बांग्लादेश में अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है, आलम यह है कि वहां पर इतने दिनों बाद भी तनाव बना हुआ है। इस बीच बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हुए हमले ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। अब इसी कड़ी में अंतरिम सरकार के गृह मंत्री ने खुद इस बात को स्वीकार कर लिया है कि वे लोग हिंदुओं की सुरक्षा करने में नाकाम रहे हैं। अब यह बयान मायने रखता है क्योंकि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ काफी हिंसा देखने को मिली है, मंदिरों तक में तोड़फोड़ हुई है।

बांग्लादेश हिंसा: क्या बोले गृह मंत्री?

बांग्लादेश के नए होम एडवाइजर (गृह मंत्री) सखावत होसैन ने एक जारी बयान में कहा कि हिंदुओं की सुरक्षा करने में हम नाकाम रहे हैं। यह जिम्मेदारी मुस्लिम बहुसंख्यक समाज की थी कि उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए। हम हिंदू समाज को भविष्य में सुरक्षा का आश्वासन देते हैं और लगातार सुधार करेंगे। वैसे शपथ लेने के बाद अंतरिम सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में भी अल्पंसख्यक समाज का मुद्दा उठाया था।

भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति क्यों नहीं बन सकती?

हिंदुओं के खिलाफ हिंसा क्यों?

तब जारी बयान में लगातार हो रहे हिंदुओं पर हमले को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की गई थी। यहां तक कहा गया था कि कई अहम संगठनों के साथ इस मुद्दे को लेकर गहन चर्चा की जाएगी। अब जानकारी के लिए बता दें कि बांग्लादेश में हिंसा जरूर आरक्षण के मुद्दे को लेकर थी, उदेश्य जरूर शेख हसीना का इस्तीफा था। लेकिन उपद्रवियों ने उस मुद्दे के बहाने बांग्लादेश के हिंदुओं को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया। कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं, जिनमें बताया गया है कि मंदिरों में तोड़फोड़ हुई है, हिंदू पार्षदों तक को मारा गया है।

पिछले कुछ दिनों में बांग्लादेशी हिंदुओं को इस तरह से टॉर्चर किया गया है-

  • 26 जिलों में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा
  • ढाका के इस्कॉन मंदिर को जलाया गया
  • ढाका में काली मंदिर में तोड़फोड़
  • हिंदू नेताओं को बांग्लादेश में बनाया गया निशाना
  • हिंदू पार्षदों की पीट-पीट कर हत्या

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति

बांग्लादेश में इस समय 91 फीसदी मुसलमान हैं, 8% से भी कम हिंदुओं की आबादी है। अब हैरानी इस बात की नहीं है कि हिंदू सिर्फ 8 फीसदी के करीब हैं, चिंता का विषय यह है कि हिंदुओं की आबादी बांग्लादेश में साल दर साल घटती जा रही है। बांग्लादेश में 1971 में हिंदुओं की आबादी 13.5 प्रतिशत थी, 1991 तक आंकड़ा 10 फीसदी के आसपास पहुंच गया और अब यह 8 फीसदी से भी नीचे जा चुका है।