अयोध्‍या के राम मंद‍िर में रामलला की प्राण प्रत‍िष्‍ठा के बीच ‘राम राज्‍य’ भी चर्चा में आ गया है। नेता भी इसकी चर्चा कर रहे हैं। हालांक‍ि, उनके द्वारा राम राज्‍य का ज‍िक्र पहले भी होता रहा है, लेक‍िन राम मंद‍िर में प्राण प्रत‍िष्‍ठा के माहौल में यह चर्चा तेज हुई। प्राण प्रत‍िष्‍ठा के द‍िन कई हस्‍त‍ियों ने भी इस कार्यक्रम के साथ ‘राम राज्‍य की शुरुआत’ होने तक का दावा कर द‍िया। प्राण प्रत‍िष्‍ठा के बाद अयोध्‍या के राम मंद‍िर पर‍िसर में भाषण देते हुए राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा क‍ि राम राज्‍य आने वाला है। उन्‍होंने तुलसीदास रच‍ित राम चर‍ित मानस के दोहे पढ़ कर राम राज्‍य कैसा हो, यह भी बताया।

प्राण प्रत‍िष्‍ठा से एक द‍िन पहले (21 जनवरी) द‍िल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरव‍िंंद केजरीवाल ने अपनी सरकार के संदर्भ में राम राज्‍य का ज‍िक्र क‍िया। अरव‍िंंद केजरीवाल का कहना था क‍ि वह राम राज्‍य से प्रेरणा लेकर ही द‍िल्‍ली में आम आदमी पार्टी की सरकार चला रहे हैं। सुन‍िए, उनका तर्क:

22 जनवरी को कांग्रेसी आचार्य प्रमोद कृष्‍णम ने राम मंद‍िर में रामलला की प्राण प्रत‍िष्‍ठा को राम राज्‍य की पुनर्स्‍थापना का द‍िन कहा। सुन‍िए उनकी बात:

पीएम नरेंद्र मोदी ने भी की राम राज्‍य की बात

इससे एक सप्‍ताह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महाराष्‍ट्र में एक कार्यक्रम को संबोध‍ित करते हुए अपनी सरकार की तुलना राम राज्‍य से की और कहा क‍ि उनकी सरकार पहले द‍िन से ही राम के आदर्शों के आधार पर काम कर रही है।

नेता अक्‍सर अपने हक में राम राज्‍य की बात करते हुए महात्‍मा गांधी का भी हवाला देते रहे हैं और कहते रहे हैं क‍ि गांधी भी राम राज्‍य चाहते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014 में अयोध्‍या में एक रैली में कहा था, ‘जब लोग महात्‍मा गांधी को पूछा करते थे क‍ि राज कैसा होना चाह‍िए तो महात्‍मा गांधी एक शब्‍द में समझा देते थे क‍ि अगर कल्‍याणकारी राज्‍य की कल्‍पना करनी है तो राम राज्‍य होना चाह‍िए।’ उन्‍होंने राम राज्‍य की बात करते हुए यह भी जोड़ा था क‍ि जहां सब खुशहाल हों, कोई दुखी न रहे।

नेता राम राज्‍य के साथ गांधी का भी लेते रहते हैं नाम

अन्‍य नेता भी अपनी सुव‍िधानुसार ‘राम राज्‍य’ के संदर्भ में गांधी का हवाला देते रहे हैं। लेक‍िन, गांधी की नजर में राम राज्‍य क्‍या था? इसे कई मौकों पर खुद गांधी ने स्‍पष्‍ट क‍िया है। 1929 में ह‍िंद स्‍वराज में उन्‍होंने ल‍िखा- राम राज्‍य से मेरा आशय ह‍िंदू-राज्‍य नहीं है। मेरा आश्‍य दैवी राज, ईश्‍वर की सत्‍ता से है। मेरे ल‍िए राम और रहीम एक ही हैं। मैं क‍िसी भगवान को नहीं मानता, मेरे ल‍िए सत्‍य और न्‍याय ही एक मात्र भगवान है।

राम राज्‍य से गांधी का क्‍या था मतलब?

