G-20 शिखर सम्मेलन खत्म हो गया है। सम्मेलन के दौरान इटालियन मीडिया द्वारा रविवार को रिपोर्ट किया गया कि इटली चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को छोड़ने की योजना बना रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट अनुसार देश की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने बाद में कहा कि चीन के साथ इटली के संबंधों में बीआरआई के अलावा और भी बहुत कुछ है।
पीएम मेलोनी ने स्पष्ट किया कि बीआरआई छोड़ने पर अंतिम निर्णय अभी भी लिया जाना बाकी है। इटली BRI के लिए साइन अप करने वाला एकमात्र G7 देश है। 2019 में इटली इसमें शामिल हुआ था।
चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल एक विशाल व्यापार और बुनियादी ढांचा नेटवर्क है जो प्राचीन सिल्क रूट पर आधारित मॉडल में देश को पश्चिम से जोड़ने का प्रयास करता है। शी जिनपिंग शासन द्वारा शुरू की गई पहल के तहत चीन ने साझेदार देशों में पुलों, सड़कों, बंदरगाहों और यहां तक कि डिजिटल कनेक्टिविटी नेटवर्क का निर्माण या फाइनेंसिंग की है।
G20 शिखर सम्मेलन के दौरान क्या हुआ?
पीएम मेलोनी ने शनिवार को नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन से इतर चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात की। रविवार को रिपोर्ट सामने आई कि इटली बीआरआई से बाहर निकलने की योजना बना रहा है। लेकिन बीजिंग के विरोध को रोकने के लिए वह चीन के साथ एक और रणनीतिक साझेदारी समझौते को पुनर्जीवित करने की कोशिश करेगा, जिस पर उसने 2004 में हस्ताक्षर किए थे।
रविवार को जी20 शिखर सम्मेलन के अंत में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेलोनी ने कहा, “ऐसे यूरोपीय देश हैं जो हाल के वर्षों में बेल्ट एंड रोड का हिस्सा नहीं रहे हैं लेकिन (चीन के साथ) अधिक अनुकूल संबंध बनाने में सक्षम हैं। मुद्दा यह है कि बीआरआई पर हम जो निर्णय लेंगे, उसे छोड़कर ऐसी साझेदारी की गारंटी कैसे दी जाए जो दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हो।”
इटली की पीएम ने यह भी कहा कि चीनियों ने उन्हें बीजिंग आने का निमंत्रण दिया है लेकिन कोई तारीख तय नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि इटली सरकार को बीआरआई फोरम में भी आमंत्रित किया गया है, जिसकी मेजबानी चीन अक्टूबर में करेगा।
क्या यह पहली बार है जब इटली ने संकेत दिया है कि वह बीआरआई छोड़ सकता है?
नहीं, इतालवी राजनीतिक नेताओं के एक वर्ग ने शिकायत की है कि इस समझौते से इटली की तुलना में चीन को अधिक लाभ हुआ है। इस साल जुलाई में इतालवी रक्षा मंत्री गुइडो क्रोसेटो ने अखबार कोरिएरे डेला सेरा को बताया था कि उनका देश बीजिंग के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचाए बिना (बीआरआई से) पीछे हटना चाहता है।
इटली BRI क्यों छोड़ना चाहता है?
इटली उस समय बीआरआई में शामिल हुआ था जब वह निवेश और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बेताब था। उस समय इसकी सरकार ने यूरोपीय संघ के साथ अच्छे संबंध नहीं किए थे, और जो धन इसमें लगाया जा सकता था, उसके लिए वह चीन की ओर रुख करके खुश थी। चार साल बाद समझौते ने इटली को बहुत कुछ फायदा नहीं दिया है।
काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के आंकड़ों के अनुसार इटली में चीनी एफडीआई 2019 में 650 मिलियन डॉलर से घटकर 2021 में सिर्फ 33 मिलियन डॉलर रह गया। वास्तव में इटली ने यूरोप में गैर-बीआरआई देशों में कहीं अधिक निवेश किया। व्यापार के संदर्भ में BRI में शामिल होने के बाद से चीन को इटली का निर्यात 14.5 बिलियन यूरो से बढ़कर मात्र 18.5 बिलियन हुआ, जबकि इटली को चीनी निर्यात 33.5 बिलियन यूरो से बढ़कर 50.9 बिलियन यूरो हो गया। हालांकि इन समस्याओं के बावजूद यदि इटली समझौते से बाहर निकलता है, तो इसका कारण केवल अर्थशास्त्र नहीं होगा।
बदलती भूराजनीति के बीच BRI
बीजिंग के लिए G7 देश के इटली को BRI में शामिल कराना एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी लेकिन पहल की 10वीं वर्षगांठ से ठीक पहले इससे बाहर निकलना चेहरे की क्षति होगी। यह चीन के प्रति यूरोप के बढ़ते सतर्क रुख के अनुरूप होगा। इटली भी धीरे-धीरे बीजिंग के खिलाफ अपना रुख सख्त कर रहा है, खासकर मेलोनी के सत्ता में आने के बाद।
इटली के पास अगले साल जी7 की अध्यक्षता है और बीआरआई से बाहर निकलना उसके पश्चिमी सहयोगियों के लिए अच्छा होगा। बीआरआई ने भी पिछले कुछ वर्षों में नकारात्मक प्रेस को आकर्षित किया है। कई देश जो उत्साहपूर्वक इसमें शामिल हुए थे, अब उन्हें चीन पर भारी कर्ज का बोझ मंडराता हुआ नजर आ रहा है। एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान, केन्या, जाम्बिया, लाओस और मंगोलिया सहित कई देश चीन के कर्ज जाल में फंस चुके हैं।
बीआरआई और भारत
भारत बीआरआई का समर्थन नहीं करता है और उसने इस परियोजना में शामिल होने से इनकार कर दिया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि बीआरआई पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरती है। बीआरआई परियोजना की शाखा जो मुख्य भूमि चीन को अरब सागर से जोड़ती है, चीन के झिंजियांग उइघुर स्वायत्त क्षेत्र में काशगर से पाकिस्तान में दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक चलती है। यह परियोजना गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है और अरब सागर तक पहुंचने से पहले उत्तर से दक्षिण तक पाकिस्तान की पूरी लंबाई को पार करती है।
बीआरआई की इस शाखा को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा या सीपीईसी कहा जाता है और इसमें कई आधुनिक राजमार्ग और रेलवे परियोजनाएं शामिल हैं। भारत ने बार-बार सीपीईसी पर अपनी चिंता और विरोध व्यक्त किया है और चीन और पाकिस्तान द्वारा इसके निर्माण में अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन को चिह्नित किया है।
