बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना के अचानक इस्तीफा देने और देश छोड़कर जाने से अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है। पूर्व पीएम हसीना के देश छोड़ने की खबर आते ही हजारों प्रदर्शनकारी उनके आवास में घुस गए और तोड़फोड़-लूटपाट की। वहीं, शेख हसीना लंदन जाने की अपनी योजना के तहत भारत में गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर उतरीं।

इस सबके बीच ढाका में बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां ने कहा है कि एक अंतरिम सरकार कार्यभार संभालने जा रही है और सेना देश में कानून-व्यवस्था बनाए रखने का जिम्मा उठाएगी।

सोमवार (5 अगस्त) को मीडिया को संबोधित करते हुए बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां ने कहा कि देश को चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बनाई जाएगी। उन्होंने लोगों से शांति और व्यवस्था बनाए रखने का आग्रह किया और कहा कि वह जिम्मेदारी ले रहे हैं।

बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति तोड़ते प्रदर्शनकारी

शेख हसीना के देश छोड़कर जाने के बाद जहां हजारों लोग सड़कों पर जश्न मना रहे थे वहीं, प्रदर्शनकारियों को स्वतंत्र बांग्लादेश के जनक, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की विशाल मूर्ति को तोड़ते हुए भी दिखाया गया है। पाकिस्तान से देश की आजादी के ठीक चार साल बाद अगस्त 1975 में सेना द्वारा किए गए तख्तापलट में मुजीब की हत्या कर दी गई थी।

जिसके बाद सेना ने बांग्लादेश में अगले 15 सालों तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति को नियंत्रित किया। आइये देखते हैं पिछले दशकों में बांग्लादेश में सेना की भूमिका क्या रही है और बांग्लादेश की सेना पहले कितनी बार यहां तख्ता पलट कर चुकी है?

1971 का मुक्ति संग्राम

1970 में पाकिस्तान (तत्कालीन पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान) के आम चुनावों में, मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में 162 में से 160 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की पीपीपी ने पश्चिमी पाकिस्तान में 138 में से 81 सीटें जीतीं थीं।

अवामी लीग की जीत के बावजूद पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल याह्या खान जो उस समय मार्शल लॉ के माध्यम से देश पर शासन कर रहे थे, उन्होंने मुजीबुर रहमान को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। इससे पूरे पूर्वी पाकिस्तान में अशांति फैल गई, जहां उर्दू थोपने के खिलाफ बंगाली सांस्कृतिक राष्ट्रवाद द्वारा संचालित एक आंदोलन पहले से ही चल रहा था।

पाकिस्तानी सेना का ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’

7 मार्च, 1971 को मुजीब ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों से बांग्लादेश की आज़ादी के लिए व्यापक संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने का आह्वान किया। जिसके जवाब में पाकिस्तानी सेना ने अपना कुख्यात ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया। यह विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए एक सैन्य अभियान था जिसके कारण बड़े पैमाने पर हत्याएं, अवैध गिरफ्तारियां, बलात्कार और आगजनी का क्रूर अभियान था।

इसके तुरंत बाद पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली सैनिकों ने विद्रोह कर दिया, जिससे बांग्लादेश मुक्ति युद्ध छिड़ गया जिसमें भारत ने हस्तक्षेप किया। इन सैनिकों ने नागरिकों के साथ मिलकर मुक्ति वाहिनी का गठन किया और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध चलाया।

आज़ादी के बाद बंगाली सैनिकों के साथ भेदभाव के कारण सेना के भीतर तनाव

बांग्लादेश को आज़ादी मिलने के बाद मुक्ति वाहिनी के सदस्य बांग्लादेश सेना का हिस्सा बन गए। हालांकि, आज़ादी के बाद के वर्षों में उन बंगाली सैनिकों के साथ भेदभाव के कारण सेना के भीतर तनाव उभरने लगा, जिन्होंने मुक्ति संग्राम की अगुवाई में पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह नहीं किया था।

1975 में हुआ बांग्लादेश में पहला सैन्य तख्तापलट

15 अगस्त 1975 को असंतोष चरम पर पहुंच गया जब मुट्ठी भर युवा सैनिकों ने बंगबंधु और उनकी बेटियों शेख हसीना और शेख रेहाना को छोड़कर उनके पूरे परिवार की ढाका में उनके आवास पर हत्या कर दी।