1929 में ही महात्‍मा गांधी ने यंग इंड‍िया में भी राम राज्‍य के बारे में अपनी राय ल‍िखी। उन्‍होंने ल‍िखा- मेरी कल्‍पना के राम इस धरती पर कभी रहे हों या न रहे हों, राम राज्‍य का पुराना आदर्श न‍ि:संदेह सच्‍चे लोकतंत्र का नमूना है ज‍िसमें सबसे कमजोर नागर‍िक भी ब‍िना क‍िसी खर्चीली प्रक्र‍िया से गुजरे त्‍वर‍ित इंसाफ प्राप्‍त कर सके। यहां तक क‍ि कव‍ि ने राम राज्‍य में कुत्‍ते को भी इंसाफ म‍िलने की बात ल‍िखी है (महर्ष‍ि वाल्‍मी‍िक‍ि रच‍ित रामायण का हवाला)।

1947 में भी महात्‍मा गांधी ने ह‍िंदुत्‍व और राम राज्‍य की चर्चा करते हुए ल‍िखा था क‍ि मेरा ह‍िंदुत्‍व मुझे सभी धर्मों का आदर करना स‍िखाता है। राम राज्‍य का राज भी इसी में न‍िह‍ित है। इससे पहले 1934 में भी उन्‍होंने राम राज्‍य की अपनी अवधारणा के बारे में बताते हुए ल‍िखा था- मेरे सपनों के राम राज्‍य में राजा और रंक के ल‍िए समान अध‍िकार सुन‍िश्‍च‍ित होगा। एक अन्‍य लेख में महात्‍मा गांधी ने यह भी ल‍िखा था- यद‍ि आप राम राज्‍य के रूप में भगवान को देखना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने अंदर झांकना होगा। आपको अपनी कम‍ियां हजार गुना बड़ा करके देखनी होंगी और पड़ोसी की गलत‍ियों पर आंखें बंद कर लेनी होंगी। वास्‍तव‍िक तरक्‍की का यही एक मात्र रास्‍ता है।

तुलसीदास की नजर से देखें कैसा था राम राज्‍य

राम राज्‍य का संदर्भ उस शासन से द‍िया जाता है जो अयोध्‍या का राजा बनने के बाद भगवान राम ने चलाया था। यह शासन कैसा था, इसका वर्णन गोस्‍वामी तुलसी दास ने ‘राम च‍र‍ित मानस’ में भी क‍िया है।

इस संदर्भ में उनका ल‍िखा एक दोहा है:

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती

यान‍ी, राम के राज में किसी को क‍िसी तरह की तकलीफ (न शारीर‍िक, न ईश्‍वरीय और न ही आर्थ‍िक) नहीं थी। जनता में आपसी प्रेम था और वे अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए जीवन बसर करते थे।

अब ऊपर ‘राम राज्‍य’ की जो अवधारणा बताई गई है, उसके मद्देनजर कुछ सच्‍चाइयों पर नजर डाल लेते हैं।

सबसे पहले गरीबी

देश में गरीबी है, इस पर कोई व‍िवाद नहीं है। लेक‍िन, क‍ितने गरीब हैं, इसे लेकर असमंजस है। देश में गरीबों का आंकड़ा 2011-12 में जारी क‍िया गया था। तब बताया गया था क‍ि 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं।

जुलाई 2023 में लोकसभा में सरकार ने एक सांसद के प्रश्‍न के जवाब में भी यही आंकड़ा द‍िया। इस बीच, नीत‍ि आयोग ने र‍िपोर्ट जारी की है। इस ताजा र‍िपोर्ट के मुताब‍िक करीब 25 करोड़ लोग ‘मल्‍टीडायमेंशनल पॉवर्टी’ से बाहर आए हैं। याद रहे, इस दौरान गरीबी मापने का पैमाना भी बदल गया है। उधर, सरकार गरीबों के ल‍िए मुफ्त राशन बांटने की योजना चला रही है। सरकार लगातार इस योजना के लाभार्थ‍ियों की संख्‍या 80 करोड़ से ज्‍यादा बताती रही है।

इंसाफ का हाल

देश में पांच करोड़ से ज्‍यादा लोग अदालतों से इंसाफ पाने का इंतजार कर रहे हैं। द‍िसंबर, 2023 में कानून मंत्री अर्जुन मेघचाल ने बताया था क‍ि एक द‍िसंबर तक देश की अदालतों में 5,08,85,856 केस लंब‍ित थे।

जुलाई 2022 के आंकड़े के ह‍िसाब से 44 फीसदी लोकसभा के 31 प्रत‍िशत राज्‍यसभा के सांसद ऐसे हें, ज‍िनके ख‍िलाफ आपराध‍िक मामले लंब‍ित हैं।

