केंद्र सरकार ने कुछ अरसा पहले आत्मनिर्भर भारत के नारे के तहत कई नीतियां घोषित की थीं। कहा गया कि सरकार विदेशों पर निर्भरता खत्म कर रही है। जल्द से जल्द हर वह सामान भारत में बनेगा, जो अभी बाहर से मंगवाया जा रहा है। इसके लिए कई नीतिगत बदलाव किए गए। पर कोरोना विषाणु संक्रमण की दूसरी लहर की वजह से केंद्र सरकार ने न सिर्फ पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के 16 साल पुराने नियम को बदल डाला, बल्कि चीन समेत 40 से ज्यादा देशों से अनुदान और अन्य मदद भी कबूल की हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार 2004 से 2014 तक केंद्र में रही। दिसंबर 2004 में जब दक्षिण भारतीय तटीय इलाकों में सुनामी ने तबाही मचाई, तब मनमोहन सिंह ने विदेशी मदद की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि हम अपने स्तर पर हालात से निपट सकते हैं। जरूरत पड़ेगी तो ही विदेशी सहायता लेंगे। खैर, उसके बाद कभी जरूरत पड़ी नहीं। तब केंद्र सरकार ने जो कहा, उस पर कायम रही। 2005 के कश्मीर भूकंप, 2013 की उत्तराखंड की बाढ़ और 2014 की कश्मीर बाढ़ की राष्ट्रीय आपदाओं के समय भी मनमोहन सिंह ने न तो किसी और देश से राहत मांगी और न ही उनकी पेशकश को स्वीकार किया। और तो और अगर कोई देश मदद की पेशकश करता तो उसे सम्मान के साथ मना कर दिया जाता।
हालांकि, भारत सरकार की हमेशा से नीति ऐसी नहीं रही। इससे पहले उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल तूफान (2002) और बिहार की बाढ़ (2004) में भारत ने विदेशों से राहत कार्यों में मदद ली थी। अब आते हैं 2014 के बाद की नीतियों पर। वर्ष 2018 की केरल बाढ़ के समय राज्य सरकार ने कहा था कि 700 करोड़ रुपए की सहायता की पेशकश यूएई ने की है। पर केंद्र सरकार ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। राज्य में जो भी राहत एवं पुनर्वास के काम होंगे, उसके लिए घरेलू स्तर पर ही पैसा जुटाया जाएगा। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में जरूर मोदी सरकार की विदेश नीति में तीन बड़े बदलाव हुए हैं।
पहला, चीन से आॅक्सीजन संबंधी सामान और जीवनरक्षक दवाएं लेने में कोई वैचारिक समस्या नहीं है। पाकिस्तान से मदद ली जाए या नहीं, इस पर सरकार विचार कर रही है। कोई फैसला नहीं हुआ है। संभावना कम ही है कि मदद स्वीकार की जाएगी। दो, राज्य सरकार विदेशों से जांच किट से लेकर दवाएं तक खरीद सकेंगी। साथ ही किसी भी तरह की मदद प्राप्त कर सकेंगी। इसमें केंद्र सरकार या उसकी कोई नीति आड़े नहीं आएगी। यह नीतिगत स्तर पर बड़ा बदलाव है। तीसरे, सरकार ने विदेशों से उपहार, अनुदान और अन्य मदद स्वीकार करने शुरू कर दिए हैं। यह बड़ा बदलाव है, क्योंकि 2004 के बाद यह पहली बार हो रहा है। चीन को लेकर नीति में क्या बदलाव किया है? पिछले साल सीमा पर संघर्ष के बीच भारत ने चीन के साथ कई सौदे रद्द कर दिए थे।
कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं। अब नई नीति के तहत आॅक्सीजन से जुड़े उपकरण खरीदने को केंद्र ने मंजूरी दे दी है। भारत में चीनी राजदूत सुन विडोंग ने इस बात की पुष्टि की कि चीनी कंपनियां भारत से मिले आॅर्डर को पूरा करने के लिए अतिरिक्त काम कर रही हैं। कम से कम 25 हजार आॅक्सीजन सांद्रक के आॅर्डर उन्हें मिले हैं। अब तक 40 देशों ने सहायता की पेशकश की है। इनमें पड़ोसियों से लेकर दुनिया की महाशक्तियां तक शामिल हैं। भूटान आॅक्सीजन की आपूर्ति कर रहा है, वहीं अमेरिका एस्ट्राजेनेका के टीके भेजने वाला है।
अमेरिका, भूटान के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्वीडन, आॅस्ट्रेलिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, हांगकांग, न्यूजीलैंड, मॉरीशस, थाईलैंड, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, इटली और यूएई ने राहत सामग्री भेज दी है या भेजने वाले हैं। इसके अलावा भी कई देश राहत सामग्री भेजने वाले हैं।
सरकार इस नीतिगत बदलाव को स्वीकार नहीं कर रही है। अधिकारियों का कहना है कि भारत ने किसी से मदद की अपील नहीं की है और यह खरीद से जुड़े निर्णय हैं। अगर कोई सरकार या निजी संस्था उपहार के तौर पर अनुदान दे रही है तो हमें उसे कृतज्ञता के साथ स्वीकार करना चाहिए। विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला का कहना है कि इसे नीतिगत बदलाव नहीं कहा जाना चाहिए। हमने दूसरे देशों की मदद की। अब हमें मदद मिल रही है। दुनिया के सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
सामग्री उपयोग की नीति
सरकार ने विदेशों से मिले सामान के इस्तेमाल की नीति तय कर रखी है। भारत सरकार ने सभी विदेशी सरकारों और एजंसियों से भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी को दान देने को कहा है। इसके बाद अधिकार प्राप्त समूह तय करेगा कि इस मदद का इस्तेमाल किस तरह, कहां और कब किया जाएगा।