बांग्लादेश में हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ने और भारत रवाना होने के बाद से अब तक 100 से अधिक लोगों की हिंसा में मौत हो चुकी है। शेख हसीना अभी गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर मौजूद हैं। बांग्लादेश पिछले दो महीने से छात्रों के आंदोलन की आग में जल रहा है। यहां हालात इतने बेकाबू हुए कि सेना को सड़क पर उतारना पड़ा। इस पूरे बवाल के बीच रजाकार नामक शब्द की बहुत चर्चा है। आखिर रजाकार कौन होते थे और उनकी इस आंदोलन में चर्चा क्यों हो रही है?

रजाकार की क्यों हो रही चर्चा?

बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान शेख हसीना ने नाराजगी जताते हुए कहा कि ‘बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के परिजनों को आरक्षण नहीं मिलेगा तो क्या रजाकार के पोते-पोतियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा?’ शेख हसीना ने कहा कि ‘जो लोग आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों या उनके रिश्तेदारों को मिलने वाले आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, वो रजाकार हैं।’ हसीना के इतना करने के बाद प्रदर्शनकारी और हिंसक हो गए। लोग हसीना के इस बयान से इतना नाराज हुए कि विरोध प्रदर्शन के दौरान ‘मैं कौन, तुम कौन, रजाकार…रजाकार’ जैसे नारे लगने लगे।

कौन थे रजाकार?

1971 में जब बांग्लादेश में आजादी की लड़ाई चल रही थी तो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में एक क्रूर सेना पाकिस्तान द्वारा गठित की गई थी। इसका नाम रजाकार था। हिंदी में इसका अर्थ सहायक होता है। यह पाकिस्तान समर्थक थे। इन्होंने पाकिस्तानी सेना के जासूसों के तौर पर काम किया। इस सेना ने नागरिकों पर भारी जुल्म किए। इसी कारण इस शब्द को अपमान के तौर पर देखा जाता है। बांग्लादेश में देशद्रोही और हिंसक प्रवृत्ति के लोगों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता था।

भारत की पूरे हालात पर नजर

बांग्लादेश के ताजा हालात पर भारत भी नजर बनाए हुए हैं। मंगलवार को सर्वदलीय बैठक में इस मामले पर चर्चा की गई। इसमें राहुल गांधी ने बांग्लादेश में तेजी से बिगड़ते हालात में पाकिस्तान का हाथ होने को लेकर भी सवाल उठाया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अभी यह डेवलपिंग सिचुएशन है। केंद्र सरकार इस पर करीबी नजर बनाए हुए है। इसी के हिसाब से रणनीति बताई जा रही है और फिर जो भी सही होगा, उसके हिसाब से अगला कदम उठाया जाएगा।