पाकिस्तान द्वारा आतकंवादी समूहों को पनाहगाह मुहैया कराने का स्पष्ट जिक्र करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र से कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हक्कानी नेटवर्क, लश्कर ए तैयबा एवं जैश ए मोहम्मद जैसे संगठनों को अफगानिस्तान के बाहर से मिलने वाले समर्थन की समस्या से तत्काल निपटने की आवश्यकता है। अमेरिका में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने अफगानिस्तान में हालात पर सुरक्षा परिषद के सत्र में कहा, ‘अनुभव के साथ साथ अकादमिक अनुसंधान इस बात को पर्याप्त समर्थन मुहैया कराता है कि जिन संघर्षों में वैध सरकारी प्राधिकारियों के खिलाफ लड़ने वाली परोक्ष ताकतों को विदेशी सहायता मिलती है, वे अन्य संघर्षों की तुलना में अधिक भीषण होते हैं और अधिक समय तक चलते हैं।’ अकबरुद्दीन ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति इस बात पर निर्भर करती है कि आतंकवादी समूहों एवं व्यक्तियों को देश के पडोस में पनाहगाह नहीं मिल पाएं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तालिबान एवं अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों को अफगानिस्तान से बाहर उनके समर्थकों से मिलने वाले समर्थन की समस्या से निपटना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘यदि हमें अफगानिस्तान में स्थायी शांति लानी है तो इसके लिए यह जरूरी है कि अफगानिस्तान के लोगों एवं सरकार के खिलाफ हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देने वाले समूहों एवं व्यक्तियों को अफगानिस्तान के पड़ोस में पनाहगाह मुहैया नहीं कराए जाए।’
अकबरुद्दीन ने सोमवार (19 दिसंबर) को यहां कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय कानून के तानेबाने से पूरी तरह बाहर रहकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देने वाले तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, दाएश, अल कायदा और लश्कर ए तैयबा एवं जैश ए मोहम्मद जैसे उससे संबद्ध समूहों को अफगानिस्तान के बाहर से परोक्ष समर्थकों से जो समर्थन मिलता है, उससे निपटना अनिवार्य है।’ उन्होंने 15 देशों की परिषद की एक बैठक में कहा कि यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान में संस्थाओं, ढांचागत सुविधाओं एवं नेटवर्कों के पुनर्निर्माण के राष्ट्रों के प्रयास को ‘कमजोर’ किया जा रहा है, ‘स्कूल नष्ट किए जा रहे है, मस्जिदों में बमबारी की जा रही है और धार्मिक सभाओं को निशाना बनाया जा रहा है।’ अकबरुद्दीन ने पाकिस्तान का परोक्ष लेकिन मजबूत जिक्र करते हुए कहा, ‘यह भी स्पष्ट है कि इन जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले अपराधी अब भी जीवित हैं और बाहर से मिलने वाले समर्थन एवं पनाहगाहों की बदौलत ही फल फूल रहे हैं।’ उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश जब भी अफगानिस्तान में हालात पर चर्चा करते हैं तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय हर बार अफगान लोगों के साथ होने की प्रतिबद्धता व्यक्त करता है लेकिन गए अफगान नागरिकों एवं सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ती जा रही है। अकबरुद्दीन ने जोर दिया कि अफगानिस्तान में हालात से निपटने के अपने तरीके के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को फिर से मनन करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि क्या उसमें सुधार की आवश्यकता है।