शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक और सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। बैठक में भारत की मौजूदगी विशेष रूप से ध्यान आकर्षित कर रही है, क्योंकि इसमें चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की भागीदारी है, जिनके साथ भारत के संबंध जटिल और संवेदनशील रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इस मंच से भारत को क्या उम्मीदें हैं और यह भारत के लिए किस प्रकार की चुनौतियां और अवसर लेकर आएगा?

भारत के लिए SCO एक महत्वपूर्ण मंच है, जहां वह न केवल चीन और पाकिस्तान के साथ सीधे तौर पर संवाद कर सकता है, बल्कि मध्य एशियाई देशों के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को भी मजबूत कर सकता है। SCO की स्थापना 2001 में शंघाई फाइव समूह के रूप में हुई थी, जिसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल थे। भारत और पाकिस्तान को 2017 में इस संगठन का पूर्ण सदस्य बनाया गया, और तब से SCO के माध्यम से भारत ने मध्य एशिया में अपनी मौजूदगी को बढ़ाने की कोशिश की है।

मध्य एशिया में भारत के हित

भारत के लिए SCO इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके सदस्य मध्य एशियाई देश, जैसे कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, और ताजिकिस्तान, भारत के लिए सुरक्षा, ऊर्जा और कनेक्टिविटी के लिहाज से अहम हैं। भारत की ऊर्जा जरूरतों का 85% आयात पर निर्भर है, और मध्य एशिया के पास विश्व के कुछ सबसे बड़े ऊर्जा भंडार हैं। तुर्कमेनिस्तान में प्राकृतिक गैस का चौथा सबसे बड़ा भंडार है, जबकि कजाकिस्तान यूरेनियम उत्पादन में विश्व का सबसे अग्रणी देश है। ऐसे में SCO भारत को इन देशों के साथ ऊर्जा साझेदारी के नए अवसर प्रदान करता है।

भारत इन देशों के साथ न केवल ऊर्जा बल्कि सुरक्षा के क्षेत्र में भी सहयोग करता है। भारत और कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ नियमित रूप से सैन्य अभ्यास करते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधी सहयोग को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, SCO का क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचा (RATS) भारत के लिए खासा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत को आतंकवाद से निपटने के लिए एक बहुपक्षीय मंच प्रदान करता है। SCO के तहत विभिन्न देशों के बीच आतंकवाद से निपटने के लिए खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है, जो कि भारत के लिए एक अहम सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है।

चीन और पाकिस्तान के साथ चुनौतीपूर्ण संबंध

SCO में भारत की उपस्थिति का एक बड़ा कारण चीन के साथ इसकी प्रतिस्पर्धा है। भारत और चीन के बीच संबंध कई मोर्चों पर जटिल हैं, खासकर सीमा विवाद और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को लेकर। फिर भी, भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह इस क्षेत्रीय संगठन में अपनी उपस्थिति बनाए रखे ताकि चीन के प्रभुत्व का मुकाबला किया जा सके। भारत का मानना है कि अगर चीन मध्य एशिया में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, तो भारत को भी वहां मौजूद रहना चाहिए और एक संतुलित शक्ति के रूप में काम करना चाहिए। पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में हमेशा तनाव रहा है, और ऐसे में जयशंकर की इस्लामाबाद यात्रा का खास महत्व है।

हालांकि, भारत की स्पष्ट नीति है कि आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते, फिर भी भारत ने SCO की बैठक में भाग लेने का निर्णय लिया है, जो इस बात का संकेत है कि भारत SCO को गंभीरता से लेता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटना चाहता। पाकिस्तान के साथ इस बैठक के माध्यम से कोई सीधा संवाद होने की संभावना नहीं है, क्योंकि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर किसी प्रकार का समझौता करने के मूड में नहीं है।

आतंकवाद और सुरक्षा पर जोर

SCO के प्रमुख मुद्दों में से एक आतंकवाद रहा है, और इस बैठक में भी आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर चर्चा होने की संभावना है। हाल ही में पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर हुए हमलों ने इस विषय को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह इस मंच पर आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाए और पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाए। SCO के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे के माध्यम से साझा की गई सूचनाओं के परिणामस्वरूप सदस्य देश 500 से अधिक आतंकवादी अभियानों का मुकाबला करने में सक्षम रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए SCO आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मंच बना हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने SCO को “SECURE” दृष्टिकोण से परिभाषित किया है, जहां एस का मतलब सुरक्षा, ई का अर्थ आर्थिक विकास, सी का मतलब कनेक्टिविटी, यू का मतलब एकता, आर का अर्थ क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान और ई का मतलब पर्यावरण संरक्षण है। यह दृष्टिकोण बताता है कि भारत SCO में सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को भी महत्व देता है।

इसके अलावा, भारत SCO में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना पर अपने अनुभव को साझा करने की इच्छा रखता है, जैसा कि उसने हाल ही में G20 में किया था। भारत इस मंच का उपयोग डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को सुधारने के लिए कर सकता है, जो उसकी वैश्विक रणनीति का हिस्सा है।

SCO की बैठक में ईरान और बेलारूस की हालिया सदस्यता के साथ, यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध और इज़राइल और हमास के बीच के संघर्ष पर भी चर्चा होने की संभावना है। ये दोनों युद्ध क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं, और SCO के सदस्य देशों के लिए यह आवश्यक हो सकता है कि वे इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करें। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह इस बहुपक्षीय मंच का उपयोग अपनी विदेश नीति को और मजबूती देने के लिए करे।

SCO की बैठक में भारत की भागीदारी न केवल सामरिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ जटिल संबंधों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। चीन और पाकिस्तान के साथ प्रतिस्पर्धा और मतभेदों के बावजूद, भारत इस बैठक से सुरक्षा, व्यापार, और कनेक्टिविटी के नए अवसरों की उम्मीद कर सकता है।