अयोध्या के राम मंदिर में रामलला (राम का बाल रूप) की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। मंदिर के पहले चरण का काम समय से पूरा करने की जिम्मेदारी निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा के कंधों पर थी। फरवरी 2020 में निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के बाद से नृपेंद्र मिश्रा गत मंगलवार (16 जनवरी) को 54वीं बार अयोध्या पहुंचे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में मिश्रा पीएमओ के प्रधान सचिव थे।  

हनुमान भक्त हैं नृपेंद्र मिश्रा, पहले भी बनवा चुके हैं एक मंदिर

व्यक्तिगत स्तर पर नृपेंद्र मिश्रा एक अत्यंत धार्मिक व्यक्ति और हनुमान के भक्त हैं। अयोध्या का राम मंदिर उनका बनाया पहला मंदिर नहीं है। 1995-96 में उनकी मां ने अपने लखनऊ स्थित घर के कम्पाउंड में एक मंदिर की इच्छा व्यक्त की थी। मिश्रा ने एक छोटा मंदिर बनवाया और मुख्य रूप से हनुमान की मूर्ति स्थापित की। मंदिर में अन्य हिंदू देवताओं – राम, कृष्ण, विष्णु, शिव और गणेश के लिए भी जगह बनाई।

द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मिश्रा बताते हैं कि “हनुमान मेरे इष्ट देवता हैं। राम के परम सेवक हनुमान में मेरी व्यक्तिगत आस्था है। अब आप राम में मेरी धार्मिक आस्था की कल्पना कर सकते हैं।”

अयोध्या से पुराना नाता

मेरठ जिले में जन्मे नृपेंद्र मिश्रा ने केमिस्ट्री में मास्टर किया है। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में टॉपर थे। सिविल सेवा की परीक्षा देने से दो साल पहले उन्होंने मास्टर्स किया था। करियर के मध्य में 1980 में वह मेसन फेलो के रूप में हार्वर्ड गए थे और लोक प्रशासन में मास्टर डिग्री भी हासिल की थी।

मिश्रा 1967 में आईएएस अधिकारी बने। उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर आवंटित किया गया था। प्रधान सचिव (वित्त) के रूप में मिश्रा को राज्य में वित्त विभाग में आमूल-चूल परिवर्तन करने, उत्पाद शुल्क और टैक्स नीतियों को व्यवस्थित करने और राजकोष को कंप्यूटरीकृत करने के लिए जाना जाता है। जिन लोगों ने मिश्रा के साथ काम किया, वे उनकी एक उल्लेखनीय क्षमता की ओर इशारा करते हैं – तेजी से निर्णय लेने की क्षमता। केंद्र सरकार में वाणिज्य विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में उन्हें दर्जनों निर्यात-उन्मुख इकाइयों के प्रस्तावों को “मिनटों में” मंजूरी देने के लिए जाना जाता है।

अयोध्या से मिश्र का जुड़ाव 1980 के दशक से है। तत्कालीन मुख्यमंत्री और जनता दल नेता मुलायम सिंह यादव के प्रधान सचिव के रूप में मिश्रा 30 अक्टूबर, 1990 को कंट्रोल रूम में बैठे थे, जब पुलिस आयुक्त ने उन्हें मंदिर के पास बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठा होने के बारे में फोन किया। हालांकि, स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई और मुलायम सिंह ने पुलिस को कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया। 30 अक्टूबर के अलावा 2 नवंबर को भी फायरिंग हुई, जिसमें कुछ कारसेवकों की मौत हो गई।

मुलायम सिंह से अच्छी बनती थी, लेकिन…

मिश्रा का कहना है कि शुरुआत में उनकी मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के साथ ‘बिल्कुल अच्छी’ बनती थी। लेकिन जब उन्होंने सीएम को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार न करने की सलाह दी, जो 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचने की योजना के साथ रथ यात्रा पर थे, तो उन्हें यह सलाह पसंद नहीं आई।

मिश्रा का तर्क था कि केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार समर्थन के लिए भाजपा पर निर्भर है और आडवाणी को गिरफ्तार करने से भाजपा को समर्थन वापस लेना पड़ सकता है। लेकिन कहा जाता है कि इस सलाह ने “मुलायम सिंह को क्रोधित” कर दिया था। हालांकि आडवाणी के अयोध्या पहुंचने से पहले ही 23 अक्टूबर को उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गिरफ्तार करवा लिया।

