बिहार सरकार ने सोमवार (2 अक्टूबर) को जाति जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए। जातिगत सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की आबादी 63% से अधिक हैं। ओबीसी वर्ग को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है।

ऐसी संभावना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातिवार जनगणना के डेटा का उपयोग न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतिक लाभ के लिए कर सकते हैं।

जाति जनगणना की अब तक की यात्रा आसान नहीं थी। जातिवार जनगणना का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू होकर 15 मई को खत्म होना था। लेकिन मई के पहले ही सप्ताह में पटना हाईकोर्ट ने सर्वेक्षण पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि राज्य जाति जनगणना करने में सक्षम नहीं है।

लगभग दो महीने बाद उसी अदालत ने सर्वेक्षण को ‘पूरी तरह वैध’ करार दिया। आइए जानते हैं पटना हाईकोर्ट ने पहले जातिवार जनगणना पर रोक क्यों लगा दी और बाद उसे ही बरकरार क्यों रखा?

धर्मसंख्या (प्रतिशत में)
हिंदू82%
मुस्लिम17.7%
सिख0.01%
ईसाई0.05%
बौद्ध0.08%
जैन0.0016 %
बिहार की कुल जनसंख्या 13,07,25,310 करोड़ है। (सोर्स- बिहार सरकार)

पटना हाईकोर्ट ने क्यों लगाई थी रोक?

जाति सर्वेक्षण को दो महत्वपूर्ण आधारों के तहत चुनौती दी गई थी:

पहला- राज्य के पास इस तरह का सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं थी।

दूसरा- याचिकाकर्ताओं ने सर्वेक्षण का विरोध करते हुए कहा कि जिन लोगों का सर्वेक्षण किया जा रहा है, उनके धर्म, जाति और मासिक आय से संबंधित प्रश्नों के कारण उनकी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

लेकिन बाद में पटना हाईकोर्ट ने ही अपने अंतरिम आदेश (जिसमें सर्वेक्षण पर रोक लगा दी गई थी) में उठाई गई गोपनीयता की चिंता को खारिज कर दिया। अदालत ने बिहार सरकार के जवाबी हलफनामे को स्वीकार करते हुए कहा कि सर्वे के लिए एक फुलप्रूफ तंत्र है जिसमें किसी भी प्रकार के डेटा लीक की कोई संभावना नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि लोग अपनी जानकारी स्वेच्छा से दे रहे हैं। इसका उद्देश्य “पहचान किए गए पिछड़े वर्गों के लिए विकास योजनाएं लाना” है। अदालत ने स्पष्ट किया कि एकत्र किया गया डेटा का इस्तेमाल लोगों पर “टैक्स लगाने, ब्रांडिंग, लेबलिंग या व्यक्तियों या समूहों को बहिष्कृत करने” के लिए नहीं किया जा रहा है।

वर्गसंख्यासंख्या (प्रतिशत में)
अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC)4,70,80,51436.01%
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)3,54,63,93627.12%
अनुसूचित जाति (SC)2,56,89,82019.65%
अनुसूचित जनजाति (ST) 21,99,3611.68%
सवर्ण जातियां2,02,91,67915.52%
किस वर्ग की कितनी आबादी? (सोर्स- बिहार सरकार)

राज्य सरकार नहीं करवा सकती जनगणना?

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि केवल केंद्र सरकार ही ‘जनगणना’ करा सकती है। केंद्र और राज्यों की विधायी शक्तियों का वर्णन संविधान की सातवीं अनुसूची में दी गई तीन सूचियों में विस्तार से मिलता है। संघ सूची की प्रविष्टि 69 में ‘जनगणना’ आयोजित करने की विशेष शक्ति केंद्र के पास है।

इस बीच बिहार सरकार ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 73 में कहा गया है कि केंद्र की शक्ति उन मामलों तक फैली हुई है जिन पर संसद के पास निर्णय लेने का अधिकार है।

राज्य ने यह भी बताया कि समवर्ती सूची की प्रविष्टि 45 में ऐसे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। यह प्रविष्टि संघ सूची की प्रविष्टि 94 के समान है। दोनों समवर्ती सूची की प्रविष्टि 20 के तहत सूचीबद्ध आर्थिक और सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नागरिकों की जानकारी एकत्र की जा सकती है।

अपने अंतिम आदेश में पटना HC ने कहा: “हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं। राज्य के पास जनगणना करने की क्षमता है। राज्य का उद्देश्य ‘न्याय के साथ विकास’ करना है। लोगों पर उनकी जानकारी देने के लिए कोई दबाव नहीं डाला गया है। इस प्रकार व्यक्ति की गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ।”

सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला

पटना हाईकोर्ट द्वारा जातिवार जनगणना से रोक हटाने के बाद मामला दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पहले भी एक बार पहुंचा था, लेकिन तब उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट जाने को कह दिया था। पटना हाईकोर्ट के अंतिम आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी जातिवार जनगणना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अब भी लंबित है।