पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने के बाद वहां के संविधान के अनुच्छेद पांच की बेहद चर्चा है। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर ने अनुच्छेद पांच के तहत ही अविश्वास प्रस्ताव को खारिज किया है। पाकिस्तान के 1973 में लिखे गए संविधान के अनुच्छेद पांच में रियासत के नाम वफादारी और संविधान-कानून के अनुपालन की बात करता है।
अनुच्छेद पांच का पहला प्रावधान कहता है ‘पाकिस्तान के हर व्यक्ति का यह बुनियादी फर्ज है कि वह अपनी रियासत के प्रति वफादार रहेगा।’ दूसरा प्रावधान कहता है ‘संविधान और कानून का अनुपालन करना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। चाहे वह पाकिस्तान में स्थायी तौर पर रह रहा हो या कुछ समय के लिए शरण लेकर आया हो।’
वहां की नेशनल असेंबली में बैठक के दौरान सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ अनुच्छेद पांच का हवाला देते हुए विपक्ष को घेरा। डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी ने प्रस्ताव को खारिज कर सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। अब पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद पांच को लेकर बहस शुरू हो गई है। इसके प्रावधानों पर सवाल उठने लगे हैं। पाकिस्तान के कानून विशेषज्ञ सरूप एजाज ने कहा कि पहली नजर में यह कदम संविधान और लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है।
पाकिस्तान के विपक्षी दल ने डिप्टी स्पीकर के कदम को असंवैधानिक बताया है। विपक्ष का कहना है कि जिसने भी नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने से रोका है, उन्होंने देशद्रोह का अपराध किया है। विपक्ष ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पाकिस्तानी अखबार ‘द डान’ में छपे संपादकीय का शीर्षक ही रखा गया है ‘लोकतंत्र का विनाश’।
इसमें कहा गया ‘पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के कदम ने संसदीय प्रक्रिया को कुचलने और देश को एक संवैधानिक संकट में धकेलने का काम किया है।’ कानून के जानकार जिबरान नसीर ने इस अखबार से बातचीत में कहा अगर इस लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ ही छेड़छाड़ की गई तो इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का वजूद खतरे में आ जाएगा।
दक्षिण एशिया में ‘एडवोकेट्स फार जस्टिस एंड ह्यूमन राइट्स’ (आइसीजे) की कानूनी सलाहकार रीमा उमर के मुताबिक, इसमें अगर-मगर की कोई गुंजाइश नहीं है। डिप्टी स्पीकर का फैसला पूरी तरह असंवैधानिक है। इमरान के पास मौजूदा समय में कोई अधिकार नहीं है कि वे राष्ट्रपति से संसद भंग करने की सिफारिश कर सकें।
पाकिस्तानी कानूनविद सलमान अकरम राजा एक टीवी चैनल से कहा कि विपक्ष के पास सिर्फ एक ही रास्ता था कि वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और इस असंवैधानिक फैसले के खिलाफ कोर्ट के जरिए संविधान का पालन करवाए। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 69 के तहत नेशनल असेंबली या सीनेट के किसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
अब्दुल मोइज जाफरी ने कहा कि अनुच्छेद 69 संसदीय मामलों में दखल की कोर्ट की ताकतों को सीमित तो करता है, लेकिन अगर सदन में ही कोई असंवैधानिक कार्य हो रहा हो तो यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह संविधान का पालन करवाए। उन्होंने कहा कि इस मामले में डिप्टी स्पीकर के फैसले को कोर्ट बदल सकता है। खासकर जब आपके कदम दुर्भावनापूर्ण इरादे से लिए गए हों।