अमेरिका ने भारत में उच्च स्तरीय हथियारों की बिक्री का बड़ा बाजार खड़ा कर लिया है। वर्ष 2016 में जो कवायद शुरू की गई थी, वह अब सतह पर दिखने लगी है। जापान, कोरिया या तुर्की की तरह भारत रक्षा सौदों के मामले में अमेरिका का सहयोगी नहीं है, फिर भी सौदों में जबरदस्त इजाफा हुआ है। अमेरिकी सरकार और पेंटागन ने अपने कीमती लेकिन उच्च स्तरीय हथियारों की बिक्री का रास्ता साफ कर दिया। कभी भारत के प्रमुख सहयोगी देश रहे रूप पर निर्भरता काफी कम हुई है और अमेरिका पर बढ़ी है।
सऊदी अरब के बाद हथियारों की खरीद करने वाला भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। 2016 में अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा सहयोगी (डिफेंस पार्टनर) का दर्जा दिया। भारत-अमेरिका के बीच परमाणु और सामरिक समझौते के बाद से अमेरिकी उच्च स्तरीय हथियारों और जहाजों की बिक्री के लिए अब दरवाजे खुले। भारतीय रक्षा उद्योग के लोगों का मानना है कि युद्धक्षेत्र में तकनीक की भूमिका बढ़ी है और रूस इस चुनौती में पीछे छूट रहा है। इस कारण इस वजह से भारत रूस की बजाय अमेरिका की तरफ जा रहा है। रूस के मिग 21 और मिग 35 हेलिकॉप्टरों की जगह अमेरिकी अपाचे हेलिकॉप्टर भारतीय सैन्य बलों की पसंद बन रहे हैं। मिग 26 की जगह चिनूक सीएच46 हेलिकॉप्टर शामिल हो रहे हैं।
हिंद महासागर में भारत की चुनौतियां और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पांव पसारता चीन भी इसकी एक बड़ी वजह है। रूस के मुकाबले इस क्षेत्र में अमेरिका की पहुंच और सैन्य ठिकाने कहीं गुना ज्यादा हैं। अमेरिकी पी8आई के जरिए भारत और अमेरिका चीन की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं। रूस के साथ होने वाले एक-दो जंगी अभियान के मुकाबले भारत-अमेरिका कम से कम 20 से 24 द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यास कर रहे हैं। भारत-अमेरिकी सेनाओं को साथ काम करने और संपर्क साधने में आसानी हो, इसके लिए लेमोआ और कॉमकासा जैसे समझौते हो रहे हैं।
12 साल में भारत ने अमेरिका से 18 अरब डॉलर के हथियार खरीदे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे से पहले भारत सरकार की सुरक्षा मसलों की कैबिनेट कमेटी आॅन सिक्योरिटी (सीसीएस) ने 2.6 अरब डॉलर की लागत से 24 एमएच 60आर मल्टीरोल हेलिकॉप्टर खरीदने के सौदे को मंजूरी दे दी। इसके अलावा कम से कम आठ से 10 अरब डॉलर के रक्षा सौदों पर भी दोनों देशों के बीच चर्चा जारी है। एक समय में भारत अपनी जरूरत के 75 फीसद हथियार और सैन्य उपकरण रूस से खरीदता था। आज यह खरीद घटकर 60 से 62 फीसद पर आ गई है। हालांकि, भारत की महत्त्वपूर्ण ब्रह्मोस परियोजना में रूस भागीदार है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत रूस से एस400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीद रहा है। लेकिन सोवियत दौर के खरीदे हुए हथियार, पुर्जे और मरम्मत से जुड़ी देरी और कीमतों को लेकर भारतीय सैन्य बलों की शिकायतें रही हैं। इसके मद्देनजर लड़ाकू विमानों से लेकर पनडुब्बी तक की खरीद में अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन जैसे देश प्राथमिकता में आ गए।
नौसैन्य सुरक्षा के लिहाज से देखें तो समुद्र में तैनात जहाजों को सबसे ज्यादा खतरा दुश्मनों की पनडुब्बियों से है। इन पनडुब्बियों के खिलाफ इन मल्टीरोल हेलिकॉप्टर की निगरानी और मारक क्षमता अहम सुरक्षा कवच है। अमेरिका से एक साल के भीतर चार-पांच हेलिकॉप्टर भारत को मिलने की उम्मीद है। इन हेलिकॉप्टरों का यूएसएस गेराल्ड आर फोर्ड में परीक्षण चल रहा है। आज हिंद महासागर क्षेत्र (आइओआर) में चीन-पाकिस्तान समेत विभिन्न देशों के 40-50 जहाजों की मौजूदगी दर्ज की जा रही है। तर्क दिया जा रहा है कि ऐसे में तटीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थायित्व के लिए बहुउद्देश्यीय अमेरिकी एमएच 60आर हेलिकॉप्टर कारगर माने जा रहे हैं।