लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बहुजन समाज पार्टी के लिए निराशाजनक रहे। पार्टी लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीत पायी। इतना ही नहीं BSP को इस आम चुनाव में वोट शेयर भी 2019 में मिले 3.7% वोट के मुक़ाबले घटकर 2.04% हो गया। व‍िधानसभा चुनावों में भी बसपा का वोट शेयर 30 से घटते-घटते 13 प्रत‍िशत पर आ गया है। ल‍िहाजा, पार्टी ने एक बार फ‍िर खुद को ज‍िंंदा करने की कोश‍िशें तेज कर दी हैं, ताक‍ि 2027 के उत्‍तर प्रदेश व‍िधानसभा चुनाव में अपनी स्‍थ‍ित‍ि मजबूत कर सके।

पार्टी जहां नए सदस्‍य बनाने की कोश‍िश में है, वहीं सोशल इंजीन‍ियर‍िंंग का अपना पुराना फार्मूला भी बदलने की नीत‍ि पर चलने जा रही है। सदस्‍यों की संख्‍या बढ़ाने के मकसद से पार्टी ने अपनी मेंबरशिप फीस घटा दी है।

हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाने और पार्टी का बेस माने जाने वाले दलित वोटों के छिटकने की खबरों के बीच मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने अपना सदस्यता शुल्क 200 रुपये प्रति व्यक्ति से घटाकर 50 रुपये कर दिया है।

BSP ने घटाई मेंबरशिप फीस

बसपा के सूत्रों ने कहा कि अपने वोट बेस को फिर से हासिल करने के लिए पार्टी ने विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले अपने सदस्यों को बढ़ाने का फैसला किया है। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए मेंबरशिप फीस भी कम कर दी गयी है।

गिरता गया वोट शेयर

विधानसभा चुनावों की बात की जाये तो बीएसपी को साल 2007 के विधानसभा चुनाव में 30.43 प्रतिशत वोट मिले थे। 2022 में पार्टी को उत्तर प्रदेश में मिलने वाले वोट प्रतिशत में जबरदस्त गिरावट आई थी। इस साल बसपा को 12.8% वोट मिले थे।

यूपी चुनाव मे बसपा का वोट शेयर

साल वोट शेयर (%)
2007 व‍िधानसभा चुनाव30.43
2012 व‍िधानसभा चुनाव25.91
2014 लोकसभा चुनाव 19.60
2017 व‍िधानसभा चुनाव22.23
2019 लोकसभा चुनाव 19.43
2022 व‍िधानसभा चुनाव12.8
2024 लोकसभा चुनाव 9.39

PDM के सहारे बसपा

वहीं, 2007 के चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता में आने वाली बहुजन समाज पार्टी अब पीडीएम (पिछड़ा, दलित और मुस्लिमों) के सहारे अपनी नाव पार लगाने की तैयारी कर रही है। बसपा जिला और विधानसभा की कमेटियां भी अगड़ों को छोड़कर पिछड़ों, दलितों और मुस्लिमों को ही तरजीह दे रही हैं। ऐसा में यह माना जा रहा है कि पार्टी 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में इन्हीं जातियों को साथ लेकर आगे बढ़ेगी।

यह दूसरी बार है कि मुसलमानों और दलितों के वोट बैंक समीकरण बनाने की बसपा की कोशिश विफल रही है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उनमें से एक भी जीतने में कामयाब नहीं हुए थे। पार्टी ने उस साल एक ही विधानसभा सीट जीती थी।

बीएसपी का मेन वोट बैंक हैं दलित

दलित, ज्यादातर जाटव बीएसपी का मुख्य समर्थन माने जाते हैं। हालांकि, पूरे यूपी में मुसलमानों को सपा-कांग्रेस गठबंधन के पीछे लामबंद होते देखा जा रहा है, जबकि बसपा का वोट बैंक सिमटता जा रहा है।

पार्टी के वजूद को है खतरा

बीएसपी के लिए आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव करो या मरो का है। बीएसपी का प्रदर्शन पिछले कुछ चुनावों में लगातार खराब रहा है और ऐसे में उसे ‘एम-डी’ यानी मुस्लिम-दलित समुदाय से ही उम्मीद है। अगर इन समुदायों का समर्थन पार्टी को 2027 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में नहीं मिलता है तो निश्चित रूप से पार्टी के लिए अपने वजूद को बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।

एक बार फिर मुस्लिम वोट पाने में नाकाम

वहीं, अगर लोकसभा चुनाव की बात की जाये तो इस बार बसपा ने एक बार फिर दलितों और मुस्लिम वोटों को मिलाकर अपना समर्थन बढ़ाने के लिए यूपी में सबसे अधिक 35 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। गौरतलब है कि राज्य में जहां मुसलमानों की आबादी करीब 20 फीसदी है, वहीं दलित 21 फीसदी हैं।

हालांकि, रुझानों से पता चला कि पार्टी फिर से मुस्लिम वोट हासिल करने में विफल रही और दलित वोटों का एक वर्ग भी बसपा से दूर हुआ है। बसपा के लगभग सभी मुस्लिम उम्मीदवार अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रहे। इस लोकसभा चुनाव में बसपा का खराब प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में आने वाले 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है। ऐसे में मुस्लिमों, दलितों और ओबीसी वोटों का समर्थन हासिल करना बसपा के लिए बड़ी चुनौती होगी।

पिछले तीन दशकों में यह दूसरी बार है जब बसपा ने लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती है। 2014 में भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। बसपा ने 2009 में 21 सीटें, 2004 में 19 सीटें, 1999 में 14 सीटें, 1998 में पांच सीटें और 1996 में 11 सीटें जीती थीं।

भतीजे आकाश आनंद को बनाया नेशनल कोऑर्डिनेटर

वहीं, लोकसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन के कुछ ही समय बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया था और उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित किया था। इससे पहले भी मायावती ने आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया था पर चुनाव से पहले 7 मई 2024 को बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद को हटा दिया था और कहा था कि उन्होंने यह फैसला पार्टी के हित में लिया है और यह तब तक प्रभावी रहेगा जब तक आकाश आनंद पूरी तरह परिपक्व नहीं हो जाते।

नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाए जाने के बाद आकाश आनंद ने लोकसभा चुनाव के बीच में ही प्रचार करना बंद कर दिया था और तब मायावती ने अकेले ही पार्टी के प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था।