जिसके बाद बांग्लादेश में पहला सैन्य तख्तापलट हुआ जिसका नेतृत्व मेजर सैयद फारूक रहमान, मेजर खांडेकर अब्दुर रशीद और राजनेता खोंडाकर मुस्ताक अहमद ने किया। जिसके बाद एक नया शासन स्थापित किया गया जिसमें मुस्ताक अहमद राष्ट्रपति बने और मेजर जनरल ज़ियाउर्रहमान को नए सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया।

बांग्लादेश में दूसरा तख्तापलट

नए शासक हालांकि, लंबे समय तक सत्ता में नहीं रहे। 3 नवंबर को ब्रिगेडियर खालिद मोशर्रफ, जिन्हें मुजीब के समर्थक के रूप में देखा जाता था, ने एक और तख्तापलट का नेतृत्व किया और खुद को नया सेना प्रमुख नियुक्त किया। मोशर्रफ ने ज़ियाउर्रहमान को घर में नजरबंद कर दिया क्योंकि उनका मानना ​​था कि बंगबंधु की हत्या के पीछे जियाउर रहमान का हाथ था।

चार दिन बाद हुआ तीसरा तख्तापलट

7 नवंबर को दूसरे तख्तापलट के चार दिन बाद बांग्लादेश में तीसरा तख्तापलट हुआ। इसे वामपंथी सेना के जवानों ने जातीय समाजतांत्रिक दल के वामपंथी राजनेताओं के सहयोग से शुरू किया था। इस घटना को सिपॉय-जनता बिप्लोब (सैनिक और जन क्रांति) के नाम से जाना जाता था। मुशर्रफ़ की हत्या कर दी गई और ज़ियाउर्रहमान राष्ट्रपति बन गए।

ज़ियाउर्रहमान ने 1978 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का गठन किया, जिसने उस साल का आम चुनाव जीता लेकिन 1981 में मेजर जनरल मंज़ूर के नेतृत्व वाली एक विद्रोही सेना इकाई ने उन्हें खुद ही उखाड़ फेंका। विद्रोहियों ने राष्ट्रपति पर उन सैनिकों का पक्ष लेने का आरोप लगाया जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भाग नहीं लिया और जो आजादी के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से आए थे।

जनरल इरशाद का तख्तापलट

24 मार्च, 1982 को तत्कालीन सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद ने भी तख्तापलट कर सत्ता संभाली। उन्होंने राष्ट्रपति अब्दुस सत्तार (बीएनपी) को अपदस्थ किया जो ज़ियाउर्रहमान के उत्तराधिकारी बने थे। जिसके बाद संविधान को निलंबित कर दिया गया और मार्शल लॉ लागू कर दिया।

हुसैन इरशाद ने 1986 में जातीय पार्टी की स्थापना की और 1982 के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में पहले आम चुनाव की अनुमति दी। उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल किया और इरशाद 1990 तक राष्ट्रपति बने रहे। देश में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा।

1991 में लौटा बांग्लादेश में लोकतंत्र

1991 में हालाँकि बांग्लादेश में लोकतंत्र लौट आया लेकिन सेना का हस्तक्षेप नहीं रुका। 2006 में बीएनपी-जमात सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के बाद फिर से राजनीतिक उथल-पुथल मच गई। नए चुनाव होने से पहले आवश्यक कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करने के लिए एक उम्मीदवार को चुनने को लेकर बीएनपी और अवामी लीग के बीच खींचतान चलती रही।

उसी साल अक्टूबर में राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद ने खुद को कार्यवाहक सरकार का नेता घोषित किया और घोषणा की कि चुनाव अगले साल जनवरी में होंगे। हालांकि, 11 जनवरी, 2007 को सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मोईन अहमद ने एक और सैन्य तख्तापलट का नेतृत्व किया, जिससे एक सैन्य समर्थित कार्यवाहक सरकार का गठन हुआ।

अर्थशास्त्री फखरुद्दीन अहमद को सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया जबकि राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद को राष्ट्रपति पद बनाए रखने के लिए मजबूर किया गया। मोईन अहमद ने सेना प्रमुख के रूप में अपना कार्यकाल एक साल बढ़ाया और कार्यवाहक सरकार का शासन दो साल के लिए बढ़ा दिया। दिसंबर में राष्ट्रीय चुनाव होने के बाद 2008 में सैन्य शासन समाप्त हो गया और शेख हसीना सत्ता में आईं।

(Input- Alind Chauhan)