सुप्रीम कोर्ट में जज कैसे न‍ियुक्‍त क‍िए जा रहे हैं? या फ‍िर, कैसे जज न‍ियुक्‍त क‍िए जा रहे हैं? इस तरह के सवाल बीते कुछ सालों से ज्‍यादा ही चर्चा में रहते हैं। लेक‍िन, काब‍िल‍ियत से इतर, दूसरे आधार पर जजों की मनमानी बहाली की समस्‍या आज की नहीं है।

वकील अभ‍िनव चंद्रचूड़ (सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के बेटे) ने अपनी क‍िताब ‘सुप्रीम ह्व‍िस्‍पर्स’ (Supreme Whispers) में 1980 से 1989 के दौरान की कई घटनाओं के जर‍िए न्‍यायपाल‍िका की तस्‍वीर पेश की है। पेंग्‍व‍िन इंड‍िया से प्रकाश‍ित इस क‍िताब में उन्‍होंने एक पूरा अध्‍याय (Criteria for selecting judges) ही न्‍याय‍िक न‍ियुक्‍त‍ियों को समर्प‍ित क‍िया है। 

विचारधारा के आधार पर नियुक्ति

चंद्रचूड़ ने कई उदाहरणों के हवाले से ल‍िखा है क‍ि 1970 और 1980 के दशक में जजों की न‍ियुक्‍त‍ि में चीफ जस्‍ट‍िस और सरकारें जजों को सामाज‍िक और आर्थ‍िक कसौटी पर परखने के साथ-साथ राजनीत‍िक रूप से उनके झुकाव को भी ध्‍यान में रखती थीं। अगर किसी जज का दूर-दूर तक भी व‍िपक्षी पार्ट‍ियों से नाता नजर आता था तो उनका जज बनना मुश्‍क‍िल था।

अभ‍िनव चंद्रचूड़ ने ल‍िखा है क‍ि मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िस एम.एन. चंदूरकर की सुप्रीम कोर्ट में न‍ियुक्‍त‍ि केवल इसल‍िए नहीं हो सकी थी क्‍योंक‍ि वह अपने प‍िता के दोस्‍त रहे आरएसएस नेता एम.एस. गोलवलकर के अंत‍िम संस्‍कार में शाम‍िल होने चले गए थे और उनकी तारीफ कर दी थी।

1980 के दशक से जजों की न‍ियुक्‍त‍ि में उनकी राजनीत‍िक व‍िचारधारा का भी ख्‍याल रखा जाने लगा। इंद‍िरा सरकार के मंत्री एस. मोहन कुमारमंगलम ने खुले तौर पर इस बात की वकालत की क‍ि जज न‍ियुक्‍त करते समय यह देखा जाए क‍ि उनकी राजनीत‍िक व‍िचारधारा क्‍या है। कुमारमंगलम 1973 में एक हवाई दुर्घटना में मारे गए थे। लेक‍िन उनके बाद जजों की न‍ियुक्‍त‍ि के मामले में उनके व‍िचारों पर अमल क‍िया जाने लगा था। 

1984 से 1987 के बीच दूसरी बार कानून मंत्री रहे अशोक सेन के मुताब‍िक सरकार इस बात का पूरा ध्‍यान रखने लगी थी क‍ि बतौर जज न‍ियुक्‍त होने जा रहा व्‍यक्‍त‍ि क‍िसी भी तरह व‍िपक्षी पार्टी या कांग्रेस व‍िरोधी व‍िचारधारा से नहीं जुड़ा हो।

जजों की न‍ियुक्‍त‍ि में पेशेवर काब‍िल‍ियत के साथ-साथ क्षेत्र, धर्म, जात‍ि, ल‍िंंग के अलावा भी कई बातों का ध्‍यान रखा जाता था। रसूखदार खानदान से ताल्‍लुक रखने वाले जजों को न‍ियुक्‍ति‍ में वरीयता दी जाती थी। एक वक्‍त था जब अंग्रेजी और अमेर‍िकी मुकदमों की व‍िशेष जानकारी रखने वाले जजों को सुप्रीम कोर्ट में बहाली के लि‍हाज से ज्‍यादा काब‍िल माना जाता था।

क्षेत्र के आधार पर नियुक्ति

राजनीत‍िक रूप से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण राज्‍यों के ल‍िए सुप्रीम कोर्ट में 2-3 सीटें एक तरह से आरक्ष‍ित थीं। क‍िताब में अभ‍िनव चंद्रचूड़ ने जस्‍ट‍िस ए.एम. अहमदी के हवाले से बताया है क‍ि द‍िसंबर 1988 में सुप्रीम कोर्ट में उनकी न‍ियुक्‍त‍ि का एक कारण यह भी था क‍ि वह गुजरात हाईकोर्ट में जज रहे थे। उस समय (नवंबर, 1988 के बााद) सुप्रीम कोर्ट में गुजरात का एक भी जज नहीं रह गया था। 

राजनीत‍िक रूप से अपेक्षाकृत कम महत्‍व वाले राज्‍यों को श‍िकायत रहती थी क‍ि सुप्रीम कोर्ट में उनकी भागीदारी नहीं हो पाती है। ओड़‍िशा हाईकोर्ट के जज बी. जगन्‍नाध दास को जब मार्च 1953 में सुप्रीम कोर्ट में न‍ियुक्‍त क‍िया गया था तो फ‍िर 30 साल तक ओड़‍िशा से क‍िसी जज को सुप्रीम कोर्ट नहीं लाया गया। उनके बाद मार्च 1983 में जस्‍ट‍िस रंगनाथ म‍िश्रा ओड़‍िशा हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट आए थे। 

