सावन में क्यों होती है भगवान शिव की विशेष पूजा? जानिए पौराणिक रहस्य

Jul 15, 2025, 04:35 PM
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हिंदू पंचांग के अनुसार सावन का महीना एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध समय होता है। यह महीना जुलाई और अगस्त के बीच आता है और इसे भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष रूप से समर्पित माना जाता है। इस दौरान भक्त व्रत, पूजा, रुद्राभिषेक और जल अर्पण जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में लीन रहते हैं।

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सावन में भगवान शिव की पूजा का महत्व

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन किया, तब उसमें से 14 रत्नों के साथ एक अत्यंत विषैला जहर हलाहल भी निकला। यह विष इतना प्रचंड था कि उसके प्रभाव से पूरा ब्रह्मांड नष्ट हो सकता था।

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तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए इस जहर को स्वयं पी लिया। उनकी पत्नी माता पार्वती ने यह जहर उनके कंठ से नीचे न उतरने दिया और उसे उनके गले में ही रोक दिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया। इसी कारण भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है।

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ब्रह्मा जी ने किया गंगाजल से स्नान

जब शिव जी इस विष के प्रभाव से अचेत हो गए, तब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें गंगाजल से स्नान कराकर होश में लाया। तभी से परंपरा बन गई कि भक्तगण गंगाजल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं ताकि उनके भीतर की नकारात्मक ऊर्जा और विष भी शुद्ध हो सके।

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कांवड़ यात्रा का महत्व

हर साल लाखों शिवभक्त हरिद्वार, गंगोत्री और अन्य पवित्र स्थलों से गंगाजल भरकर कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। यह जल वे अपने नजदीकी शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह भावपूर्ण श्रद्धा का प्रतीक होता है और इसे विशेष पुण्यदायी माना जाता है।

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सावन में व्रत और पूजन विधि

सावन के प्रत्येक सोमवार को सावन सोमवारी व्रत रखा जाता है। इस दिन भक्त दूध, बेलपत्र, फल, गंगाजल आदि अर्पित करते हैं। वे दिनभर उपवास रखते हैं और केवल सूर्यास्त के बाद फलाहार करते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन में सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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सावन 2025 की तिथियां

उत्तर भारत में सावन की शुरुआत: 11 जुलाई 2025, अंतिम दिन: 9 अगस्त 2025

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दक्षिण भारत में सावन की अवधि: 25 जुलाई 2025 से 23 अगस्त 2025 तक

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