वीर सिंह

“तो इसीलिए हम दोनों की आयु में इतना अंतर हो गया…” शैलजा और सूर्यवीर सूर्योदय का आनंद ले रहे हैं, एक दूसरे के गले में अपनी बाहें डाले।

“हमें समय ने एक दूसरे से बहुत दूर छिटका दिया है, तो क्या! मुझे तो तुमसे जन्मजन्मांतर का प्यार है। पिछले जन्म में तुमने इतना बड़ा त्याग किया, मेरे लिए अपने पिता का साम्राज्य त्याग दिया, इस बार मेरी बारी है।” सूर्यवीर ने शैलजा के बालों में अपनी उंगलियों का स्पर्श देते हुए कहा।”

“मेरी बारी है, इसका अर्थ, प्रिय?” शैलजा ने सूर्यवीर का हाथ चूमते हुए पूछा।

“इस जीवन में भी तुम सृष्टि की सुन्दरतम मानव कृति हो। पिछले जन्म में तुम्हारी सुंदरता से विश्व को परिचित कराया था, इस जन्म में तुम्हें अपार यश दिलाने का प्रयास करूँगा। तुम्हारी शादी उसी से होगी जिसके साथ तुम्हारी सुंदरता का यश फैले।”

“तुमसे अलग रह सकूँ, किसी और की बन जाऊं, यह असंभव है मेरे लिए,” शैलजा का गला भर आया था। “प्यार मेल बे-मेल नहीं देखता। प्यार केवल प्यार होता है, भावनाओं का शुद्धतम रूप! तुम्हारे चित्रों में समाए रहना चाहती हूँ, तुम्हारी कविताओं का रस पीते रहना चाहती हूँ। तुम मेरी आँखों में देखते रहो, मैं तुम्हारी आँखों में डूब जाती हूँ।”

शैलजा ने घनघोर काले बादलों-से उसके आधे चेहरे को ढकते बालों से सूर्यवीर के चेहरे को ढक लिया था। दोनों एक-दूजे की आँखों में खो कर, एक-दूजे के गुनगुने सांसों को पीकर, सपनों के पंख लगाकर उड़ने लगे थे…

घोड़े पर सवार हो इवाना सरपट अपने पिताश्री के साम्राज्य की बाहरी सीमा के पास पहुंच गई थी। दिमित्री उसके काफी पीछे रह गया था। सीमा पर सटे एक जर्जर किले ने इवाना को बरबस ही आकर्षित कर लिया। इवाना मानव-रहित और युद्ध की विभीषिका की कहानी कहते, किले में प्रवेश करती है। उसकी दृष्टि किले की एक समतल-सी दीवार से टकराकर रुक जाती है। दीवार पर एक सुन्दर पेंटिंग को एक चित्रकार अंतिम स्पर्श दे रहा होता है। इवाना को सहसा विश्वास नहीं हो रहा। उसके मन में कई प्रश्न उठते हैं। अपनी आँखों पर विश्वास न करते हुए, उसने चित्रकार को ललकारा, “कौन-हो तुम, और इस किले की दीवार पर मेरा यह चित्र बनाने का साहस तुमने कैसे किया?”

चित्रकार ने इवाना को अनसुना कर दिया और एक अर्धचन्द्राकार-सी मुस्कराहट के साथ बात करने वाली स्त्री की ओर पलटे बिना पेंटिंग को अंतिम रूप देता रहा!

