सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर के कांग्रेसी नेता सैफुद्दीन सोज पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। इस बात को मानते हुए सर्वोच्‍च अदालत ने 29 जुलाई को सोज की पत्‍नी की याचिका खारिज कर दी। पत्‍नी ने याचिका में कहा था कि उनके पति को गैरकानूनी तरीके से नजरबंद रखा गया है।

याचिका खारिज होने के अगले ही दिन जब सोज ने श्रीनगर में अपने घर से बाहर निकलने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्‍हें रोक दिया। वहां मीडियावाले भी थे। 83 साल के सोज ने बाड़ लगी दीवार से झांक कर मीडियावालों से बात की। पुलिस उन्‍हें वहां से हटा कर ले गई। 29 जुलाई को भी जब सुप्रीम कोर्ट में जम्‍मू-कश्‍मीर प्रशासन ने बताया था कि वह नजरबंद नहीं हैं, तब सोज ने कहा था कि उन्‍हें घर से निकलने नहीं दिया जाता। 30 जुलाई को सोज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सरासर झूठ बताया गया है। इस गैरकानूनी नजरबंदी के खिलाफ वह फिर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।

सोज बोले- अगर मैं नजरबंद नहीं हूं तो मुझे घर से बाहर क्‍यों नहीं निकलने नहीं दिया जाता। मैंने 29 और 30 जुलाई को दो-दो बार बाहर जाने की कोशिश की, पर मुझे रोक दिया गया। मुझे 5 अगस्‍त, 2019 (जिस दिन धारा 370 हटाई गई थी) से ही नजरबंद रखा गया है। मैं इसके खिलाफ लड़ूंगा। उन्‍हें कैसे रोका गया, यह नीचे वीडियो में देखिए:

जिन्‍होंने झूठ बोलना तय कर लिया है उनको अपनी मस्‍ती में जीने दो, हम अपना काम करते रहेंगे। झूठ बनाम राजनीति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2018 का बयान सुनें… 

सैफुद्दीन सोज का बयान और तस्‍वीर आने के साथ ही सरकार पर अदालत में झूठ बोलने के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में हिंदी साहित्‍य के महान लेखक और व्‍यंग्‍यकार हरिशंकर परिसाई की रचना ‘न्‍याय का दरवाजा’ याद आती है।

इसमें परसाई ने न्‍यायिक व्‍यवस्‍था की खामियों पर करारा तंज कसा था और कहा था- झूठ बोलनेे के लिए सबसे सुरक्षित जगह अदालत है। वहां सुरक्षा के लिए भगवान और न्‍यायाधीश हाजिर होते हैं। ‘न्‍याय का दरवाजा’ का एक अंंश पढ़िए:

उसका मुँह देखता हूँ। होंठ ज़्यादा फटे हुए हैं। दाँत बाहर निकलने को हमेशा तत्पर रहते हैं। झूठे और बक्की आदमी का मुँह ऐसा हो जाता है। झूठे दो तरह के होते हैं – चुप्पा और भड़भड़या। चुप्पा परिपक्व झूठा होता है। वह एक-दो वाक्यों में झूठ जमा देता है।

भड़भड़या सोचता है, अभी झूठ जमा नहीं। इसलिए वह उसके समर्थन में आठ-दस वाक्य भड़भाड़ाकर बोल जाता है। इस धक्के से जबड़े फैलते जाते हैं। इसके जबड़े इसी तरह फैल गये हैं। इसका मुँह पके फोड़े की तरह है जिसमें झूठ का मवाद भरा है। ज़रा छेड़ने से मवाद बह निकलेगा।

वह खाँसकर गला साफ करता है । रुमाल मुँह पर फेरता है । लगता है, गवाही देने नहीं आया, न्याय की बेटी को ब्याहने दूल्हा बनकर आया है।

सरकारी वकील साधे-सधाए सवाल पूछता है और वह साधे-सधाए जवाब देता है । उसने अमुक आदमी को मृतक को लाठी मारते देखा था ।
उसे लाठी दिखाई गई, जिसे उसने किसी पुराने दोस्त की तरह पहचान लिया ।

उसे एक पत्थर का टुकड़ा दिखाया गया । उसने पत्थर भी पहचान लिया- यही वह पत्थर है, जो वहाँ पड़ा था ।

मैंने बगल में खड़े वकील दोस्त से कहा – यार यह क्या अंधेर है । यह किसी पत्थर के टुकड़े को कैसे पहचान लेगा ?

उसने कहा – चुप रहो, एविड्न्स एक्ट के मुताबिक ठीक है।

गवाह को खून लगी मिट्टी दिखाई गई । उसने मिट्टी को भी पहचान लिया ।

मैंने वकील दोस्त से कहा – यह तो बड़ा अचरज है, इसने मिट्टी को भी पहचान लिया । उसने कहा – चुप्प, एविडेन्स एक्ट !

मैंने सोचा – अब वकील इसे शीशी में बंद एक मक्खी दिखाएगा । पूछेगा – इस मक्खी को पहचानते हो ? गवाह कहेगा – यह वही मक्खी है, जो मारपीट के वक़्त वहाँ भनभना रही थी । मैंने पहचान लिया । इसकी शक्ल मेरी माँ से मिलती है ।

एविडेन्स एक्ट ! इसका कमाल है ।

हरीशचंद्र ने जिस ब्राह्मण को सपने में दान दिया था, उसे अगर जायदाद पर कब्ज़े के लिए अदालत जाना पड़ता, तो वह भी दो-चार चश्मदीद गवाह खड़े कर देता । वे कहते – हमारे सामने इस विप्र को राजा हरीशचंद्र ने दान दिया था । वकील पूछता – उस वक़्त तुम कहाँ थे? वे कहते – हम भी राजा साहब के सपने में ही थे ।

बचाव पक्ष का वकील ‘क्रॉस एग्ज़ॅमिनेशन’ के लिए ख़ड़ा हुआ । यह भयंकर चीज़ है । एक बार मेरे भी पलस्तर उखड़ चुके हैं । मैं सच बोल रहा था, पर वकील ने दो मिनट में मेरे सत्य को पसीना ला दिया था।

क्रॉस एग्‍जामिनेशन का बेहद व्‍यंग्‍यात्‍मक ब्‍योरा देने के बाद परसाई लिखते हैं- कई दिन लगातार मैं साक्ष्‍य का यह खेल देखता रहा। मैं हैरान कि बाहर तो सच्‍चा आदमी ढूंढे नहीं मिलता, मगर अदालत में इतने सच्‍चे किन अनजान कोनों से निकलकर इकट्ठे हो जाते हैं। झूठ बोलने के लिए सबसे सुरक्षित जगह अदालत है। वहां सुरक्षा के लिए भगवान और न्‍यायाधीश हाजिर होते हैं।

मेरा वकील दोस्‍त कहता है- यह सब कानून के मुताबिक है। अगर न्‍यायाधीश साक्ष्‍य पर विश्‍वास करता है तो फांसी। अगर नहीं करता, तो रिहाई।