बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या लगातार घट रही है, जबकि मुसलमानों की आबादी 1941 में लगभग 2 करोड़ 90 लाख थी और बढ़कर 2001 में 10 करोड़ से ज्यादा हो गई। साल 1901 से लेकर अब तक की हर जनगणना में बंगाल में हिंदुओं की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है। ऐसा होने के पीछे कई कारण थे, जिनमें से कुछ विभाजन के पहले के हैं। अब 5 अगस्त को शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने और देश में राजनीतिक फेरबदल के बाद से ही अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले भी होने लगे हैं।
हमलों की खबरों के बीच अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर का दौरा किया। वह हिन्दू समुदाय के नेताओं से मिले और उन्हें हिम्मत देते हुए कहा कि ‘हम सभी एक हैं, सभी को न्याय मिलेगा’।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 50 से ज़्यादा जिलों में 200 से ज़्यादा हमले हुए। इस दौरान पांच लोगों के मारे जाने की खबर भी सामने आई है। हिन्दू समुदाय बांग्लादेश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी है।
सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी
बांग्लादेश में 2022 में जनगणना हुई थी। आंकड़े सामने आए कि 1 करोड़ 30 लाख से कुछ ज्यादा की तादाद यहां हिंदुओं की है। जो देश की आबादी का 7.96 प्रतिशत हिस्सा हैं। हिंदुओं के अलावा अल्पसंख्यक (बौद्ध, ईसाई, आदि) मिलकर 1% से भी कम हैं।
बांग्लादेश के आठ डिवीजनों में हिंदुओं की आबादी से जुड़ा मैप हम नीचे साझा कर रहे हैं। जिसमें दिखाया गया गया है कि अलग-अलग जिलों में संख्या का बहुत ज़्यादा फर्क है। जैसे – मैमनसिंह में सिर्फ 3.94% हिन्दू हैं, वहीं सिलहट में 13.51% आबादी है।
बांग्लादेश के 64 जिलों में से चार में हर पांचवा व्यक्ति हिंदू है। बात अगर ढाका डिवीजन में गोपालगंज जिले की करें तो यहां कुल आबादी 26.94 प्रतिशत हिन्दू है। सिलहट डिवीजन के मौलवीबाजार में 24.44 प्रतिशत, रंगपुर डिवीजन के ठाकुरगाँव में 22.11 प्रतिशत और खुलना डिवीजन के खुलना जिले में 20.75 प्रतिशत आबादी हिन्दू है।
घट रही है हिंदुओं की आबादी
ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो बंगाली भाषी क्षेत्र में हिंदुओं की आबादी का हिस्सा बहुत बड़ा था। हिन्दू यहां कभी कुल आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा हुआ करते थे। (चार्ट देखें)। लेकिन जनसंख्या में बड़ा बदलाव हुआ है।
साल 1901 से लेकर अब तक की हर जनगणना में बंगाल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है। यह गिरावट 1941 और 1974 की जनगणनाओं के बीच सबसे ज़्यादा थी, यानी उस समय बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था।
1951 की जनगणना की तुलना 1941 की गणना से की जाए तो बहुत ज़्यादा गिरावट दर्ज की गई। जनसंख्या लगभग 1 करोड़ एक लाख से गिरकर तब 90 लाख के करीब आ गई थी। 2001 की जनगणना में यह संख्या धीरे-धीरे बढ़कर फिरसे 1 करोड़ एक लाख तक पहुंची।
मुसलमानों की आबादी 1941 में लगभग 2 करोड़ 90 लाख से बढ़कर 2001 में 10 करोड़ से ज्यादा हो गई। ऐसा होने के पीछे कई कारण थे, जिनमें से कुछ विभाजन के पहले के हैं।

बर्थ रेट (Fertility Rates)
कई विद्वानों और डेटा रिपोर्ट्स पर नज़र रख रहे लोग मानते हैं कि बंगाल क्षेत्र में मुसलमानों में प्रजनन दर ऐतिहासिक रूप से हिंदुओं की तुलना में अधिक रही है। भारत की पहली जनगणना (1872) के बाद के आंकड़े इसके उदाहरण माने जा सकते हैं। यह डेटा खासतौर से हिंदू-बहुल पश्चिम बंगाल और मुस्लिम-बहुल पूर्वी बंगाल के बीच तुलना पर आधारित है। आबादी के घटने और बढ़ने के अहम कारणों में से यह भी एक कारण है।
विभाजन और माइग्रेशन
बंगाल और पंजाब ब्रिटिश भारत के दो प्रांत थे जिन्हें धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया था। यह विभाजन बेतरतीब था। जिसके रहते हिंसा हुई और हिंसा के ऐसे जख्म छूटे कि जिन्हें आज भी देखा जा सकता है।
इतिहासकार Gyanesh Kudaisya ने लिखा है कि विभाजन के बाद 1 करोड़ 1 लाख से ज्यादा हिंदू पूर्वी बंगाल में रह गए। 1947 में केवल 344,000 हिंदू शरणार्थी पश्चिम बंगाल आए और पूर्वी पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों में यह उम्मीद बनी रही कि वे वहां शांतिपूर्वक रह सकते हैं।
असम (वर्तमान मेघालय, नागालैंड और मिजोरम सहित), पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में 1951 और 1961 के बीच जनसंख्या में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई। यह सब पूर्वी पाकिस्तान से आए लोग थे।
1971 में पलायन की एक और लहर चली, जब पाकिस्तानी सेना और उसके सहयोगियों ने मुक्ति संग्राम से पहले बंगालियों के खिलाफ जानलेवा अभियान चलाया। भारतीय अनुमानों के अनुसार, संघर्ष के दौरान लगभग 90 लाख से ज्यादा बंगालियों ने भारत में शरण ली, जिनमें से लगभग 70% हिंदू थे।