उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों आजम खान की रिहाई ने हलचल मचा दी है। जेल से लौटकर उन्होंने अपनी सेहत और भविष्य की योजनाओं पर ध्यान देने की बात कही, लेकिन राजनीतिक गलियारों में उनके रुख और सपा के साथ रिश्तों पर चर्चाएं जारी हैं। वहीं देशभर में जीएसटी कटौती, राज्यसभा चुनाव और बिहार में भ्रष्टाचार के आरोपों ने राजनीतिक चर्चा को और तेज कर दिया है। इस पूरी सियासी परिस्थितियों में पार्टियों और नेताओं की चालें भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेंगी।

आजम का रुख

उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चे आजम खान के हैं। आजम लंबा समय सीतापुर की जेल में बिताने के बाद इसी हफ्ते अपने घर रामपुर लौटे हैं। उनकी जमानत मंजूर होने के बाद चर्चा चली कि उत्तर प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट में ज्यादा विरोध नहीं किया। यह भी कयास लगे कि उन्हें सरकार के साथ हुई ‘डील’ के कारण ही रिहाई मिली है। किसी ने कहा कि वे सपा छोड़ बसपा में जाएंगे। उनके और अखिलेश यादव के बीच अनबन की खबरें भी सुनाई पड़ी। किसी ने फरमाया कि सपा का कोई बड़ा नेता रिहाई के वक्त सीतापुर जेल नहीं पहुंचा। जेल से बाहर आने के बाद आजम खान ने सिर्फ इतना कहा कि वे पहले अपनी सेहत पर ध्यान देंगे।

आजम की मुश्किलें 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद ही शुरू हो गई थीं। प्रदेश की योगी सरकार ने उन पर सौ से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए। पत्नी और विधायक बेटे को भी नहीं छोड़ा। कोरोना में पिता- पुत्र जेल में थे और मौत के मुंह से वापस लौटे थे। जहां तक आजम की राजनीति का सवाल है, शुरू में वे चौधरी चरण सिंह के साथ थे। फिर मुलायम से जुड़े।  कांग्रेस से उनका विरोध रहा। भाजपा ने उन्हें बेहद तंग किया। किसी की अधीनता स्वीकार करने का मिजाज नहीं तो भला मायावती के साथ कैसे निभ सकती है। रूठना-मनाना चलता रहेगा पर रहेंगे सपा में ही। खुद 77 के हैं। अब तो उन्हें बेटे के भविष्य की चिंता है।

कटौती पर श्रेय

ममता बनर्जी अकेली मुख्यमंत्री हैं जो लगातार सवाल उठा रही हैं कि जीएसटी दरों में कटौती का श्रेय अकेले केंद्र सरकार क्यों ले रही है। कोलकाता में ममता ने एक सभा में कहा कि जीएसटी कटौती का फैसला राज्यों ने केंद्र के साथ मिलकर लिया था। इसका सबसे ज्यादा नुकसान भी राज्यों को ही होने वाला है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने भी यह बात उठाई और कहा कि जीएसटी काउंसिल एक संवैधानिक संस्था है। जिसमें राज्यों की भी बराबर की हिस्सेदारी है। यह बात अलग है कि कांग्रेस ने इसे मुद्दा नहीं बनाया। ममता ने खुद कहा कि उनके राज्य को 20 हजार करोड़ का नुकसान होगा। नुकसान की बात झारखंड सरकार के वित्त मंत्री ने भी कही थी। राजस्व घाटे को लेकर चिंतित तेलंगाना के मुख्यमंत्री भी थे। इसके बावजूद गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने जीएसटी कटौती का श्रेय लेने का प्रयास क्यों नहीं किया, यह हैरानी की बात है।