गुजरात दंगों से जुड़े ब‍िलक‍िस बानो केस में ज‍िसे अदालत ने दोषी करार देकर जेल भेजा, उसे सरकार ने र‍िहाई दी। सुप्रीम कोर्ट ने र‍िहाई देने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए उन्‍हें फ‍िर से जेल में रखने का आदेश सुनाया।

जेल में बंद करीब तीन-चौथाई लोग इंसाफ का इंतजार ही कर रहे हैं। 2012 से 2022 के बीच व‍िचाराधीन कैद‍ियों की संख्‍या 66 प्रत‍िशत से बढ़ कर 76 प्रत‍िशत हो गई। इनकी संख्‍या करीब पांच करोड़ है। सबसे ज्‍यादा व‍िचाराधीन कैदी देश की राजधानी द‍िल्‍ली में बंद हैं। द‍िल्‍ली में करीब 90 प्रत‍िशत कैदी व‍िचाराधीन हैं।

सेहत की बात

राष्‍ट्रीय पर‍िवार स्‍वास्‍थ्‍य सर्वे (2019-21) बताता है क‍ि 15 से 49 साल के 25 प्रत‍िशत पुरुष और 57 प्रत‍िशत मह‍िलाएं खून की कमी की समस्‍या (एनीम‍िया) से पीड़‍ित हैं। 6 से 59 महीने उम्र वाले 67.1 फीसदी बच्‍चों में यह समस्‍या थी।

2021 में हुए एक अध्‍ययन के मुताब‍िक भारत में 10.10 करोड़ लोग डायब‍िटीज और 31.5 करोड़ लोग हाई ब्‍लड प्रेशर के मरीज थे।

श‍िशु मृत्‍यु दर (2011 में 42.9) काफी कम होने के बाद भी 25.5 (वर्ष 2021) ही पहुंचा है।

इलाज की सुव‍िधा की हालत यह है क‍ि 834 मरीजों पर एक डॉक्‍टर है। नर्स की बात करें तो प्रत्‍येक 476 लोगों के ल‍िए एक नर्स की उपलब्‍धता है।

अपराध के आंकड़े

दिसंबर 2023 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वार्षिक रिपोर्ट आयी थी, जिसके मुताबिक साल 2022 में संज्ञेय अपराध (Cognisable Offence) के कुल 58,24,946 दर्ज किए गए थे। कुल दर्ज अपराधों में से 35,61,379 भारतीय दंड संहिता के तहत और 22,63,567 विशेष और स्थानीय कानून के तहत दर्ज किए गए थे।

2022 मर्डर के 28,522 FIR दर्ज करवाए गए। इस हिसाब से देश में हर रोज औसत 78 और हर घंटे तीन से अधिक हत्याएं हुईं। 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किए गए। यह 2021 की तुलना में 4% की वृद्धि थी। आईपीसी की धाराओं के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों का सबसे बड़ा हिस्सा ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ (31.4%) के तहत दर्ज किया गया था।

महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले 65743 उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। यह देश के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे अधिक है, साथ ही साल दर साल बढ़ा भी है। (उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध का हाल विस्तार से जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें)

समाज में क‍ितना सौहार्द? क‍ितने हुए दंगे?

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं क‍ि 2014 से 2021 के बीच सांप्रदाय‍िक वजहों से 190 हत्‍याएं हुईं। 2006 से 2013 के दौरान यह आंकड़ा 216 था। 2014 से 2021 के बीच सांप्रदाय‍िक कारणों से सबसे ज्‍यादा 62 लोगों की हत्‍या हुई। उसी साल पूर्वी द‍िल्‍ली में भी भीषण दंगे हुए थे।

अगर साल 2000 से आंकड़ों पर गौर करें तो 2002 में ऐसी हत्‍या सबसे ज्‍यादा (308) हुईं। उस साल अकेले गुजरात में 276 ऐसी हत्‍याएं हुई थीं।

2014 से 2021 के बीच की बात करें तो 2014 में जहां 1227 दंगे हुए थे, वहीं 2021 में इनकी संख्‍या 378 रही। इस बीच 2015 में 789, 2016 में 869, 2017 में 723, 2018 में 512, 2019 में 440 और 2020 में 857 सांप्रदाय‍िक दंगे की घटनाएं दर्ज की गईं।

हाल की बात करें तो मण‍िपुर की घटनाएं सबसे ज्‍यादा दिल दहलाने वाली हैं।