संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दा उठाते हुए पाकिस्तान ने राज्य में सुरक्षा परिषद प्रस्तावों को लागू करने की मांग फिर दोहराई और कहा कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए कश्मीरी लोगों को आत्मनिर्णय के वादे को पूरा किया जाना ‘अपरिहार्य’ है। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की दूत मलीहा लोधी ने कहा कि बिना किसी दमन या दबाव के स्वनिर्धारण का अधिकार निर्बाध रूप से मिलना चाहिए और आत्मनिर्णय के लिए लोगों के वैध संघर्ष को आतंकवाद के साथ जोड़कर इसे जानबूझकर खारिज नहीं किया जा सकता। ‘आत्मनिर्णय का अधिकार’ विषय पर लोधी ने सोमवार को महासभा की तीसरी कमेटी के सामने एक बयान में कहा, ‘मेरे क्षेत्र दक्षिण एशिया में दशकों पुराने जम्मू कश्मीर विवाद को इन मौलिक और सार्वभौम सिद्धांतों के हिसाब से सुलझाने की जरूरत है।’

लोधी ने कहा, ‘लगातार कश्मीरी महिलाओं, बच्चों और पुरुषों की ओर से झेली जा रही पीड़ा से अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समन्वित चेतना जाग्रत होनी चाहिए।’ लोधी ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र की 70 वीं वर्षगांठ पर इस संस्था को केवल कुछ और शब्द बोलने के लिए नहीं बल्कि कार्रवाई के लिए उत्प्रेरक होना चाहिए। कश्मीरी लोगों से आत्मनिर्णय का लंबे समय से किया हुआ वादा तुरंत पूरा करना दक्षिण एशिया में स्थाई शांति और स्थिरता के लिए अपरिहार्य है।’

उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर पर सुरक्षा परिषद प्रस्ताव कहता है कि जम्मू कश्मीर के भविष्य की स्थिति ‘संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में लोकतांत्रिक तरीके से मुक्त और निष्पक्ष जनमत संग्रह’ से निर्धारित होगी। इन प्रस्तावों का पाकिस्तान, भारत और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने समर्थन किया था लेकिन अब तक यह लागू नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा, ‘कश्मीर के लोगों के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार को इस्तेमाल करने का यही एक रास्ता है। यह कानून और नैतिकता का उपहास है कि इन प्रस्तावों को मंजूर किए जाने के दशकों बाद भी जम्मू कश्मीर के लोग इस मौलिक अधिकार से महरूम हैं।’

उन्होंने सितंबर में महासभा की चर्चा के दौरान दिए गए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बयान का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कश्मीरी लोगों की इच्छा के मुताबिक मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान का फिर से आह्वान किया था। शरीफ ने यह भी कहा था कि कश्मीरी लोग विवाद का ‘अभिन्न हिस्सा’ हैं और एक शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने के लिए उनके साथ विमर्श जरूरी है। उन्होंने जम्मू कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी सतत असफलता बताया था।

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