World Population Prospects 2022: दुनिया की आबादी आज 8 अरब हो गई है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक रिपोर्ट के मुताबिक नए अनुमानों से पता चला है कि 2030 तक दुनिया की आबादी करीब 8.5 अरब पहुंच जाएगी। संयुक्त राष्ट्र ने 2050 तक दुनिया की जनसंख्या 9.7 अरब और 2100 तक 10.4 अरब होने की गणना भी की है। रिपोर्ट के अनुसार भारत 2023 में दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन से आगे निकलने का भी अनुमान है।
सयुंक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा यह साझा जिम्मेदारी को समझने का समय
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) ने कहा कि इस वर्ष का विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर हम 8 अरब की संख्या को छू रहे हैं। यह हमारी विविधता का जश्न मनाने, हमारी सामान्य मानवता को पहचानने और स्वास्थ्य में प्रगति पर बात करने और खुश होने का समय है। उन्होने आगे कहा कि यह हमारे ग्रह की देखभाल करने के लिए हमारी साझा जिम्मेदारी की याद दिलाता है और इस बात पर चिंतन करने का क्षण है कि हम अभी भी एक दूसरे के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से कहां चूकते हैं।
महिलाओं को मिलें अधिकार
यूएनएफपीए इण्डिया और भूटान की निदेशक एंड्रिया वोज्नार ने कहा कि जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के बीच महिलाओं और लड़कियों का प्रजनन और स्वास्थ्य का अधिकार होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य तक पहुंच जैसे मुद्दे वंचितो विशेषकर महिलाओं और लड़कियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। इसलिए इस विषय पर ज्यादा बात होनी चाहिए।
जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार में कमी आई है
इस ही बीच एक चर्चा यह भी आम है कि 1950 के बाद पहली बार ऐसा दौर आया है जब जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार बेहद धीमी हो गई है। इस बात को चिंता की नजर से देखा जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार 2020 में जनसंख्या बढ़ोतरी की दर 1 प्रतिशत से भी कम रही है। जनसंख्या को लेकर 2022 में सामने आए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के इस अनुमान के मुताबिक पिछले कुछ दशकों में कई देशों में प्रजनन क्षमता तेजी से गिरी है।
विश्व की आबादी का दो-तिहाई हिस्सा ऐसे क्षेत्र में रहता है जहां महिलाओं की प्रजनन दर 2.1 फीसदी से भी कम है। कोविड-19 महामारी के कारण 2021 में औसत जीवन प्रत्याशा में एक साल की गिरावट आई। बीते वर्ष यह 71 साल थी। औसत जीवन प्रत्याशा के मामले में भी दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में असमानता है। मसलन, धनी देशों की तुलना में आम तौर पर गरीब देशों में लोग सात वर्ष कम जीवित रहते हैं।