अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने शतरंज खेलने पर अस्थायी रोक लगा दी है। उनका मानना है कि यह खेल जुए को बढ़ावा देता है, जो उनके अनुसार इस्लामी कानून के खिलाफ है। तालिबान की इस कार्रवाई ने देशभर में उन लोगों को झटका दिया है जिनके लिए शतरंज मानसिक व्यायाम और मनोरंजन का एक जरिया था।

खेल विभाग विचार करेगा कि मजहबी नजरिए से ठीक है या नहीं

तालिबान के खेल निदेशालय के प्रवक्ता अटल मशवानी (Atal Mashwani) ने एक बयान में कहा कि यह प्रतिबंध तब तक लागू रहेगा जब तक मजहबी अधिकारी यह तय नहीं कर लेते कि शतरंज इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार सही है या नहीं। उन्होंने साफ कहा, “जब तक इस पर मजहबी नजरिए से विचार नहीं हो जाता, शतरंज का खेल अफगानिस्तान में निलंबित रहेगा।”

काबुल जैसे शहरों में, जहां लोग दिन भर की भागदौड़ और तनाव के बीच कुछ समय दिमागी खेलों में लगाते थे, वहां इस फैसले का सीधा असर पड़ा है। अजीजुल्लाह गुलजादा, जो एक छोटा सा कैफे चलाते हैं जहां लोग शतरंज खेलने आते थे, उन्होंने बताया कि यह सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि मानसिक शांति और सामाजिक मेलजोल का माध्यम भी था।

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उन्होंने कहा, “हर दिन कई युवा यहां आते थे। उनके पास ज़्यादा विकल्प नहीं हैं। यहां कभी जुए जैसा कुछ नहीं होता था।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि मुस्लिम देशों जैसे ईरान, तुर्की और इंडोनेशिया में भी शतरंज खूब खेला जाता है, लेकिन वहां इसे हराम नहीं माना गया है।

तालिबान सरकार अगस्त 2021 में सत्ता में आने के बाद से लगातार अपने कट्टरपंथी नियम लागू कर रही है। इससे पहले उन्होंने पेशेवर मिक्स्ड मार्शल आर्ट (MMA) प्रतियोगिताओं पर भी प्रतिबंध लगाया था। उनका तर्क था कि यह खेल बहुत हिंसक है और शरिया के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता।

महिलाओं के लिए तो तालिबान का रवैया और भी सख्त रहा है। महिलाओं को लगभग सभी खेल गतिविधियों से दूर कर दिया गया है। इस फैसले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना हुई है। संयुक्त राष्ट्र समेत कई मानवाधिकार संगठनों ने इसे महिलाओं के अधिकारों का हनन और समाज को पीछे ले जाने वाला कदम बताया है।

हालांकि तालिबान ने यह नहीं बताया है कि शतरंज पर लगे प्रतिबंध की समीक्षा कब होगी या फिर इसे दोबारा शुरू करने के लिए किन मजहबी मानकों को पूरा करना होगा। यह अस्पष्टता शतरंज खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों के लिए चिंता का विषय है।

इस पूरी स्थिति से यह साफ हो गया है कि अफगानिस्तान में खेल अब सिर्फ खेल नहीं रह गया है। यह मजहबी व्याख्याओं और सख्त शरिया कानून की कसौटी पर कसा जा रहा है। और जब तक इन कसौटियों की स्पष्ट परिभाषा नहीं मिलती, तब तक न तो खिलाड़ी निश्चिंत रह सकते हैं और न ही खेल।