ताइवान को लेकर चीन किसी भी दूसरे देश का दखल मानने को तैयार नहीं है। अमेरिका ताइवान की चीन के खिलाफ मदद करता रहता है। लिहाजा ड्रैगन एक खास तरह की रणनीति सलामी स्लाइसिंग पर काम करने लगा है। यानि वो धीरे-धीरे ताइवान की जमीन को निगलने का काम कर रहा है।
चीन सलामी-स्लाइसिंग के जरिए दूसरे देश की जमीन को काटकर अपने हिस्से में मिलाने की कोशिश कर रहा है। बीजिंग ने भूटान के साथ नेपाल में इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कब्जा कर लिया है। चीन ने तिब्बत में अपनी सैन्य सुविधाओं को भी मजबूत किया है। इस क्षेत्र में सैन्य बुनियादी ढांचे की वृद्धि देखी जा रही है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल अब ताइवान में कर रहा है।
बीजिंग ताइवान को एक अलग प्रांत के रूप में देखता है। इसका कहना है कि ताइवान को चीनी संप्रभुता को स्वीकार करना चाहिए। चीन ताइवान को अपने साथ मिलाने के लिए बलप्रयोग करने की भी बात कह चुका है। दूसरी तरफ अमेरिका 1979 के ताइवान संबंध अधिनियम का पालन करता है। उसकी कोशिश है कि चीन ताइवान को अपने कब्जे में न ले सके।
अमेरिका चीन को हथियार नहीं बेचता है। लेकिन वह ताइवान को रक्षा करने के लिए हथियार मुहैया कराता है। ड्रैगन को अमेरिकी रुख अपने मुफीद नहीं लगता है। यही वजह है कि ताइवान को हथियार बेचने पर अमेरिकी बाइडन प्रशासन के खिलाफ कड़े तेवर अख्तियार कर लेता है। अमेरिकी दखल के बावजूद चीन ताइवान पर दावा करता है।
चीन ने हाल ही में अमेरिका की दो डिफेंस कंपनियों पर बैन लगा दिया था। बीजिंग ने लॉकहीड मार्टिन और रेथियॉन टेक्नोलॉजी पर ताइवान को हथियारों की ब्रिकी करने पर ये बैन लगाया है। चीन का कहना है कि ताइवान के साथ हथियारों के सौदे ने देश के सुरक्षा हितों और द्विपक्षीय संबंधों को कमजोर कर दिया है। दोनों कंपनियों ने ताइवान को 100 मिलियन डॉलर के हथियारों की बिक्री का ऐलान किया है। वैसे ये तीसरी बार है जब चीन ने ताइवान को हथियारों की बिक्री पर दोनों कंपनियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की घोषणा की है।