30 साल का लंबा अंतराल होने के पीछे की वजह पूछे जाने पर रंगनाथ म‍िश्रा ने कहा था क‍ि ओड़‍िशा सरकार के केंद्र से र‍िश्‍ते मजबूत नहीं थे और ओड‍िशा जैसे छोटे राज्‍यों की तुलना में बड़े राज्‍यों को ज्‍यादा तरजीह म‍िलती है। 

जस्टिस (रि.) संजय किशन कौल का पूरा इंटरव्यू

धर्म के आधार पर नियुक्ति

सुप्रीम कोर्ट में शुरू से ही मुस्‍ल‍िम जज के ल‍िए भी एक सीट लगभग पक्‍की ही रही है। आगे चल कर जब जजों की संख्‍या बढ़ी तो मुस्‍ल‍िम जजों की संख्‍या भी बढ़ गई। जून 1947 में फजल अली को संघीय अदालत का जज बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट अस्‍त‍ित्‍व में आने के बाद भी वह जज बने रहे। उनके र‍िटायर होने पर गुलाम हसन जज बने और उनके बाद एस.जे. इमाम आए थे। 

1950 के दशक में पंड‍ित नेहरू ने बांबे हाईकोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िस एम.सी. छागला को सुप्रीम कोर्ट लाने की कोश‍िश की थी, क्‍योंक‍ि वह सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्‍ल‍िम चीफ जस्‍ट‍िस चाहते थे। 1960 के दशक में जब जस्‍ट‍िस इमाम मानस‍िक समस्‍या की वजह से चीफ जस्‍ट‍िस नहीं बन सके और उनकी जगह पी.बी. गजेंद्रगडकर ने ली तो कहा जाता है क‍ि पंड‍ित नेहरू को च‍िंंता सता रही थी क‍ि पाक‍िस्‍तान क्‍या सोचेगा?

सिंतबर, 1973 में जब आर.एस. सरकार‍िया की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्‍त‍ि हुई थी तो इसकी एक बड़ी वजह उनका स‍िख होना था। तब के पंजाब के मुख्‍यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और लोकसभा स्‍पीकर जी.एस. ढिल्लों ने कानून मंत्री एच.आर. गोखले और प्रधानमंत्री इंद‍िरा गांधी से म‍िल कर सुप्रीम कोर्ट में स‍िख जज बहाल करने की मांग रखी थी। दोनों ने इस मांग पर सहम‍त‍ि दी थी। इसके बाद गोखले ने चंडीगढ़ जाकर सभी जजों के साथ लंच क‍िया था। बाद में गोखले के सम्‍मान में मुख्‍यमंत्री ने रात्र‍ि भोज रखा। इसमें हाईकोर्ट के सभी जज भी शाम‍िल हुए थे। जस्‍ट‍िस सरकार‍ियाा ने कहा था क‍ि उनका वह दौरा ‘एक योग्‍य स‍िख उम्‍मीदवार’ तलाश करने के मकसद से था। 

जब सरकार‍िया को मुख्‍यमंत्री की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जज बनने की पेशकश की गई थी तो पहले उन्‍होंने ठुकरा दी थी। फ‍िर उन्‍होंने कहा क‍ि पत्‍नी से राय लेकर अंत‍िम न‍िर्णय बताऊंगा। पत्‍नी के हां कहने पर सरकार‍िया ने सुप्रीम कोर्ट जाने का प्रस्‍ताव मान ल‍िया था।    

विधि आयोग ने बताया था नियुक्ति का आधार

व‍िध‍ि आयोग ने अपनी 14वीं र‍िपोर्ट में उम्‍मीद जताई क‍ि जजों की न‍ियुक्‍त‍ि का आधार केवल प्रत‍िभा और चर‍ित्र ही होगा और न्‍याय‍िक पदों पर सर्वाध‍िक योग्‍य उम्‍मीदवार ही न‍ियुक्‍त क‍िए जाएंगे। हालांक‍ि, इसके बाद भी इनसे इतर मानकों को आधार बनाया जाना जारी ही रहा। 

1990 के दशक से जब कॉलेज‍ियम प्रणाली के जर‍िए जजों की न‍ियुक्‍त‍ि होने लगी, तब भी इस पर सवाल उठना बंद नहीं हुआ। राजनीत‍िक व‍िचारधारा और अन्‍य कारणों के आधार पर न‍ियुक्‍त‍ि क‍िए जाने के आरोप लगते ही रहे।

सुप्रीम कोर्ट के वर‍िष्‍ठ वकील दुष्‍यंत दवे का पूरा इंटरव्यू

सुप्रीम कोर्ट के वर‍िष्‍ठ वकील दुष्‍यंत दवे ने जनसत्‍ता.कॉम के कार्यक्रम ‘बेबाक’ में कहा क‍ि कॉलेज‍ियम प्रणाली बुरी तरह नाकाम रही है और इसके जरिए बेहद खराब जज न‍ियुक्‍त हुए हैं। उन्‍होंने यह भी आरोप लगाया क‍ि अभी भी एक खास राजनीत‍िक व‍िचारधारा से करीबी रखने वाले जजों की न‍ियुक्‍त‍ि जारी है।