सैंतालीस साल पहले अमेठी की उबड़-खाबड़ बंजर जमीन पर संजय गांधी ने राजनीति की बुनियाद रखी थी। तब उनकी मां इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। नसबंदी की आंधी में सत्ता परिवर्तन का चल रहा तूफान था, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी और अमेठी से संजय गांधी चुनाव हार गए। तभी से अमेठी और रायबरेली सबसे हॉट सीट बन गई।

सैंतालीस साल से अमेठी और रायबरेली अखबारों के पन्नों की सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी 1977 का पहला चुनाव जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह से हार गए थे। इंदिरा गांधी के नसबंदी की आंधी में कांग्रेस का सफाया हो गया था। चुनाव हारने के बाद भी संजय गांधी अमेठी में डटे रहे थे। अपनी मेहनत और राजनीतिक समझ से 1980 के चुनाव में संजय गांधी अमेठी के सांसद बन गए। लेकिन एक साल के अंदर ही विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई।

जब अमेठी से अपने जेठ को हराने के लिए मेनका गांधी ने लिया संकल्प

उस दुर्घटना के बाद राजीव गांधी को पायलट की नौकरी छोड़कर अमेठी से चुनाव लड़ना पड़ा। उन्हें जीत उपचुनाव में जीत मिली। अमेठी में 1984 के लोकसभा चुनाव पर बातचीत करते हुए भाजपा के पूर्व प्रवक्ता गोविंद सिंह चौहान ने बताया कि संजय गांधी की मौत के बाद उनकी सियासी विरासत पर मेनका गांधी आना चाहती थी। लेकिन इंदिरा गांधी को यह मंजूर नहीं था। इसलिए संजय गांधी की विरासत राजीव गांधी को सौंप दिया था। यह बात मेनका गांधी को मंजूर नहीं थी। यही वजह थी कि 1984 के लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी अपने सगे जेठ राजीव गांधी के खिलाफ संजय विचार मंच से चुनाव लड़ने पहुंच गई थीं। अमेठी के गांधी बनाम गांधी मुकाबले के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

Maneka Gandhi
(Express archive photo)

चौहान ने बताया कि मेनका गांधी के साथ संजय गांधी की संवेदना थी। जिससे मेनका गांधी के साथ पूरा विपक्ष था। उनके चुनाव प्रचार में अपार भीड़ जमा होती थी। मेनका गांधी को देखने और सुनने के लिए बूढ़े, बच्चे, जवान और महिलाएं सभी आते थे। मेनका गांधी के खिलाफ पहली बार सोनिया गांधी चुनाव प्रचार में उतरी थी। लेकिन अमेठी की जनता मेनका गांधी के साथ संवेदना में निकल पड़ी थी। जिससे कांग्रेस घबरा गई थी। इसलिए मतदान के दिन अधिकांश बूथों पर बूथ कैप्चरिंग की गई थी।

मेनका ने अपर जिलाधिकारी को मारा तमाचा

रामगढ़ बूथ पर सुल्तानपुर के अपर जिलाधिकारी रवींद्र नाथ तिवारी खुद वोट डाल रहे थे। यह देख मेनका गांधी ने उन्हें एक तमाचा जड़ दिया था। इसके बाद रामगढ़ के लोगों ने मेनका गांधी के साथ हाथापाई की और उनके कपड़े तक फाड़ दिए। घटना के बाद मेनका गांधी ने मतदान छोड़कर फटे कपड़े में सीधे लखनऊ में जाकर प्रेस कांफ्रेंस किया था। उनके अधिकांश बूथ एजेंटों को मारा-पीटा गया था।

अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए मेनका को घर छोड़ना पड़ा था, कहानी विस्तार से जानने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

Maneka Gandhi
(Express archive photo by Neeraj Priyadarshi)

मेनका गांधी मतगणना कराने भी नहीं आई थी। तब भी मेनका गांधी के साथ भाजपा थी। चौहान ने बताया कि मेनका गांधी के साइकिल चुनाव निशान पर बहुत वोट पड़े थे। मतगणना में नीचे ऊपर पंजा बीच में साइकिल मत पत्र भरकर कांग्रेस में गिना जाता था। तब सुल्तानपुर के कलेक्टर गोपाल दास मल्होत्रा और कप्तान बीएन राय थे।

इसके बाद 1989 के चुनाव में राजीव गांधी के खिलाफ महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी चुनाव लडने आए थे। कांग्रेसियों ने राजमोहन गांधी की पिटाई तक की थी। मतदान के दिन कई घंटे स्टूल पर बैठा कर रखें थे। चौहान ने बताया कि मेनका गांधी के मामले को स्मृति ईरानी लोकसभा में उठा चुकी है।

पूर्व विधायक चंद्र प्रकाश मिश्र मटियारी ने कहा कि गांधी परिवार कुर्सी के लिए अपनी बहू को नहीं छोड़ा था। लेकिन स्मृति ईरानी डरने वाली नहीं है। इसी डर से गांधी परिवार अमेठी आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। पूर्व विधायक दिवंगत जमुना प्रसाद मिश्र के पुत्र अनिल मिश्र ने बताया कि 1984 के चुनाव में वरुण गांधी को सिक्के से तौला गया था। तब वरुण गांधी तीन साल के थे।

अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए संविधान में संशोधन करवाना चाहती थीं मेनका

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Maneka Gandhi
भाजपा से सुल्तानपुर की सांसद मेनका गांधी (Express archive photo)