रूस की पाकिस्तान के साथ बढ़ती नजदीकियों ने भारत की नींद उड़ा रखी हैं। भारत पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर अलग-थलग करने की कोशिशों में जुटा है। पहले आधिकारिक तौर पर चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी)  प्रोजेक्ट में दिलचस्पी नहीं रखने का एेलान करने वाले रूस ने अब न सिर्फ सीपीईसी का खुला समर्थन किया है बल्कि अपने यूराशियन इकनॉमिक यूनियन प्रोजेक्ट को सीपीईसी के साथ लिंक करने का भी एेलान किया है।

सीपीईसी, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के सिल्क रोड इकनॉमिक बेल्ट और 21वें मेरीटाइम सिल्क रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है। चीन की योजना इन दोनों विकास योजनाओं को एशिया और यूरोप के देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ाने की है। चीन द्वारा बनाया जा रहा ये कॉरिडोर बलूचिस्तान प्रांत से होकर गुजरेगा, जहां दशकों से लगातार अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। इसके साथ-साथ गिलगिट-बल्टिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का इलाका भी शामिल है।

बता दें कि पिछले महीने ही रूस ने पाकिस्तानी मीडिया की उन रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि वह खुद को सीपीईसी में शामिल करना चाहता है ताकि ग्वादर में चीन द्वारा बनाए गए पोर्ट तक उसकी पहुंच बन सके। लेकिन अब पाकिस्तान में रूस के राजदूत एलेक्सी वाई डिडोव ने कहा है कि पाकिस्तान और रूस ने बातचीत कर यह तय किया है कि यूराशियन इकनॉमिक कॉरिडोर को सीपीईसी से जोड़ा जाएगा। सामरिक मामलों के एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि रूस के इस कदम से लगता है कि वह अब भारत को एक विश्वसनीय दोस्त या भागीदार के रूप में नहीं देखता। रूस का इस तरह सीपीईसी को समर्थन देना भारत के मूल हितों के लिए झटका है।

हालांकि भारत ने आधिकारिक तौर पर कभी रूस से साथ अपने संबंधों में खटास नहीं आने दी है। भले ही पीछे से उसने कई बार रूस को यह बताने की कोशिश की है कि क्षेत्र में पाकिस्तान ही आतंकवाद फैलाने के लिए जिम्मेदार है। वहीं भारत को रूस ने यह कहकर भी झटका दिया था कि वह अफगानिस्तान के तालिबान को एक नेशनल मिलिट्री-पॉलिटिकल मूवमेंट के तौर पर देखता है।