China Djibouti Navel Base: चीन लागातार हिंद महासागर में अपने पांव पसार रहा है। पाकिस्तान में ग्वादर और फिर श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर मजबूत पकड़ बनाने के बाद हिंद महासागर के अन्य पोर्ट पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने जा रहा है। यह चीनी पोर्ट अफ़्रीकी देश जिबूती में स्थित है। ये चीन का पहला विदेशी सैन्य अड्डा है, जिसका अब परिचालन चीन की ओर से शुरू कर दिया गया है।
चीन ने इस पोर्ट को नौसेना का बेस बनाने के लिए हॉर्न ऑफ अफ्रीका मे स्थित अफ्रीकी देश जिबूती से 2015 में लीज पर लिया था, जिसके बाद मार्च 2016 से ही चीन ने इस पोर्ट को नौसेना बेस बनाने का कार्य शुरू कर दिया था। एक अनुमान के मुताबिक, इस नौसेना बेस को बनाने के लिए चीन ने 590 मिलियन डॉलर (करीब 4,690 करोड़ रुपए) खर्च किए हैं।
जिबूती के दोरालेह पोर्ट का सामरिक महत्व
चीन के दोरालेह नौसेना बेस के सामरिक महत्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह यूरोप को एशिया के जोड़ने के वाली स्वेज कैनाल के मार्ग के पास गल्फ ऑफ अदन और लाल सागर के पास स्थित है, जिसके जरिए दुनिया का करीब 12 फीसदी से अधिक व्यापार होता है।
चीन ने बड़े युद्धक पोतों को किया तैनात
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने इस नौसेना बेस पर बड़े युद्धक पोत को तैनात किया है। इसमें चीनी युझाओ-क्लास के चांगबाई शान युद्धपोत है, जिसका इस्तेमाल मुख्यतौर पर हेलिकॉप्टर ऑपरेशन के लिए किया जाता है। यह 25,000 टन वजनी जहाज है, जिस पर 800 से अधिक सैनिकों को एक साथ तैनात किया जा सकता है। इसकी कुल लंबाई 320 मीटर की है।
बता दें, श्रीलंका की तरह जिबूती अर्थव्यवस्था भी कर्ज में डूबी हुई है। जिबूती पर कुल जीडीपी के मुकाबले 70 फीसदी से अधिक कर्ज है, जिसमें चीन की हिस्सेदारी है। कर्ज का भुगतान न करने के चलते श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को चीन ने 99 साल के लिए लीज पर ले लिया है।
चीन ने बढ़ाई अमेरिका और भारत की मुश्किलें
मौजूदा समय में हिंद महासागर को अमेरिका और भारत के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है। अमेरिका का डिएगो गार्सिया आइलैंड हिंद महासागर में सैन्य अड्डा है। भारत की पूरी नौसेना हिंद महासागर में ही कार्यरत रहती है। ऐसे में हिंद महासागर में चीन का नया नौसेना अड्डा भविष्य में भारत और अमेरिका की मुश्किल बढ़ा सकता है।