“तुमने सुना नहीं, मेरा यह चित्र बनाने का साहस तुमने कैसे किया?” चित्रकार की अनुत्तरित मुद्रा से इवाना की भृकुटि तन गई थी।

“यह तुम्हारा चित्र नहीं।” चित्रकार ने अपनी मूर्ति को पूर्ण कर लिया था। “मैं तुम्हारा चित्र नहीं बना रहा। इस नील गगन के तले जो सुन्दरतम संभव था, मैं अपनी कलाओं को जागृत कर उसका मूर्तरूप सामने लाना चाहता था। यह एक स्त्री है, जो इस जीव एवं अजीव जगत में सुन्दरतम है।”

इवाना ने तलवार म्यान से बाहर निकाल ली थी। “यह किसी और का नहीं मेरा चित्र है! और तुम्हें एक राजकुमारी का चित्र दुश्मन देश के किले की दीवार पर बनाने के अपराध की सजा मिलेगी।”

जैस कुछ हुआ ही नहीं, जैसे कुछ होने वाला ही नहीं, चित्रकार अमिट-सी मुस्कान ओढ़े इवाना की ओर मुँह करता है और देखते ही उसकी आँखे अविश्वनीय भावों को अपने अंदर समेट लेती हैं। “मेरे कल्पनालोक में कलाओं की शक्ति ने सृष्टि में जिस सुन्दरतम कृति का चित्रकारिता द्वारा अविष्कार किया वह तो यह स्त्री है, जो मेरे सामने है!” वह मन ही मन सोचता है।

चित्रकार राजकुमारी को अपलक देखता रह जाता जाता है। राजकुमारी के हाथ में तलवार अभी उठी थी, पर उसके चेहरे पर क्रोध की लकीरें मिट गईं थीं। इतने में दिमित्री वहां पहुंच गया था। उसने घोड़े से उतर कर अपनी तलवार खींच ली थी और चित्रकार की ओर झपटा था। “राजकुमारी, इसने कोई दुस्साहस किया हो तो इसका सर अभी धड़ से अलग कर देता हूँ।” दिमित्री ने अपनी तलवार म्यान से निकाल ली थी।

“नहीं, छोड़ो इसे अभी।” एक चित्रकार और रचनाधर्मी को पश्चाताप का अवसर देना चाहिए।”

“और हाँ, राजकुमारी इवाना! आपके यशस्वी पिताश्री ने इस किले तक देश की सीमाओं को बढ़ा लिया है। अपनी अग्नि उगलने वाली तोपों से हमने इस किले को खंडहर बना दिया था। इसके बाद तो दुश्मन के सैनिकों ने हथियार डाल दिए थे,” दिमित्री ने राजकुमारी को बताते हुए चिंगारी-भरी आँखों से चित्रकार को कड़ी चेतावनी दे दी थी।

“मेरे विश्व विजयी पिता! अभी तो देखो कितनी दुनियाएं जीत कर अपनी बेटी को उपहार देते हैं मेरे प्यारे पिताश्री!” अपनी भृकुटि तान कर चित्रकार को शाही चेतावनी देकर दिमित्री की सुरक्षा में घोड़े को एड लगा राजकुमारी राजमहल की ओर प्रस्थान कर जाती है, और चित्रकार उसे मूर्ति-सा बना देखता रह जाता है।

इवाना को रात में एक पल भी नींद नहीं आती। उसके मष्तिष्क पटल पर वही चित्र बार बार उभर रहा था जो उसने उस आकर्षक चित्रकार को किले की दीवार पर बनाते देखा था और जो उसका अपना था। उस चित्र का तेज और उस चित्रकार की आँखों से झलकता आत्मविश्वाश का आलोक उसके अंदर कुछ रासायनिक क्रियाएं उत्पन्न कर रहा था। रात के तीसरे पहर ही उसने अपना बिस्तर छोड़ दिया था और अपने घोड़े पर सवार हो राजमहल से निकल पड़ी थी।

घोड़े की चाप से निर्जन रास्तों का सन्नाटा तोड़ती इवाना पौं फटने तक किले के पास पहुँच गयी थी। नंगी तलवार लेकर वह किले की दीवार पर अपनी कलात्मक महिमाओं की गाथा गाते अपने चित्र को निहारने लगती है। अपनी तलवार की मूठ को दोनों हाथों से पकड़ उसकी नोक को धरातल पर टिका अपनी दोनों आँखे बंद कर कहीं अपने आप में खो जाती है। एक गहरी साँस लेकर इवाना फिर अपने चित्र को निहारती है, और पीछे मुड़कर देखती है।

