ब्रेग्जिट के बाद से ब्रिटेन में न सिर्फ आर्थिक बल्कि राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी है। एक तरफ कोरोना ने जहां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को तबाह किया है वहीं इस महामारी की लड़ाई में कमोबेश ब्रिटेन ने एक नई लकीर भी खींची है।
पूरे ब्रिटेन में 65 फीसदी से ज्यादा आबादी को वैक्सीन का बूस्टर डोज दिया जा चुका है। हालांकि मौजूदा ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन पर बीच बीच में कोविड की महामारी से ठीक से नहीं निपटने के आरोप भी लगते रहे हैं लेकिन लॉकडाउन के दौर में एक जश्न (पार्टी) जॉनसन पर भारी पड़ता दिख रहा है। हालांकि हम सब जानते हैं कि ब्रिटेन ने पूरी दुनिया में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को फैलाया है। लेकिन इस लोकतंत्र की खूबसूरती देखिए कि नियम को तोड़कर महज एक पार्टी करने की वजह से प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की पार्टी के भीतर ही उनका विरोध मुखर हो चुका है और प्रधानमंत्री की कुर्सी जा सकती है।
आप इस घटना मात्र से राजनीति में शुचिता के पैमाने का आकलन लगा सकते हैं। अब ताजा हालात ये है कि न सिर्फ ब्रिटेन के राजनीतिक गलियारों में बल्कि यहां के आम लोगों में एक चर्चा ने काफी जोर पकड़ लिया है कि क्या भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं? क्या ब्रिटेन को पहला हिन्दू प्रधानमंत्री मिलने वाला है?
सुनक फिलहाल ब्रिटेन के वित्त मंत्री ( चांसलर ऑफ एक्सचेकर) हैं और उनकी उम्र महज 41 साल है। पहली बार वो 2015 में कंजरवेटिव पार्टी के सांसद बन संसद पहुंचे और तभी से ब्रिटेन के आर्थिक नीतियों में उनकी हिस्सेदारी देखी गई है।
2018 में ऋषि सुनक थेरेसा मे की सरकार में बतौर मंत्री शामिल हुए। 2019 में उन्हें ट्रेजरी का चीफ सेक्रेटरी बनाया गया। ब्रिटेन में ये पद वित्त मंत्रालय में मंत्री के बाद सबसे बड़ा और मजबूत पद होता है।
प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के चुनाव प्रचार कैम्पेन में भी ऋषि सुनक ने बड़ी भूमिका निभाई थी। अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र और राजनीति में ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट सुनक एक शानदार वक्ता हैं। लिहाजा उन्होंने कई अवसरों पर चुनाव प्रचार के दौरान टीवी डिबेट में सुनक ने जॉनसन की जगह हिस्सा लिया। कंजरवेटिव पार्टी ने अक्सर मीडिया इंटरव्यू के लिए उन्हें आगे किया है। बावजूद इसके सुनक को ब्रिटिश जनता मुश्किल से जानती थी।
राजनीति में आने के महज पांच साल में बोरिस जॉनसन ने उनको चांसलर बनाया तो लोगों को ऋषि के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन महज दो सालों में ऋषि ब्रिटेन के युवाओं में ऐसे पॉपुलर हुए कि यहां के युवा अब ऋषि को कंजर्वेटिव पार्टी के उभरते सितारे के तौर पर देखते हैं।
ब्रेग्जिट के कुछ हफ्तों बाद ही जब ब्रिटेन के वित्त मंत्री साजिद जावीद ने इस्तीफा दिया तो उसके बाद इस युवा सांसद को वित्त मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जब ऋषि चांलसर ऑफ एक्सचेकर यानी वित्त मंत्री बने थे तब कोविड 19 फैल रहा था लेकिन महामारी का रूप नहीं ले पाया था, उसके तुरंत बाद जॉनसन सरकार ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का फैसला किया और चांसलर की जिम्मेदारी इस दौर में देश को आर्थिक संकट से उबारने की आ गई।
ऋषि को रोजगार की सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद के पैकेज की घोषणा करनी पड़ी, साथ ही इस कोविड के दौर में मंहगाई को काबू में रखना एक बड़ी चुनौती साबित हुई। इस बीच ऋषि सुनक के एक बयान ने उन्हें यहां के नौजवानों का हीरो बना दिया जब उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों को महज बिल का भुगतान करने वाली जनता के तौर बड़ा नहीं किया जा सकता। उनके लिए और बेहतर सोचना होगा और हमारी सरकार ऐसा करेगी।
भारत में अब ये जानकारी आम है कि ऋषि सुनक इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता के पति यानी उनके दामाद हैं। सुनक ने अपने राजनीति करियर की शुरुआत से ही ब्रेग्जिट का पुरजोर समर्थन किया है और अपनी स्थिति पार्टी में मजबूत की है।
यूरोपीय संघ से बाहर होने में जो रणनीति पूर्व प्रधानमंत्री थेरेसा मे की थी उसका विरोध कर बोरिस जॉनसन की नीतियों का समर्थन कर वो बोरिस के भी चहेते सांसद हैं और इसी का परिणाम है कि बोरिस जॉनसन ने बजट से पहले ऋषि सुनक को वित्त मंत्रालय जैसा बड़ा मंत्रालय सौंपा जिसे ब्रिटेन में तीसरा बड़ा मंत्रालय माना जाता है।
13 फरवरी 2020 को ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले हिन्दू चांसलर बने थे। सुनक ने भगवद् गीता पर हाथ रखकर एक सांसद के तौर पर निष्ठा की शपथ ली थी। 11, डाउनिंग स्ट्रीट यानी अपने निवास की सीढियों पर दिवाली के मौके पर दीए जलाकर देश की उन्नति के लिए पूजा की और ब्रिटेन की जनता के साथ साथ यहां बसे हिंदुओं से लॉकडाउन के नियमों का पालन करने की गुजारिश की।
एक तरफ जहां ऋषि सुनक दीवाली के दीए से लोगों में नियमों का पालन की अपील कर रहे थे वहीं उनके प्रधानमंत्री, डोमिनिट कमिंग्स के पतन का जश्न मनाने के लिए पार्टी कर रहे थे। बात ज्यादा दिनों तक छुपी नहीं रही और बाहर आ गई। पहले विरोधियों ने मुद्दा बनाया फिर पार्टी के भीतर भी इस बात पर विरोध होने लगा। नियमों के तोड़ने का आरोप लगा और बाद में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने जब इसे स्वीकार किया तो ये मामला “पार्टीगेट” स्कैंडल में तब्दील हो गया।
अब ये मामला अदंर ही अंदर इतना आगे बढ़ गया कि बोरिस जॉनसन के सबसे चहेते मंत्री को उनके उपर ही पार्टी ने तरजीह देनी शुरु कर दी और वो ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने के कगार पर खड़े हैं। ऐसा हुआ तो ऋषि ब्रिटेन के पहले हिन्दू प्रधानमंत्री होंगे। हालांकि उनकी चुनौतियां कम नहीं हैं। अब जबकि ओमिक्रॉन की लहर भी खात्मे की ओर है ब्रिटेन में बेरोजगारी कम हो रही है लेकिन महंगाई का सामना यहां के लोगों को करना पड़ रहा है।
ब्रिटेन में मुद्रास्फीति के आँकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कई दशक में सबसे ज्यादा रफ्तार से ये अभी देखने को मिल रहा है। लिहाजा महंगाई पर काबू पाना एक न सिर्फ वित्त मंत्री के तौर पर ऋषि के लिए बड़ी चुनौती है बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य के लिए भी सबसे जरूरी है।