‘सुधार’ पर नहीं मिला समर्थन

सरकार अपने सुधारों पर हर तरफ से मोहर लगवाने की कोशिश कर रही है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अपनी नियमित प्रेस वार्ता को भी इसका जरिया बनाना चाहा। वैष्णव मंत्रिमंडल की बैठक के बारे में पत्रकारों को जानकारी दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से पूछा, ‘क्या 11 वर्षों में सुधार हुए?’ उन्होंने पत्रकारों से अपना हाथ उठाने के लिए कहा। वहां मौजूद कुछ ही पत्रकारों ने हाथ उठाए। इस पर वैष्णव ने कहा, ‘बहुत कंजूस हो यार आप लोग, मीडिया के लोग बहुत कंजूस होते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इतने कानून बदल गए, इतने अनुपालन हट गए लेकिन हाथ उठाने में कंजूसी।’ इस दौरान कुछ पत्रकारों ने बातचीत में कहा कि इस ‘आडियंस पोल’ में सरकार विफल हो गई।

चुनावी गर्मी

जम्मू-कश्मीर की चार और पंजाब की एक राज्य सभा सीट के चुनाव की घोषणा के साथ ही विभिन्न दलों में उम्मीदवारों को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है। जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस तीन उम्मीदवार उतार सकती है। तिकड़म लगाई तो चौथी सीट भी गठबंधन ही जीत सकता है। सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि भाजपा किस पर दांव लगाएगी। इसके साथ ही गुलाम नबी आजाद का क्या होगा। पंजाब की इकलौती सीट के उप चुनाव में अरविंद केजरीवाल खुद उम्मीदवार बनेंगे या किसी और को लाएंगे।

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दिल्ली विधासभा चुनाव में करारी हार के बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि वे राज्यसभा के जरिए संसद का हिस्सा बन सकते हैं। लेकिन जब संजीव अरोड़ा को विधानसभा उप चुनाव लड़ाया था तब तो केजरीवाल ने खुद राज्यसभा जाने से इनकार किया था। लेकिन राजनीति में बयान बदले रहते हैं। केजरीवाल के अलावा मनीष सिसोदिया भी विकल्प हो सकते हैं।

पर चर्चा है कि डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भगवंत मान किसी स्थानीय नेता को राज्यसभा भेजने के पक्ष में हैं। देखना है कि वे अपने रुख पर कामयाब हो पाते हैं या नहीं। रही नेशनल कांफ्रेंस की बात तो फारुक अब्दुल्ला और सज्जाद किचलू के नाम चर्चा में हैं। एक सीट कांग्रेस भी मांग रही है। जम्मू कश्मीर की ये चार सीटें 2021 से ही खाली चल रही हैं। पांच सीटों के चुनाव के साथ ही उच्च सदन की संख्या पूर्ण हो जाएगी।

प्रशांत कर रहे अशांत

प्रशांत किशोर इन दिनों बिहार की सियासत में छाए हैं। नीतीश कुमार के खिलाफ तो कुछ नहीं बोल रहे पर उनकी पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार की कलई खूब खोल रहे हैं। भाजपा के कद्दावर नेताओं के तो हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं। दिलीप जायसवाल, सम्राट चौधरी और मंगल पांडे पर दस्तावेजों के साथ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। जद (एकी) के नेता और बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी पर तो 200 करोड़ की संपत्ति जुटाने का बम फोड़ दिया। चौधरी खुद को नीतीश कुमार का मानस पुत्र बताते हैं।

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पीके के आरोपों पर ये नेता कोई ठोस सफाई नहीं दे पाए हैं। वे अब नीतीश, अमित शाह और नरेंद्र मोदी से सफाई मांग रहे हैं। नीतीश सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार कह रहे हैं। लेकिन चिराग पासवान की सराहना कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता आरके सिंह ने भी उनके आरोपों पर सफाई मांग कर पीके की सत्तारूढ़ गठबंधन की घेरेबंदी की रणनीति को बल दे दिया है। अशोक चौधरी को लेकर भी जद (एकी) के भीतर असंतोष के स्वर उभर रहे हैं।