दिल्ली में जहां मोदी 3.0 की एनडीए सरकार है, वहीं बिहार और आंध्र प्रदेश में भी ‘डबल इंजन की सरकार’ चल रही है। आंध्र की नई एनडीए सरकार के अगुआ चंद्रबाबू नायडू और बिहार की एनडीए सरकार के अगुआ नीतीश कुमार, दिल्ली में 9 जून को बनी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दो प्रमुख सहारे हैं। ये दोनों ही इसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं।
नीतीश को जहां बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा चाहिए, वहीं चंद्रबाबू नायडू को आंध्र के विकास के लिए ढेर सारी परियोजनाएं और पैसे चाहिए। विशेष श्रेणी का दर्जा या विशेष आर्थिक पैकेज की मांग पर प्रधानमंत्री क्या रुख अपनाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। सौदेबाजी और इस पर प्रधानमंत्री का रुख अभी लोकसभा स्पीकर के चुनाव के वक्त भी साफ हो सकता है।
इसका संकेत इस महीने के आखिर तक मिल जाएगा। लेकिन, इन सबसे इतर हम एक नजर बिहार और आंध्र प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर डाल लेते हैं। दोनों राज्य कर्ज के बोझ से दबे हैं। इनके ऊपरजीएसडीपी का करीब एक-तिहाई कर्ज है।
2022-23 में बिहार सरकार का कर्ज राज्य के जीएसडीपी का 39 प्रतिशत था जबकि आंध्र प्रदेश के लिए संशोधित अनुमान (RE) में यह 32.4 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था।
बिहार की बात करें तो 2020-21 के बाद से बिहार राजस्व घाटा झेल रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2023-24 (संशोधित अनुमान) तीन गुना से अधिक बढ़ने का अनुमान है। दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश में पिछले 10 सालों से राजकीय कर्ज जीएसडीपी का कम से कम 28 प्रतिशत बना हुआ है। इसके अलावा, राज्य इनमें से किसी भी वर्ष में सरप्लस रेवेन्यू नहीं जुटा सका।
समृद्धि के मामले में आंध्र प्रदेश बिहार से कहीं आगे
वहीं, अगर प्रति व्यक्ति आय को एक पैरामीटर माना जाए तो समृद्धि के मामले में आंध्र प्रदेश बिहार से कहीं आगे है। पिछले 10 सालों के दौरान इसकी प्रति व्यक्ति आय हमेशा राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है और यह अंतर साल 2014-15 में 8 प्रतिशत से थोड़ा अधिक से बढ़कर 2023-24 में 32 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम
इस पैमाने पर बिहार फिसड्डी रहा है। इन 10 सालों में राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से एक तिहाई या उससे भी कम रही है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2022-23 के दौरान बिहार की प्रति व्यक्ति आय 54,111 रुपये थी, जो 2014 में राष्ट्रीय औसत 86,647 रुपये का सिर्फ 62 प्रतिशत थी।
2019-21 के दौरान बिहार की एक तिहाई आबादी बहुआयामी गरीबी (Multi-Dimensional) में थी, वहीं 2015-16 के दौरान राज्य की 50 प्रतिशत आबादी गरीबी में थी। इस पैरामीटर पर आंध्र ने काफी बेहतर स्कोर किया। 15 नवंबर 2000 को बिहार को विभाजित कर झारखंड बनाया गया और 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश को तेलंगाना से अलग कर दिया गया। यह विभाजन ही आंध्र प्रदेश और बिहार द्वारा विशेष दर्जा या पैकेज की मांग का मुख्य कारण था।
2015-16 | 2019-21 | |
बिहार में गरीबी | 51.89 | 33.76 |
आंध्र प्रदेश में गरीबी | 11.77 | 6.06 |
देशभर में गरीबी | 24.85 | 14.96 |
चंद्रबाबू नायडू के चुनावी वादे आंध्र प्रदेश के राजकोषीय खजाने के लिए चुनौती
विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर आंध्र में सरकार बनाने वाले चंद्र बाबू नायडू ने टीडीपी के चुनावी वादों में बेरोजगार युवाओं और बच्चों को नकद भुगतान, महिलाओं को मुफ्त यात्रा और मुफ्त एलपीजी सिलेंडर देने जैसी कई घोषणाएं कर दी हैं। इन्हें पूरा किया गया तो 60000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। ऐसे में अगर टीडीपी केंद्र सरकार पर दबाव डाल कर राज्य के लिए विशेष पैकेज मंजूर भी करवा ले तो एक बड़ी रकम मुफ्त की घोषणाएं पूरी करने पर खर्च होगी। इस तरह विशेष पैकेज का मकसद और असर फेल होने का खतरा है।
टीडीपी के चुनाव से पहले किए गए वादे
टीडीपी ने चुनावों से पहले कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया, जिसे बाबू सुपर सिक्स कहा गया। इन योजनाओं में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, दीपम योजना के तहत सभी घरों के लिए प्रति वर्ष तीन मुफ्त एलपीजी सिलेंडर, प्रत्येक महिला के लिए 18,000 रुपये की वार्षिक सहायता शामिल है। 18 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के लिए “तल्लिकी वंदनम (मां को सलाम)” योजना के तहत प्रति वर्ष 15,000 रुपये का वार्षिक भत्ता, बेरोजगार युवाओं के लिए 3,000 रुपये प्रति वर्ष और घरों में मुफ्त स्वच्छ पेयजल आपूर्ति।
नायडू सरकार पर पड़ेगा कितना बोझ?
सूत्रों ने कहा कि “सुपर सिक्स” के तहत प्रत्येक योजना का नायडू सरकार पर कितना बोझ पड़ने वाला है, इसका सटीक अनुमान अभी तक नहीं लगाया गया है। चंद्रबाबू नायडू को सरकारी कर्मचारियों के वेतन के लिए आवश्यक 6,000 करोड़ रुपये के अलावा 1 जुलाई तक लगभग 65 लाख लाभार्थियों को सामाजिक पेंशन वितरित करने के लिए 4,500 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।
2024-2025 के लिए राज्य के वोट-ऑन-अकाउंट बजट के अनुसार, कुल प्राप्त राजस्व 2,05,352.19 करोड़ रुपये अनुमानित हैं, जबकि व्यय 2,30,110.41 करोड़ रुपये आंका गया था।

बिहार की विशेष दर्जे की मांग
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र द्वारा राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने की लंबे समय से चली आ रही मांग दोहराई है। ऐसा होने से राज्य को केंद्र से मिलने वाले कर राजस्व की मात्रा में बढ़ोत्तरी होगी। बिहार कैबिनेट ने पिछले साल के अंत में राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था।
क्या है स्पेशल स्टेटस?
विशेष श्रेणी का दर्जा 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों पर पेश किया गया था। इसका मकसद उन राज्यों की मदद करना था जो अपनी भौगोलिक, सामाजिक या आर्थिक मामले में पिछड़े हैं ताकि वे अन्य भारतीय राज्यों के बराबर पहुंच सकें।
पहाड़ी इलाका और बड़ी जनजातीय आबादी जैसे मानदंड किसी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का अधिकार दे सकते हैं। जिस राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया जाता है, वह केंद्र से अधिक धन का दावा करने में सक्षम होगा और विभिन्न कर-संबंधी रियायतों का भी आनंद ले सकता है।
उदाहरण के लिए, विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्य को केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं के मामले में केंद्र से 90% धनराशि प्राप्त होगी, जबकि अन्य राज्यों को केंद्र से लगभग 60% से 80% धनराशि ही प्राप्त होती है।

बिहार विशेष राज्य का दर्जा क्यों मांग रहा है?
बिहार के राजनेता लंबे समय से राज्य के आर्थिक पिछड़ेपन की ओर इशारा करते हुए विशेष श्रेणी का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं। बिहार की प्रति व्यक्ति आय लगभग 60,000 रुपये देश में सबसे कम है और राज्य कई ह्यूमन डेवलपमेंट इंडीकेटर्स में भी राष्ट्रीय औसत से पीछे है।
बिहार सरकार ने पिछले साल अनुमान लगाया था कि विशेष श्रेणी का दर्जा देने से राज्य को 94 लाख करोड़ गरीब परिवारों के कल्याण पर खर्च करने के लिए पांच वर्षों में अतिरिक्त 2.5 लाख करोड़ रुपये प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
2022-23 में, बिहार का सकल घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय औसत 7.2% के मुकाबले 10.6% बढ़ गया, जबकि वास्तविक रूप से इसकी प्रति व्यक्ति आय का स्तर पिछले वर्ष 9.4% बढ़ गया। इसलिए विश्लेषकों का मानना है कि बिहार को अपनी अर्थव्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए केंद्र से अधिक राजकोषीय मदद की नहीं बल्कि मजबूत शासन की जरूरत है।