राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के जितेंद्र आव्हाड ने आम धारणा के विपरीत यह दावा कर विवाद खड़ा कर दिया है कि राम मांसाहारी थे। आव्हाड ने बुधवार को महाराष्ट्र के शिरडी में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “राम हमारे हैं। राम बहुजनों के हैं। शिकार करके खाने वाले राम हमारे हैं, हम बहुजनों के हैं। जब आप लोग हम सभी को शाकाहारी बनाने आते हैं, तो हम राम के आदर्शों पर चलते हैं और हम मटन खाते हैं। यही राम के आदर्श हैं। राम शाकाहारी नहीं थे, वह मांसाहारी थे।”
NCP नेता का यह बयान भाजपा विधायक राम कदम के उस आग्रह के एक बाद आया, जो उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से की थी। भाजपा विधायक ने राज्य सरकार से मांग की है कि 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन वाले दिन शराब और मांस पर एक दिन का प्रतिबंध लगा दिया जाए।
भाजपा विधायक की मांग और एनसीपी नेता के बयान के बाद ये चर्चा आम है कि राम शाकाहारी थे या मांसाहारी? साथ ही हिंदू धर्मशास्त्रों में मांसाहार को लेकर क्या लिखा है?
वाल्मीकि रामायण और मांसाहार
चर्चित नाटककार, निर्देशक और लेखक अभिषेक मजूमदार के द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में वाल्मीकि रामायण के हवाले से यह लिखा गया है कि राम मांसाहारी थे। मजूमदार लिखते हैं, “वाल्मीकि रामायण में वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण द्वारा वन में बिताए गए समय के दौरान एक नदी के किनारे मांस पकाने का वर्णन मिलता है। हालांकि यह वर्णन तुलसीदास की रामायण में नहीं पाया जा सकता।”
मजूमदार आगे लिखते हैं, “यदि हम वाल्मीकि, कम्ब, कृतिवास और तुलसी के संस्करणों को लें, तो उनमें से कम से कम दो आख्यानों में स्पष्ट रूप से राम का जानवरों के मांस से बने व्यंजनों का आनंद लेने का उल्लेख मिलता है। साथ ही सीता द्वारा फर्मेंटेड पेय का सेवन करने का जिक्र मिलता है।”
बता दें कि वाल्मीकि रामायण को ही पहली रामायण भी माना जाता है। पिछले दिनों अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया, जिसका नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर ‘महर्षि वाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट’ रखा गया है। पीएम मोदी ने महर्षि वाल्मीकि के नाम पर हवाई अड्डे का नाम रखने पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा था, “महर्षि वाल्मीकि की रामायण, ज्ञान का मार्ग है जो हमें श्री राम से जोड़ती है।”
खान-पान का इतिहास लिखने वाली प्रोफेसर ने क्या बताया?
नयनजोत लाहिड़ी ने अपनी किताब ‘टाइम पीसेस: ए व्हिसल-स्टॉप टूर ऑफ एंशिएंट इंडिया’ में लिखा है कि वेदों में लगभग पचास जानवरों को बलि के योग्य और संभवतः खाने के योग्य माना गया है। रामायण और महाभारत में मांसाहार का जिक्र है।
वह लिखती हैं, “राम और लक्ष्मण अपने निर्वासन के दौरान जंगल में जानवरों का शिकार किया था। वे सीता द्वारा पकाए गए जंगली जानवर के मांस का आनंद लेते थे।”
नयनजोत लाहिड़ी अशोक विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर हैं। कुछ साल पहले हैचेट इंडिया से उनकी यह किताब प्रकाशित हुई थी। इस किताब में प्राचीन भारत की उन चीजों पर बात हुई है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जैसे खानपान की आदतें।
विवेकानंद की किताब में शास्त्रों के विरोधाभास पर चर्चा
स्वामी विवेकानंद ने अपनी किताब ‘द ईस्ट एंड द वेस्ट’ में भारत और अन्य देशों के खानपान के बारे में बहुत सी बातें लिखी हैं। विवेकानंद अलग-अलग धर्म शास्त्रों पर विचार करते हुए लिखते हैं कि “शास्त्रों को मानने वालों में बड़ा हंगामा है क्योंकि शास्त्र ही विरोधाभासी हैं। एक जगह कहते हैं यज्ञ में जानवरों की आहुति दो, तो दूसरी जगह कहते हैं, जीवित प्राणियों को कभी कष्ट मत दो। हिंदुओं ने तय कर लिया है कि यज्ञ के अलावा अन्य स्थानों पर जानवरों को मारना और खाना पाप है। फिर भी बलि के बाद आप बेधड़क मांस खाते हैं!”
इसी किताब में एक जगह स्वामी विवेकानंद लिखते हैं, “. . . आधुनिक समय के वैष्णव स्वयं को एक कठिन स्थिति में पाते हैं क्योंकि, रामायण और महाभारत की घटनाओं के अनुसार, उनके भगवान राम या कृष्ण मांस खाने और शराब पीने से खुश होते थें! सीता देवी ने तो गंगा में मांस, चावल और शराब के एक हजार जार चढ़ाने की कसम खाई थी!”
राजा दशरथ द्वारा बनवाए मांसाहारी व्यंजनों के वर्णन आकर्षक हैं- मृणाल पांडे
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने ‘द स्क्रॉल’ में भारतीय खानपान की संस्कृति पर एक लंबा लेख लिखा है। अपने लेख में पांडे रामायण के हवाले से बताती हैं कि वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने मांस और सब्जियों के साथ बने चावल का आनंद लिया था। पांडे के मुताबिक, रामायण में इस व्यंजन को मामसंभुतदान कहा गया है।
इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार ने अयोध्या के महल में राजा दशरथ द्वारा बनवाए गए व्यंजनों का भी उल्लेख किया है। वह लिखती हैं, “राजा दशरथ द्वारा बलि दिए गए जानवरों से बने व्यंजनों का वर्णन आकर्षक है। जिक्र है कि मटन, पोर्क, चिकन और मोर के मांस में अम्लीय फलों के रस को मिलाया जाता है और विभिन्न व्यंजनों में लौंग, अजवायन और मसूर दाल को भी मिलाया जाता है।”
हिन्दू गोमांस खाते थे- डीएन झा
इतिहासकार प्रोफेसर द्विजेंद्र नारायण झा (D.N. Jha) और भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर दोनों ने अपनी-अपनी किताब में लिखा है कि प्राचीन भारत में गोमांस खाया जाता था।
बीबीसी की संपादक रूपा झा को दिए एक इंटरव्यू में डीएन झा ने साफ कहा था, “…मज़े की बात ये है कि जो ब्राह्मण वैदिक काल में गाय का मांस खाते थे, उन्होंने ही मुसलमानों की गाय का मांस खाने वालों की छवि गढ़ डाली।” प्रोफेसर झा अपनी किताब ‘द मिथ ऑफ़ होली काउ’ की वजह से बहुत चर्चा में रहे थे। उनकी इस किताब के करीब 30 एडिशन छप चुके हैं।
डॉ. अंडेबकर ने अपनी किताब ‘The Untouchables: Who Were They and Why They Became Untouchables?’ में लिखा है, “एक वक्त था जब ब्राह्मण सबसे अधिक गोमांस खाया करते थे। …ब्राह्मणों का यज्ञ और कुछ नहीं बल्कि गोमांस के लिए धर्म के नाम पर धूमधाम और समारोह के साथ किए गए निर्दोष जानवरों की हत्या थी।”