भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और राम मंदिर आंदोलन के अगुवा रहे लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा। इसकी घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (तीन फरवरी) को की।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में शामिल होने से लेकर भाजपा को भारतीय राजनीति के शीर्ष तक पहुंचने का श्रेय लालकृष्ण आडवाणी को दिया जाता है। उन्होंने अपनी लंबी राजनीतिक पारी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।

अटल-आडवाणी की जोड़ी 1950 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया था। लालकृष्ण आडवाणी शुरुआत में जनसभा आदि को संबोधित करने में झिझकते थे। आडवाणी ने अपनी आत्मकथा ‘माई कंट्री माई लाइफ’ में भी इस बात का जिक्र किया है कि वह सार्वजनिक रूप से बोलने में अपने संकोच करते थे, खासकर जब वह वाजपेयी को धाराप्रवाह बोलते देखते तो और नर्वस हो जाते थे। बावजूद इसके वह भाजपा के जन प्रचारक रहे।

साल 2010 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में आडवाणी ने बोलने के अपने संकोच के मुद्दे पर खुलकर बात की थी। उन्होंने कहा था, “शुरुआती वर्षों में मैं सशंकित था। 1973 में पार्टी सत्र की पूर्व संध्या पर आम लोगों की बैठक बुलाई गई और मुझे इसे संबोधित करने के लिए कहा गया… मुझे आज तक नहीं पता चला कि मैंने लोगों के सामने क्या कहा। मैं बहुत घबरा गया था।”

आडवाणी ने आगे बताया था, “1973 में जब मैं पार्टी का अध्यक्ष बनने वाला था तब भी अटल जी ने मुझे डांटा था। कहा था कि तुम घबराते क्यों हो, संसद में इतना अच्छा बोलते हो। मैंने कहा कि यह संसद में बोलना अलग बात है, वहां श्रोता परिचित होते हैं, संख्या में कम होते हैं।”

इंदिरा गांधी की सलाह

1980 के दशक में पंजाब आतंकवाद की आग में झुलस रहा है। उन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी पंजाब जाने वाले थे। जब दोनों ने अपनी पंजाब यात्रा की बात इंदिरा गांधी को बताई तो उन्होंने आगाह किया। इंदिरा गांधी से अपनी उस मुलाकात को याद करते हुए आडवाणी ने बताया था, “मुझे पहली मुलाकात तो याद नहीं लेकिन मैं उनसे कई बार मिला। उनसे मिलना आसान था। एक दिन किसी कारण से अटलजी और मेरी उनसे मुलाकात हुई और हमने कहा कि हम पंजाब जा रहे हैं। राज्य आतंकवाद से तबाह हो गया था। हमारी पार्टी के कार्यकर्ता मारे गये थे। पंजाब यात्रा के बारे में जानकर उन्होंने कहा कि आप लोग वहां क्यों जा रहे हो, वहां जाना खतरनाक है।”

चुनाव में सुधार चाहते थे आडवाणी, राजीव ने सलाह लेने के लिए कानून मंत्री को घर भेज दिया

प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ पहली ही मुलाकात में आडवाणी ने चुनाव सुधार की बात की थी। आडवाणी ने इंटरव्यू में याद किया था, “जिन विषयों में मेरी रुचि थी उनमें से एक था चुनाव सुधार। मैंने कुछ बातें बताईं और उन्होंने कहा कि वह कानून मंत्री को बताएंगे। बाद में भारद्वाज (कानून मंत्री हंस राज भारद्वाज) मेरे घर आए, उन्होंने मुझे बताया कि राजीव ने उनसे चुनाव सुधार पर मेरे विचारों पर चर्चा करने के लिए कहा था।”

राजीव की तारीफ करते हुए आडवाणी ने आगे कहा, “यह राजीव की शैली थी, हमेशा सौहार्दपूर्ण, गर्मजोशीपूर्ण, सम्मानजनक। जब मेरे पिता का 1985 में गुजरात में निधन हो गया, तब मैं दिल्ली के पंडारा पार्क में रह रहा था। जब मैं अंतिम संस्कार से वापस आया तो राजीव मेरे घर सांत्वना व्यक्त करने आये। उसी बैठक में उन्होंने कहा, मुस्लिम शाहबानो (फैसले) को लेकर गुस्से में हैं। मैंने कहा यह अपेक्षित था। आरिफ (मोहम्मद खान) द्वारा रखा गया सरकार का रुख सही है। मैंने उनसे पूछा, आप क्या सोच रहे हो? उन्होंने कहा, हमें कुछ करना होगा। तभी मुझे एहसास हुआ कि उसके मन में कुछ है।” बाद में राजीव ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में एक कानून लाकर पलट दिया था।

सोनिया गांधी के घर आडवाणी ने मांगी चाय, दी गई कॉपी

राजनीतिक विरोधियों के बीच सौहार्दपूर्णता कम होने के सवाल पर आडवाणी ने याद किया था कि कैसे उन्हें हवाला मामले में ‘झूठा’ फंसाया गया था। आडवाणी ने कहा था, “नरसिंह राव के साथ चीजें अच्छी तरह से शुरू हुईं, लेकिन बाद में बदल गईं। मुझे हवाला मामले में झूठा फंसाए जाने के बाद निश्चित रूप से बुरा लगा। फिर भी मैं उनके इफ्तार में गया। लेकिन मेरी आत्मकथा के विमोचन के लिए कांग्रेस से कोई नहीं आया। जब एक साक्षात्कार में मुझसे इसके बारे में पूछा गया तो मुझे एक विचार आया। मैं और मेरी पत्नी कमला, सोनिया को किताब देने गए, यह एकमात्र मौका था जब मैं उनके घर गया था। वह सौहार्दपूर्ण थी। मैंने चाय मांगी, लेकिन कॉफी आ गई। कमला कॉफी नहीं पीती।”