दुनिया में प्रदूषण की स्थिति साल दर साल खराब होती जा रही है। आलम यह है कि आज दुनिया में कोई भी देश विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) के द्वारा तय किये गए मापदंडों पर खरा नहीं उतर रहा है। आईक्यूएयर सर्वे के मुताबिक कोरोना महामारी के वक्त प्रदूषण की स्थिति आई गिरावट अब बिल्कुल समाप्त हो गई है और स्थिति पहले से भी अधिक खतरनाक हो गई है। डबल्यूएचओ के मापदंडों के मुताबिक हवा छोटे और खतरनाक वायुकण (PM 2.5) की संख्या 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके साथ डबल्यूएचओ ने यह भी कहा था कि कम घनत्व वाला पीएम 2.5 भी स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
स्विट्जरलैंड की प्रदूषण टेक्नोलॉजी कंपनी आईक्यूएयर ने पूरी दुनिया के 6475 शहरों का सर्वे कर वायु प्रदूषण के आंकड़ों को एकत्रित करके विश्लेषण किया है। इन आंकड़ों कई वाले खुलासे हुए हैं। सर्वे के मुताबिक केवल दुनिया के 3.4 फीसदी ही शहर ही डबल्यूएचओ के मापदंडों पर खरा उतर पाए हैं। वहीं दुनिया के 93 शहरों में वायु प्रदूषण तय मापदंडों से करीब 10 गुना अधिक है जिसमें अधिकतर शहर एशियाई महादीप से आते हैं।
आईक्यूएयर के वायु गुणवत्ता विज्ञान प्रबंधक क्रिस्टी स्क्रोडर के बताया “दुनिया में कई देशों ने वायु प्रदूषण में भारी कटौती की हैं। चीन ने इस दिशा में पिछले कुछ समय काफी बड़े कदम उठाए है और वे इसे लगातार कम भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ दुनिया में कई ऐसे देश है जहां वायु प्रदूषण बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
भारत की स्थिति:2021 में पिछले साल की तुलना में वायु गुणवत्ता में गिरावट आई है। देश की राजधानी दिल्ली अभी भी दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश बना हुआ है जबकि पहली बार इस लिस्ट में पहली बार शामिल हुआ अफ़्रीकी देश चाड दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है।
चीन की रैंक में पिछले साल के मुकाबले सुधार आया है। 2020 में सबसे प्रदूषित देशों की सूची में चीन की रैंक 14 वीं थी जो 2021 बढ़कर 22 वीं हो गई है। भिवंडी, गाजियाबाद और शिंगजियांग दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं।