नवीन कक्कड़ अपनी पत्नी शीला और अपने बेटे निशांत के साथ लगभग तीन दशक पहले अफगानिस्तान (Afghanistan) भाग गए थे। ये वो समय था जब पहला तालिबान शासन काबुल (Kabul) पर नियंत्रण करने के लिए तैयार था। करीब तीन दशक बाद तालिबान के काबुल में वापस आने के साथ धार्मिक कट्टरपंथी समूह फिर से अपने पैर पसार रहे हैं। वहीं निशांत की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बावजूद पति-पत्नी के वीजा आवेदन सितंबर से अटके हुए हैं।
Germany में तीन हजार अफगान सिख और हिंदू परिवार बसे हैं
32 वर्षीय निशांत की फरवरी में ब्रेन अटैक से मृत्यु हो गई थी। नवीन कक्कड़ और उनकी पत्नी शीला अफगानिस्तान के हिंदू हैं, जिनके पास अभी भी अफगान पासपोर्ट हैं। दोनों पति-पत्नी भारतीय दूतावास (Indian Embassy) से हरिद्वार (Haridwar) की यात्रा करने और अपने बेटे की आत्मा को शांति देने के लिए वीजा की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं। जर्मनी में बसे लगभग 3,000 अफगान सिख और हिंदू परिवारों में से कई अभी भी अफगान पासपोर्ट के साथ वीजा प्राप्त करने में महीनों से विफल रहे हैं। भारतीय दूतावास या तो बिना कारण बताए आवेदनों को अस्वीकार कर रहा है या अभी तक उनपर कोई काम नहीं हुआ है।
जर्मनी में अफगान हिंदू कल्चरल एसोसिएशन (Afghan Hindu Cultural Association) के अध्यक्ष जगंथ गेरडेजी ने कहा कि अफगान सिखों और हिंदुओं के कम से कम सौ वीजा आवेदन लंबित हैं, जिनमें से कम से कम 20 ऐसे परिवार हैं जो गंगा अस्थि विसर्जन के लिए भारत जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “पिछले दो हफ्तों में यहां पांच और लोगों की मौत हुई है। ऑफ द रिकॉर्ड हमें बताया गया था कि अफगान पासपोर्ट वाले लोगों के लिए सुरक्षा चिंता थी। वीज़ा इनकार का कोई कारण हमें आधिकारिक तौर पर नहीं बताया गया है।”
विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा वीजा का ध्यान रखा जाता है। गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि अफगान पासपोर्ट धारकों को वीजा देने से इनकार करने की ऐसी कोई नीति नहीं है, लेकिन वीजा जारी करने की प्रक्रिया में समय लगता है। गृह मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा, “तालिबान के सत्ता में आने के बाद से सुरक्षा कारणों से अफगान नागरिकों के वीज़ा आवेदन रुके हुए हैं। उचित सत्यापन के बाद बैकलॉग को साफ किया जा रहा है।”
नवीन कक्कड़ ने फ्रैंकफर्ट से फोन पर द संडे एक्सप्रेस को बताया, “मेरा बेटा जिंदगी भर अपने पैरों पर नहीं चला। कम से कम वह अपनी आत्मा के लिए अंतिम शांति का हकदार है। हम प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी (Prime Minister Narendra Modi) से अनुरोध करते हैं कि कृपया हमारे वीजा जारी करें ताकि हम अपने बेटे की अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जित कर सकें।”