भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को विधि सम्मत माना है। कई याचिकाओं के माध्यम से सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। लेकिन CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से मोदी सरकार के फैसला बरकरार रखा है।
उच्चतम न्यायालय के निर्णय सुनाने से पहले कश्मीरी नेताओं को नजरबंद करने की खबर आयी थी। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने अपने आधिकारिक एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल से लिखा था, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने से पहले ही पुलिस ने पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के घर के दरवाजे सील कर दिए हैं और उन्हें अवैध तरीके से नजरबंद कर दिया है।”
नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक नेता ने दावा किया कि उनके पार्टी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को उनके घर में बंद कर दिया गया है। साथ ही पुलिस ने पत्रकारों को गुपकर स्थित अब्दुल्ला फैमिली के घर के पास इकट्ठा होने की भी अनुमति नहीं दी है। बता दें कि शीतकालीन सत्र की वजह से श्रीनगर से सांसद फारूख अब्दुल्ला दिल्ली में हैं, जबकि उमर कश्मीर घाटी में हैं।
हालांकि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने नजरबंदी या गिरफ्तारी के तमाम दावों को पूरी तरह निराधार बताया है। श्रीनगर पुलिस ने भी अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से लिखा है कि किसी भी व्यक्ति को नजरबंद नहीं किया गया है।
उमर अब्दुल्ला ने मनोज सिन्हा के बयान के साथ अपने दरवाजे पर लगी जंजीर की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है, “डियर एलजी, ये जंजीरें जो मेरे गेट पर लगाई गई हैं, उसे मैंने नहीं लगाया। आप अपने पुलिस बल द्वारा किए गए काम से इनकार क्यों कर रहे हैं। यह भी संभव है कि आपको पता ही न हो कि आपकी पुलिस क्या कर रही है? आप बताइए, इसमें से क्या सही है? क्या आप बेईमान हैं या आपकी पुलिस आपसे स्वतंत्र होकर काम कर रही है?”
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद साथ में नजरबंद किए गए थे उमर और महबूबा
5 अगस्त, 2019 को संसद में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया गया था। हालांकि इसके ऐलान से पहले ही चार अगस्त की रात में जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक के तमाम बड़े विपक्षी नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती को शुरुआत में एक साथ नजरबंद किया गया था। जनसत्ता डॉट कॉम के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में बातचीत के दौरान उमर अब्दुल्ला ने नजरबंदी की आपबीती बयां की थी।
अब्दुल्ला के मुताबिक, 370 हटाए जाने से पहले ही उमर अब्दुल्ला और अन्य नेताओं को घर में ही रहने के लिए कह दिया गया था। पांच अगस्त की सुबह उमर अब्दुल्ला अपने घर की टीवी पर धारा 370 हटाए जाने का ऐलान देखा। इसके बाद उन्हें एक सरकारी मकान में ले जाया गया, जो कभी गुलाम नबी आजाद का आवास हुआ करता था। मकान में पहले से महबूबा मुफ्ती को नजरबंद रखा गया था।
जम्मू-कश्मीर के ये दो पूर्व मुख्यमंत्री नजरबंदी के उस दौर में एक साथ तो थे लेकिन अलग-अलग फ्लोर पर। सुरक्षाकर्मियों ने दोनों को एक दूसरे से बात न करने की स्पष्ट हिदायत दे रखी थी। दोनों टहलने के लिए भी अलग-अलग समय पर निकला करते थे। दोनों की कोई मुलाकात न हो, इसकी पूरी व्यवस्था की गई थी। दो दिन दोनों एक मकान में रहें। इसके बाद महबूबा मुफ्ति को अलग जगह शिफ्ट कर दिया गया। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद मुफ्ती को छह महीने से अधिक समय तक नजरबंद रखा गया था।
न अखबार, न मोबाइल… नजरबंदी के दौरान क्या-क्या झेलना पड़ा?
जनसत्ता से बातचीत के दौरान उमर अब्दुल्ला ने बताया था कि नजरबंदी के दौरान उनके पास न तो मोबाइल था। ना ही न्यूजपेपर पढ़ने को दिया जा रहा था। वह पूरी तरह दुनिया से कटे हुए थे। परिवार से मिलने की इजाजत भी कई सप्ताह बाद मिली। अगर उमर अब्दुल्ला के घर से उनके लिए कुछ सामान भेजा जाता था, तो उसकी पूरी गहनता से जांच की जाती थी।
अब्दुल्ला जब टहलने के लिए निकलते थे, तो उनकी अलमारी को चेक किया जाता था। जब ईद का दिन आया तो उन्हें अपनों के साथ नमाज पढ़ने तक की इजाजत नहीं दी गई थी।