किले की हवाओं में सन्नाटा था। कब तोड़ा गया था किला, कब आग लगाई गई थी इसके कौने-कौने में, लेकिन हवाओं में अब भी एक विचित्र-सी गंध ठैरी हुई है। इवाना के मन में वैचारिक द्वंदताओं का युद्ध चल रहा है: “युद्धों की अग्नि में जर्जर, इस किले की इस दीवार पर इसने मेरा चित्र उकेर कर क्या सन्देश देना चाहा है? हमारे साम्राज्य की सेनाओं ने ही तो इस देश का यह हाल किया है! दुश्मन देश का यह चित्रकार यहाँ सौंदर्य की गाथा लिख रहा है, और वह भी यह कहकर कि यह सृष्टि की सुन्दरतम कृति है! यह चित्रकार कोई पागल है! मेरे विश्वविजयी साम्राज्य को इस सुंदरता की दुहाई देकर चुनौती देने वाला यह चित्रकार मेरे हाथों कैसे बच गया!”

इवाना की आँखे खुली की खुली रह गईं, जब उसने देखा कि वही पागल-सा चित्रकार सामने की दीवार के एक अंधेरे कौन में बैठा अपनी ही चित्र-कृति को अपलक निहार रहा है। “तुम अभी तक यहीं बैठे हो? तुम कौन हो? बेलासरू देश के हो न? जिसका यह किला है? है नहीं, था। हमने इसे कभी का जीत लिया है। हमारी विजय पताकाएँ कहाँ तक लहराएंगी, देखते जाओ अभी!”

चित्रकार ने मुस्कुराते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी। “उधर देखो, राजकुमारी! सूर्य ने अपनी किरणे फैलाकर तुम्हारा स्वागत किया है।” सुबह की गुनगुनी धूप ने इवाना की सुंदरता का सन्देश जैसे चारों दिशाओं में फैला दिया था!

“तुम एक राज्य की राजकुमारी नहीं, सारी सृष्टि की सुंदरता का सारांश हो!” चित्रकार ने अपनी मुस्कराहट के पुष्प बिखेरते हुए कहा।

“तुम अपना नाम बताओगे,” इवाना ने अपनी तलवार की नोक चित्रकार की छाती पर रखकर पूछा।

“इवानोविच”

“अगर मैं न रोकती तो मेरा सुरक्षा सेनानी तुम्हें कल ही मार डालता।”

“जानता हूँ। लेकिन तुम मुझे नहीं मरने दोगी।”

“नहीं मरने दोगी? इतना आत्मविश्वास?! मैं तुम्हें राजकुमारी का चित्र बनाने के अपराध में स्वयं ही मार डालूंगी।”

“तुम्हारी सुंदरता में सृष्टि की व्यूह रचना में जरा-सी भी कमी रह जाती, तो मुझे तुम अब तक मार डालती।”

“मैं तुम्हारे दोनों हाथ काट डालूंगी, इवानोविच” इवाना का क्रोध चरम पर था। उसकी बिखरी लटों ने उसके माथे को ढक लिया था।

“स्वीकार है, राजकुमारी।” इवानोविच ने अपने हाथ फैलाकर ऑंखें बंद कर लीं।

राजकुमारी ने एक बार मुड़कर अपने चित्र की ओर देखा और फिर तलवार की नोक इवानोविच के माथे पर रख दी! “तुम्हें मेरे पिता के साम्राज्य से डर नहीं लगता?”

उत्तर इवानोविच की मुस्कराहट में छिपा था।

राजकुमारी ने अपनी तलवार फेंक दी और इवानोविच से लिपट गई। “तुम यहाँ क्यों आए? मेरे हाथ क्यों थम गए? तुमने मेरा यह चित्र किले की दीवार पर नहीं, मेरे हृदयस्थल पर उकेरा है, इवानोविच।”

“यह आपका चित्र नहीं है राजकुमारी!”

