‘मोदी सरनेम’ मामले में सूरत की ट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी। कांग्रेस नेता ने सेशन कोर्ट में एक याचिका दायर कर अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की अपील की थी। लेकिन सेशन कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी है। यानी उनकी सजा बरकरार रहेगी।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा ने राहुल गांधी की याचिका पर गुरुवार (13 अप्रैल, 2023) को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि राहुल गांधी ने कर्टनाट में एक चुनावी रैली के दौरान कहा था, “सभी चोरों का समान उपमान मोदी ही कैसे है?”

राहुल गांधी की सांसदी इस केस के फैसले पर ही न‍िर्भर है। इसल‍िए जहां इस केस पर पूरे देश की नजर है, वहीं इससे जुड़े वकील और जज भी सुर्ख‍ियों में आ गए हैं। तो जानते हैं, राहुल गांधी की अपील पर फैसला सुनाने वाले जज मोगेरा की प्रोफाइल:

रॉबिन पॉल मोगेरा गुजरात के नामी और काब‍िल वकील थे। उनके क्‍लायंट्स में अम‍ित शाह जैसे हाई प्रोफाइल नाम शुमार थे। गुजरात हाईकोर्ट की ओर से 28 द‍िसंबर, 2017 को जारी एक नोट‍िफ‍िकेशन के मुताब‍िक उनका चयन ज‍िला जज के ल‍िए क‍िया गया था। वकीलों के ल‍िए न‍िर्धार‍ित 25 प्रत‍िशत कोटा के तहत उनका चयन हुआ था। इसके ल‍िए दी गई परीक्षा में उन्‍होंने 250 में से 147.33 अंक हास‍िल कर टॉप क‍िया था।

अमित शाह जैसे हाई प्रोफाइल लोग थे रॉबिन मोगेरा के क्‍लायंट

इंड‍ियन एक्‍सप्रेस की 26 जून, 2014 की एक रिपोर्ट के मुताब‍िक, रॉब‍िन पॉल मोगेरा ने सीबीआई कोर्ट में अम‍ित शाह का मुकदमा लड़ा था। यह मुकदमा साल 2006 के तुलसीराम प्रजापत‍ि के कथ‍ित फर्जी मुठभेड़ का था। यह मुकदमा स्‍पेशल सीबीआई जज जेटी उत्‍पट की अदालत में था, जहां मोगेरा ने अम‍ित शाह की पैरवी की थी।

तुलसीराम प्रजापति का एनकाउंटर दिसंबर 2006 में हुआ था। प्रजापति 2005 में हुए सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर के चश्मदीद थे। इन दोनों एनकाउंटर के वक्त गुजरात के गृह राज्य मंत्री अमित शाह थे।

रॉब‍िन मोगेरा ने गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार के आरोपी का भी लड़ा था मुकदमा

न्यूज एजेंसी एएनआई की 26 अप्रैल, 2011 की एक खबर से पता चलता है कि रॉबिन मोगेरा ने गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार के आरोपी का भी मुकदमा लड़ा था। गुजरात दंगे के दौरान भीड़ ने 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला किया था। 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी में एक पारसी परिवार के अलावा सिर्फ मुस्लिम परिवार ही रहते थे।

इस घटना में कांग्रेस के एक पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत करीब 35 लोग जिंदा जल गए थे। इस नरसंहार में जान गंवाने वाले लोगों की कुल संख्या 69 बताई जाती है। इस मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगा था, हालांकि एसआईटी की रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दिया गया था।

2014 में अम‍ित शाह के लिए व्‍यक्‍त‍िगत पेशी से मांगी थी छूट

26 जून, 2014 को इंड‍ियन एक्‍सप्रेस में छपी र‍िपोर्ट के मुताब‍िक 20 जून (2014) को मोगेरा ने जज उत्‍पट की अदालत से गुहार लगाई थी क‍ि अम‍ित शाह को सशरीर कोर्ट में हाज‍िर होने से छूट दी जाए। मोगेरा ने दलील दी थी क‍ि शाह द‍िल्‍ली में राजनीत‍िक कामों में व्‍यस्‍तता के चलते हाज‍िर होने में असमर्थ हैं। जज उत्‍पट ने शाह के वकीलों से कहा था क‍ि आप हर बार ब‍िना कोई ठोस वजह बताए व्‍यक्‍त‍िगत पेशी से छूट की अर्जी दे देते हैं। हालांक‍ि, जज ने पेशी से छूट का अनुरोध मंजूर कर अगली तारीख दे दी थी।

