अगले हफ्ते होने जा रहे पेरिस शिखर सम्मेलन के पहले दिन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अलग से मुलाकात करेंगे। ऐसा वे इन प्रयासों के तहत करेंगे जिससे कि जलवायु परिवर्तन के बारे में एक मजबूत वैश्विक समझौता होने को लेकर अमेरिका प्रमुख पक्षकारों के साथ तालमेल कर सके।
पेरिस जलवायु सम्मेलन में एक ‘महत्त्वकांक्षी व संतोषजनक’ समझौते के लिए प्रयासरत ओबामा 30 नवंबर को मोदी से मिलेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति इस शिखर सम्मेलन के शुरू होने से पहले ही चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी मिलेंगे। वाइट हाउस ने घोषणा की है कि ओबामा की विश्व के इन प्रमुख नेताओं से ये मुलाकातें जलवायु परिवर्तन पर एक मजबूत वैश्विक समझौता तैयार करने के प्रयासों के तहत होंगी।
अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बेन रोडेस ने पत्रकारों को बताया कि चीन, भारत और फ्रांस के नेताओं से मिल कर अमेरिका यह स्पष्ट संकेत देना चाहता है कि वह जलवायु परिवर्तन पर एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय समझौता करने के लिए प्रमुख पक्षकारों से मिल कर कार्य करेगा। साल 2014 के बाद से ओबामा और मोदी के बीच यह सातवीं मुलाकात होगी।
रोडेस ने बताया, ‘हम पूरे साल भारत के साथ इस बारे में बात करते रहे कि वे पेरिस में सफल परिणाम के लिए किस तरह रचनात्मक योगदान कर सकते हैं’। मोदी और ओबामा ने अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान, न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में द्विपक्षीय मुलाकात में और हालिया शिखर सम्मेलनों (जिनमें दोनों नेता शामिल हुए थे) से अलग इस संबंध में बात की थी। एक सवाल के जवाब में रोडेस ने कहा कि भारत और चीन जैसे बड़े उत्सर्जकों का सहयोग ‘जलवायु परिवर्तन पर पेरिस शिखर सम्मेलन की सफलता के लिए अहम है’।
उन्होंने कहा, ‘अगर इसे सफल होना है तो हमें इससे जुड़े कई देशों की जरूरत होगी। कोपेनहेगन वार्ता का यह सबक था कि अगर आप इसे किसी निश्चित स्वरूप तक सीमित करते हैं तो संभवत: आप क्योटो देशों तक या देशों की बेहद छोटी संख्या तक ही सीमित रह जाएंगे’।
रोडेस ने कहा, ‘यह केवल अमेरिका के बारे में ही सवाल नहीं है बल्कि यह भी सवाल है कि क्या चीन, भारत और ब्राजील तथा अन्य बड़े उत्सर्जक इस फ्रेमवर्क का हिस्सा हैं’। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने शिखर सम्मेलन में भागीदारी कर रहे देशों के लिए गुंजाइश बढ़ा दी है।