटी बहन कल्याण बिगहा के लंबे प्रवास पर चली गई थीं। दोनों बड़ी बहनों की शादी हो गई थी और दाम्पत्य जीवन के आरम्भिक काल में उनका मायके आ सकना संभव नहीं था।

ऐसे में घर में बचे थे तीन पुरुष। नीतीश के पिता, नीतीश के बड़े भाई सतीश और खुद नीतीश। सतीश उस दौरा का किस्सा बताते हुए कहते हैं, “बाबूजी को या तो भूख लगती ही नहीं थी या फिर अतिव्यस्तता के कारण उन्हें खाने की सुध ही नहीं रहती होगी। मुझे जैसा भी खाना मिल जाता, मैं उसी से तृप्त हो जाता था। रहे हमारे मुन्ना जी, तो ये बचपन से ही बेहद सफ़ाई पसन्द थे। बाबूजी ने यह सब देख-समझकर ही खाना बनाने के लिए एक अच्छा व्यक्ति नियुक्त कर दिया था।

मुन्ना जी की उच्च स्तरीय अपेक्षाओं के मद्देनजर उसे सफाई की आधारभूत शिक्षा भी दे दी गई थी, लेकिन कभी उसके कपड़ों की गन्दगी तो कभी बढ़े हुए नाखूनों में जमे मैल को लेकर मुन्ना तीसरा विश्वयुद्ध घर में ही प्रारम्भ कर देते। पहले वे मुझसे इस बात के लिए जी भरकर लड़ते कि वह इतना गन्दा क्यों रहता है, मानो इसमें मेरा ही दोष हो! यह सब बकझक हो जाने के बाद उस बेचारे सेवक की जबरन छुट्टी करके मुन्ना स्वयं चौके में भिड़ जाते।” इस तरह नीतीश कुमार ने खाना पकाना शुरू किया और जल्द ही पाककला में निपुण हो गए।

नीतीश को नहीं पसंद चने का दाल

किताब के लेखक से सतीश कुमार बताते हैं कि “पता नहीं क्यों चने की दाल का नाम सुनते ही मुन्ना जी (नीतीश कुमार के घर का नाम) के सर से पांव तक आग लग जाती थी। उनकी यह विचित्र आदत मेरी समझ में अब तक नहीं आई। उनके घर में मौजूद होते हुए वहां चने की दाल चूल्हे पर चढ़ ही नहीं पाती थी।”

सतीश आगे बताते हैं, “चने का मौसम आते ही हमारे परिवार में चने की बहार आ जाती थी। बचपन से ही उन्हें भी चने का साग और हरा चना, चाहे कच्चा हो या पका, चने के बेसन में पकी चने की दाल की ही पकौड़ियाँ और चने का सत्तू भी बेहद प्रिय रहे हैं। उस बड़े से घर में सबको, और मुझे भी, चने की दाल बेहद पसन्द थी। रहे हमारे बाबूजी, तो उनका ध्यान इन बातों पर जाता ही नहीं था। पता नहीं मुन्ना जी को ग़रीब चने की दाल से क्या अदावत थी कि इधर बख्तियारपुर (नीतीश कुमार का पैतृक गांव) वाले रसोईघर में ग़लती से भी चने की दाल चूल्हे पर चढ़ी नहीं कि मुन्ना जी दौड़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरकर नोखेलाल साव की दुकान के अन्दर!” घर में चना दाल बनने पर नीतीश कुमार नोखेलाल हलवाई की दुकान से बालूशाही और गरमागरम कचौड़ी खा आते थे।