20 जून से पहले, छह जून को भी स्‍वास्‍थ्‍य कारणों का हवाला देकर अम‍ित शाह ने व्‍यक्‍त‍िगत पेशी से छूट की अर्जी दी थी। उस द‍िन उनकी ओर से कहा गया था क‍ि वह डायब‍िटीज के मरीज हैं और उन्‍हें कुछ जांच कराने के ल‍िए जाना जरूरी है।

20 जून की सुनवाई के बाद एक हफ्ते के भीतर ही जज उत्पट का तबादला पुणे हो गया था और उनकी जगह जस्‍ट‍िस बी.एच. लोया की न‍ियुक्‍त‍ि हुई थी। इंड‍ियन एक्‍सप्रेस ने जज उत्‍पट से तबादले के बारे में पूछा था तो उन्‍होंने ट‍िप्‍पणी से इनकार कर द‍िया था। लेक‍िन, बॉम्‍बे हाईकोर्ट की तत्‍कालीन रज‍िस्‍ट्रार जनरल शाल‍िनी फानसालकर जोशी ने इंड‍ियन एक्‍सप्रेस को बताया था क‍ि हाईकोर्ट को जज उत्‍पट ने पुणे तबादले के ल‍िए अर्जी दी थी। इसके ल‍िए उन्‍होंने बेटी की पढ़ाई को कारण बताया था।

सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर

सोहराबुद्दीन शेख का कथ‍ित एनकाउंटर नवंबर 2005 में गांधीनगर के पास राजस्थान और गुजरात पुलिस के ज्वाइंट ऑपरेशन में किया गया था। शेख का संबंध पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से बताया गया था। शेख और उनकी पत्नी कौसर बी को गुजरात के आतंकवाद-रोधी दस्ते ने उस वक्त पकड़ा था, जब दोनों हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली तक बस यात्रा कर रहे थे। सीबीआई के आरोपपत्र के मुताबिक कौसर बी की बलात्कार के बाद हत्या कर दफना दिया गया था। हालांकि कौसर बी का शव कभी बरामद नहीं किया जा सका। इसी कथित फेक एनकाउंटर मामले में ही अमित शाह व अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ जेल जाना पड़ा था।

तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर

जिस बस से सोहराबुद्दीन शेख और उनकी पत्नी कौसर बी को उठाया गया था, उसी बस में तुलसीराम प्रजापति भी थे। तुलसीराम प्रजापति को शेख का खास आदमी माना जाता था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बस से उतारने के बाद शेख और उनकी पत्नी को एक गाड़ी और तुलसीराम प्रजापति को दूसरी गाड़ी में बैठाया गया। शेख और कौसर बी को अहमदाबाद के पास ले जाया गया, जबकि तुलसीराम प्रजापति को उदयपुर के जेल में भेज दिया गया।

जनवरी 2006 में सोहराबुद्दीन शेख के भाई रुबाबुद्दीन ने भारत के तत्कालीन सीजेआई को पत्र लिखकर सोहराबुद्दीन शेख के कथित फेक एनकाउंटर और कौसर बी के लापता होने की जानकारी दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जून 2006 में मामले की जांच सीआईडी ने शुरू की।

जांच के शुरू होने के छह माह बाद दिसबंर 2006 में सोहराबुद्दीन मामले के अहम गवाह तुलसीराम प्रजापति का कथ‍ित एनकाउंटर हो गया था। यह एनकाउंटर गुजरात-राजस्थान सीमा पर बनासकांठा के छपरी में हुआ था।

सीबीआई के पास गया केस, 2014 में गए थे बरी?

साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट, जो जांच की निगरानी कर रही थी, ने कहा कि सीआईडी (क्राइम) की जांच अधूरी है। हत्या का मकसद साफ नहीं हो पा रहा है। इसके बाद जांच सीबीआई को दे दी गई।

सीआईडी की जांच में यह सामने आया कि घटना से राज्य के नेताओं का नाम भी जुड़ा है। बाद में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में केस की सुनवाई गुजरात से बाहर करवाने की मांग की। सीबीआई को गवाहों के पलट जाने की आशंका थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की मांग मान ली और केस मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया। मुंबई सीबीआई कोर्ट में पेश हुए 45 गवाहों में से 38 अपने बयान से पलट गए थे। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में साल 2014 में अमित शाह समेत कुल 15 लोगों को बरी कर दिया था।