कल्याण सिंह ने भी बनाया प्रधान सचिव 

मुलायम सिंह की सरकार जाने के बाद, जब जून 1991 में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने भी मिश्रा को सीएम का प्रधान सचिव बनाए रखा। लेकिन यूपी भाजपा के भीतर के कई लोगों ने आपत्ति जताई। आरएसएस के पांचजन्य के एक लेख में मिश्रा को “सीआईए एजेंट” तक कहा गया, जिससे कल्याण सिंह के लिए मिश्रा को लखनऊ रखना मुश्किल हो गया। अंततः उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस से ठीक एक महीने पहले ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में तैनात कर दिया गया।

UPA सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे

केंद्र में उर्वरक सचिव और दूरसंचार सचिव रहने के बाद, मिश्रा को 2006 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। दूरसंचार नियामक के रूप में अपने तीन साल के कार्यकाल के बाद 2009 में मिश्रा ने “one-person NGO” नामक पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन शुरू किया। फाउंडेशन का मकसद “देश में लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करना” था। इसके अलावा वह अखबारों में लेख भी लिखा करते थे। अप्रैल 2014 में एक अखबार में छपे मिश्रा के लेख ने भाजपा नेतृत्व का ध्यान आकर्षित किया। लेख में मिश्रा ने मोदी का बचाव किया गया था।

भाजपा को जीत मिलते ही गुजरात भवन से आया बुलावा

एक महीने बाद जब भाजपा भारी बहुमत से जीत कर सत्ता में आई तो मिश्रा को गुजरात भवन से बुलावा आया। मिश्रा बताते हैं कि वह शाम 4 बजे के आसपास अपनी कार चला रहे थे, जब उन्हें अरुण जेटली का फोन आया और उन्होंने पूछा कि क्या वह अगली सुबह यानी 20 मई को गुजरात भवन (दिल्ली) आ सकते हैं। उन दिनों प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गुजरात भवन में ही डेरा डाले हुए थे।

एक दिन पहले कल्याण सिंह और मोदी की हुई थी मुलाकात

19 मई को मिश्रा की मोदी से मुलाकात से ठीक एक दिन पहले, भाजपा के वरिष्ठ ओबीसी नेता और यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने मोदी से मुलाकात की। यह शायद महज एक संयोग था। लेकिन यूपी की राजनीति और नौकरशाही पर करीब से नजर रखने वालों के लिए इसका अलग महत्व था।

मोदी मिलने से मिलने और कौन पहुंचा था?

मिश्रा ने 20 मई को गुजरात भवन में जिन लोगों को देखा उनमें अजीत डोभाल (अब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) और कुछ अन्य लोग शामिल थे। उन्हें जल्द ही मोदी से मिलने के लिए अंदर बुलाया गया। मोदी ने मिश्रा से आवास, आजादी के 75वें वर्ष, स्वच्छता, सरकारी विभागों सहित अपनी प्रमुख प्राथमिकताओं के बारे में बात की। अगले तीन से चार दिनों तक मिश्रा ने गुजरात भवन के एक कमरे में बैठकर मोदी की प्राथमिकताओं का खाका तैयार किया।

मोदी ने अध्यादेश ने लाकर बनाया अपना प्रधान सचिव

25 मई, 2014 को आखिरकार मोदी ने उन्हें पीएमओ में प्रधान सचिव की नौकरी की पेशकश की। इस पद के लिए तीन और लोग रेस में थे: के कैलाशनाथ (अब गुजरात के मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव), अनिल बैजल (जो साढ़े पांच साल तक दिल्ली के उपराज्यपाल रहे) और पीके मिश्रा (प्रधानमंत्री के वर्तमान प्रधान सचिव)।

मिश्रा 27 मई को कार्यालय में शामिल हुए, उसी दिन जिस दिन मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था। लेकिन ट्राई अध्यक्ष के रूप में उनके पहले कार्यकाल के कारण उन्हें प्रधान सचिव नियुक्त करने का आदेश औपचारिक रूप से जारी करने में कानूनी बाधा थी। ट्राई अधिनियम विशेष रूप से इसके अध्यक्ष को कार्यकाल के बाद कोई भी सरकारी पद लेने से रोकता है।

जेटली बचाव में आए – उन्होंने कहा कि इस विसंगति को दूर करने के लिए एक अध्यादेश लाया जा सकता है। अध्यादेश एक दिन बाद, 28 मई को आया। औपचारिक नियुक्ति आदेश जारी होने तक मिश्रा अपने कार्यालय में आगंतुकों के सोफे पर बैठते थे। अगले पांच वर्षों में मिश्रा ने नरेंद्र मोदी से घनिष्ठता विकसित की और पीएम का विश्वास हासिल किया।