“तुम झूठ भी बोलते हो? एक सृजनशीलता से ओत प्रोत कोई व्यक्ति सत्य के साथ अडिग रहता है। मैंने तुम्हें क्षमादान दे दिया है, सच बताओ, मेरा चित्र तुमने क्यों बनाया?

“मैं फिर कहता हूँ, राजकुमारी…”

“राजकुमारी नहीं, इवाना कहो मुझे। राजकुमारी मैं अपने साम्राज्य में हूँ। यहाँ मैं प्रकृति के अद्वितीय चितेरे इवानोविच के सौंदर्य-साम्राज्य में हूँ।”

“इवाना, यह तुम्हारा चित्र नहीं है। गैया देवी का मुझे आशीर्वाद प्राप्त है। मैंने सारी तांत्रिक शक्तियों को जोड़ कर एक सनातन सत्य की खोज करने वाली कलाओं की शक्ति पैदा की है। उसी कला-शक्ति से मुझे प्रेरणा मिली कि इस सृष्ष्टि की सुन्दरतम कृति का चित्र बना सकूँ। मैंने युद्ध में खंडहर हुए इस किले की दीवार पर यह चित्र बनाया ताकि यह शांति का एक सन्देश दे सके।”

“लेकिन यह चित्र तो मेरा है, प्रिय इवानोविच!”

“अभी मेरी बात पूरी तो हो जाने दो, सुंदरी इवाना।”

“हां बोलो, इवानोविच।”

“जब यह चित्र बनकर तैयार हुआ उसी समय आप प्रकट हो गईं, देवी इवाना।” यह चित्र मैंने आपका समझ कर नहीं बनाया. मैंने आपको कभी देखा भी नहीं था। हाँ, आपकी सुंदरता की कहानियां बहुत सुनी हैं।”

“आगे सुनाओ, इवानोविच, प्रिय!” राजकुमारी इवानोविच को “प्रिय” कह रही है, यह सोचकर उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

“सुन्दरतम की कला ने अंततोगत्वा तुम्हारा रूप ले लिया।”

“इसका अर्थ क्या हुआ, दार्शनिक इवानोविच?”

“प्रकृति की सारी शक्तियों का उत्तर है यह, राजकुमारी इवाना… कि वह सुन्दरतम कृति आप ही हो!”

राजकुमारी थोड़ी देर के लिए कहीं अपने अंदर ही खो जाती है। वह वापस सामान्य मुद्रा में लौटकर, इवानोविच को गले लगाकर कहती है, “तुम यहाँ से कहीं भाग जाओ। मेरे सुरक्षा सैनिक दिमित्री ने अब तक राजमहल में मेरे न मिलने की सूचना फैला दी होगी। किसी ने देख लिया तो तुम्हारा जीवन खतरे में पड़ जायेगा।”

राजकुमारी का घोड़ा सीधे राजमहल में आकर रुकता है। तब तक महल में राजकुमारी के अनुपस्थित होने की सूचना आग की तरह फ़ैल गई थी। दिमित्री द्वारपालों को दण्डित करने पर उतारू था कि उन्होंने राजकुमारी को बिना उसके साथ हुए क्यों जाने दिया। राजकुमारी से दिमित्री पूछता है तो वह उसे सीधे डांटते हुए कहती है कि अपने पिता के साम्राज्य में वह कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र है। वह सीधे अपने कक्ष में चली जाती है।

अगले दिन ठीक पौं फटने से पूर्व इवाना फिर घोड़े पर सवार होकर किले पर पहुँच जाती है। इसी बीच द्वारपाल राजकुमारी के महल के बाहर जाने की सूचना दिमित्री को पहुंचा देते हैं।

किले में वह अपने चित्र के सामने इवानोविच को आध्यात्मिक मुद्रा में बैठा पाती है।

“राजकुमारी का स्वागत है,” इवानोविच अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है।

“मुझे पता था राजकुमार इवानोविच कि तुम यहाँ से डर कर जाने वाले नहीं। तुम जैसे रचनाधर्मी, चित्रकार, और दार्शनिक बहुत जिद्दी स्वाभाव के और निडर होते हैं।”

“ये आपने मुझे राजकुमार क्यों कहा, राजकुमारी?”

“आपने नहीं, तुमने कहो। मैं तुम्हें राजकुमार भी कहूँगी, और राजा भी!”

इतना उपहास मत उड़ाओ, प्रिय इवाना। मैं फक्कड़ और दार्शनिक ही भला। राजाओं और राजकुमारों वाले सपने तुम्हारे पिता के साम्राज्य के गुलाम हम जैसे लोग नहीं देख सकते।”

“प्रिय इवाना.. बहुत अच्छा लगा तुम्हारे मुख से, प्रिय इवानोविच। मैं सच कह रही हूँ। मैं यहाँ अपने पिता के साम्राज्य में नहीं, अपने प्रेमी राजा इवानोविच के कला साम्राज्य बेलासरु में आई हूँ।”

“पहेलियाँ मत बुझाओ, इवाना।”

“पहेलियाँ नहीं बुझा रही हूँ, इवानोविच। मेरे पिता कुछ ही दिन में युद्ध से लौटने वाले हैं। उनसे आते ही बेलासरु की स्वतंत्रता और तुम्हें राजा घोषित करने का आग्रह करुँगी। मुझसे इतना प्रेम करते हैं मेरे पिताश्री कि वे मेरी किसी भी बात को नहीं टालते।”

“मुझे राजा बनने की कोई इच्छा नहीं, मेरा राज्य स्वतंत्र हो जाए, तो यह यहाँ के लोगों के लिए सबसे बड़ा उपहार होगा।”

“तुम सोविनासंघ के राजकुमार भी बनोगे, क्यों कि तुम्हारा विवाह वहां की राजकुमारी से होगा।”

“पर…”

“पर वर कुछ नहीं, यह मेरा आग्रह है। कला और सुंदरता एक साथ मिल जायेंगे तो जग में शांति होगी। क्या तुम नहीं चाहोगे कि युद्ध, हिंसा और असुन्दरता से त्रस्त इस जगत में शांति, अहिंसा और सुंदरता का वास हो?” राजकुमारी इवाना इवानोविच के माथे पर एक चुम्बन अंकित कर देती है।

इवाना और इवानोविच सृष्टि की सुंदरता के सारांश को प्रदर्शित करते चित्र के सामने बैठे घंटों तक बतियाते हैं। गुनगुनी धूप में उनका प्यार परिपक्व हो रहा होता है।

“मेरी कल्पनाओं की सुंदरता एक दिन अपने मूल रूप में मुझे दर्शन देगी, ऐसी कल्पना तो मैंने कभी नहीं की थी,” इवानोविच ने राजकुमारी की आँखों में झाकते हुए कहा।”

“कल्पनाएं भी अपनी परिधियाँ तोड़ देती हैं, अगर आप किसी को हृदय की गहराईयों से प्रेम करते हैं,” यह कहते इवाना अपने अनन्य प्रेमी की आँखों में डूब गई थी।

“रहस्य-रसों से भरी हैं, तुम्हारी आँखें!” इवानोविच इवाना की आँखों में खोकर गुनगुनाने लगता है:

तुम्हारी खूबसूरत आँखों से मंत्रमुग्ध
और मधुरतम अनुभूतियों से सराबोर,
मुझे देखकर
चंद्रमा लिखता है एक कविता
तुम्हारी जादुई आँखों पर।
एक अद्भुत दीप्ति से दीप्त,
और आत्मविश्वास से भरी.
तुम्हारी आँखे हैं ऐश्वर्य
प्राकृतिक विकास का।
जिनका करता रहा हूँ मैं आविष्कार
जन्म-जन्मान्तरों से
अनंत रहस्यों को छुपाए
ब्रह्माण्ड के सभी आश्चर्यों की गठरी खोलतीं
ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा आश्चर्य हैं
तुम्हारी आंखें।
तुम्हारी आँखों की सुंदरता को
नहीं किया जा सकता परिभाषित
क्यों कि स्वयं ब्रह्माण्ड की सारी सुंदरताओं को
परिभाषित करती हैं
तुम्हारी ऑंखें!

आकाश में उड़ते पक्षियों के कलरव ने दिन ढलने का संकेत दिया। कल फिर उसी समय किले पर आने का और सारे दिन इवानोविच के साथ रहने का वचन देकर, इवाना राजमहल की ओर प्रस्थान करती है जहाँ पहुंचते उसे आज अँधेरा हो जाता है।

अगला दिन…। इवाना इवानोविच की गोद में सर रखकर लेटी हुई है। इवानोविच उसके बालों में उँगलियाँ चला रहा है। वायु के झोंके पर्यावरण में दोनों के प्यार की सुरभि फैला रहे हैं। सूर्य की किरणें दोनों को नहला रही हैं। पेड़-पौधे, जीव-जंतु सब मानो उनके निष्काम प्रेम के साक्षी बन रहे हैं! वृक्षों के क्षत्रकों से टकरा कर हवाएं संगीत में परिवर्तित हो रही हैं।

नीले गगन के नीचे एक अद्भुतम घटना हो रही थी। कैसे अब विश्व में शांति होगी, कैसे कलाओं और सुंदरताओं का संगम विश्व में प्रफुल्लताओँ का स्पंदन पैदा करेगा, और कैसे सनातन संस्कृति से गूंजेगा ब्रह्माण्ड—प्रेम-मग्न इवाना और इवानोविच बातें किये जा रहे थे और आने वाले सभी समयों के लिए नए सपने बुन रहे थे।

तभी घोड़ों की छापों के साथ कोलाहल होता है. दिमित्री अपने सैनिकों के साथ वहां पहुँच जाता है। जो पहले दिन उसने नहीं देखा था आज देख लेता है – राजकुमारी का वह चित्र!

“राजकुमारी, महाराज युद्ध जीत कर लौट आये हैं! तुम्हे तुरंत राजमहल में उपस्थित होने का आदेश दिया है,” दिमित्री अपनी कुटिल-आवाज में एक दृष्टि दीवार पर बने राजकुमारी के चित्र पर डालते हुए कहता है।

राजकुमारी के चेहरे पर क्रोध और प्रसन्नता का मिश्रण है। “देखो इवानोविच, पिताश्री लौट आए हैं। मैं आज ही उनको तुम्हारा परिचय देती हूँ। कल सुबह मैं फिर तुमसे मिलने आ रही हूँ।”

दिमित्री सैनिकों को आदेश देता है कि वे उस नवयुवक को हिरासत में ले लें, क्यों कि उससे राजकुमारी की सुरक्षा को खतरा है।

“वह युवक इवानोविच है, सोविनासंघ देश का होने वाला राजकुमार, और बेलासरु का राजा! उसको हाथ भी लगाया तो तुम सबको दण्डित किया जाएगा,” राजकुमारी के क्रोध की अग्नि ने इवानोविच की ओर बढ़ते सैनिकों को पीछे हटा दिया। “हम सभी इस समय बेलासरु की सीमा में हैं, इसलिए सभी राजा इवानोविच से क्षमा याचना करें,” राजकुमारी ने दिमित्री और सैनिकों को आदेश दिया। इवानोविच से क्षमायाचना के बाद सभी राजभवन की ओर लौट गए।

इवाना के लिए आज का दिन सबसे विशेष था। आज दुल्हन-सी सजधज कर वह घोड़े पर सवार हुई थी, अपने प्रेमी और सोविनासंघ देश के होने वाले राजकुमार से मिलने के लिए। पिताश्री महाराज का आशीर्वाद मिल गया था। उसकी पीठ पर राजमहल के पकवान बंधे थे, अपने राजकुमार को आज पहली बार राजमहल का भोजन खिलाने के लिए।

सूर्य के क्षितिज से ऊपर चढ़ने से पहले इवाना अपने प्रेमी के पास पहुँच गई थी। हवाएं तेज थीं, सर्द थीं। एक दुल्हन के वेश में घोड़े से उतर कर तेजी से सन्नाटे को चीरती उसकी आवाज गूंजी: “इवानोविच, सोविनासंघ देश के राजकुमार, तुम कहाँ हो? पिताश्री ने तुम्हें बुलाया है। मैं तुम्हें लेने आई हूँ।”

एक फुर्तीली चीते-सी चाल से वह उसके चित्र ने नीचे दीवार से सटे तपस्या-सी मुद्रा में बैठे इवानोविच के पास पहुँचती है।

“देखो प्रिय इवानोविच, मैं तुम्हारे लिए क्या लाइ हूँ! पहले भोजन करो! आज पिताश्री ने तुम्हें राजमहल में बुलाया है!”

“क्यों क्या हुआ, मेरे प्रिय?! तुम बोल क्यों नहीं रहे? आज मैं कितनी प्रफुल्लित हूँ! तुम्हें इतना प्यार दूंगी, जितना किसी ने किसी को आज तक न दिया होगा! हम दोनों मिलकर एक नया विश्व बनाएगे, और वह हमारे बच्चों के लिए हमारा अनुपम उपहार होगा!”

इवाना ने इवानोविच हो हाथ से छुआ और उसका शरीर एक ओर लुढ़क गया। उसके शरीर में तलवारों के वार हुए थे और धरातल पर लहू फैला हुआ था।”

दुल्हन के भेष में इवाना बेहोश होकर अपने अमर प्रेमी के ऊपर पसर गई थी!

किले की जीर्ण-क्षीण दीवारों पर बैठा पंछियों का झुण्ड आसमान की ओर उड़ गया था, अपने पंखों की सरसराहट के साथ!

20 वर्ष बाद…

राजमहल की दासियाँ: “अरे बेचारी पगली को आज जंजीरों में बांध कर कोठरी में डाल दिया! प्रतिदिन सुबह सुबह किले की ओर भाग जाती थी! यह सब दिमित्री दानव का खेल था। सेनापति का बिगड़ैल लाडला है, स्वयं सोविनासंघ देश का राजकुमार बनना चाहता था। उसके प्रेमी को मार कर राजा से कह दिया था कि वह राजकुमारी पर हमला करने वाला था और राजकुमारी की जान बचाने के लिए उसने उसे मार दिया। अपने पिता को सच्चाई बता पाती, उससे पहले ही राजकुमारी पागल हो गई, बेचारी! कितना सच्चा प्यार रहा होगा दोनों में!”

घोड़ों की चापों के बीच दिमित्री की राक्षसी दहाड़ से शैलजा और सूर्यवीर अपने सपने की दुनिया के बंधन तोड़ बाहर आ जाते हैं, सहमे-सहमे से, डरे-डरे से।

“मेरी इवाना!”…
“मेरे इवानोविच!”…

शैलजा और सूर्यवीर आलिंगनबद्ध हो गए थे।

शैलजा की आँख से एक आंसू टपकने ही वाला होता है कि सूर्यवीर अपनी जिव्हा से उसे अपने अंदर ले लेता है। शैलजा के चेहरे पर सूर्य का तेज झलकने लगता है और सूर्यवीर उसके सौंदर्य पर गर्व से भर जाता है।