शरीर में निर्मित सभी अपशिष्ट तरल पदार्थ पेशाब के जरिए बाहर निकलते हैं। पेशाब आना शरीर की जरूरी प्रक्रिया है लेकिन कुछ लोगों को बार-बार पेशाब आता है। पेशाब करना कोई आदत नहीं है बल्कि ये एक परेशानी होती है जिसका नाम है डायबेट्स इंसीपीडस (diabetes insipidus) है। हालांकि यह नाम से डायबिटीज है लेकिन इसमें डायबिटीज वाला कोई लक्षण नहीं है न ही यह बीमारी डायबिटीज से संबंधित है।
लेकिन यह बीमारी बहुत ही कष्टदायक है। नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक डायबेट्स इंसीपीडस 25 हजार लोगों में एक व्यक्ति को होती है। ज्यादा उम्र के लोगों में इस बीमारी का जोखिम ज्यादा होता है।
डायबेट्स इंसीपीडस (diabetes insipidus)क्या है?
डायबेट्स इंसीपीडस (diabetes insipidus)क्या है, इस बीमारी का कारण फोर्टिस अस्पताल नई दिल्ली में डायबेट्स एंड एंडोक्राइनोलॉजी के डायरेक्टर डॉ रितेश गुप्ता ने बताया कि यह एक रेयर डिसोर्डर है जिसमें यूरिन ज्यादा बनने लगता है। इसमें वेसोप्रेसीन हार्मोन की गतिविधियां प्रभावित होती है या इसकी कमी हो जाती है। वेसोप्रेसिन (vasopressin) हार्मोन दिमाग के हाइपोथैलमस से निकलता है। यह हार्मोन शरीर में तरल पदार्थों की मात्रा को नियंत्रित करता है।
डायबेट्स इंसीपीडस के कारण:
डायबेट्स इंसीपीडस के दो कारण होते है, पहला -दिमाग में वेसोप्रेसिन हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता। ब्रेन में इंज्युरी, ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन में इंफेक्शन या ब्रेन सर्जरी के कारण ऐसा हो सकता है। लेकिन अधिकांश मरीजों में वेसोप्रेसिन की कमी के कारण यह समस्या नहीं होती है। इस बीमारी का दूसरा कारण यह है कि किडनी वेसोप्रेसिन हार्मोन पर सही से प्रतिक्रिया नहीं देती। इसे नेफ्रोजेनिक डायबेट्स इंसीपीडस कहते हैं। आमतौर पर कुछ खास किस्म की दवाइयां लेने के कारण ऐसा होता है।
साइकेट्रिक डिसोर्डर की दवाई लेने से किडनी में यह परेशानी हो सकती है। इसके लक्षण क्या है-जैसे कि पहले बताया जा चुका है इस बीमारी में बार-बार पेशाब आने लगता है। इसे रोकना मुश्किल हो जाता है। गंभीर मरीज में एक दिन में 20 लीटर तक पेशाब हो सकता है, इसके साथ ही प्यास भी इसमें खूब लगती है।
डायबेट्स इंसीपीडस का इलाज क्या है:
इस बीमारी में कुछ खास तरह का टेस्ट कराना पड़ता है। गंभीर मरीज को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है। कुछ दिनों की निगरानी और दवाई से इस बीमारी को ठीक किया जाता है।