कॉरपोरेट और मीडिया इंडस्ट्री में कई लोग यह सोचकर दिन में सिर्फ एक-दो सिगरेट पी लेते हैं कि इससे कोई खास नुकसान नहीं होगा। लेकिन पल्मोनोलॉजिस्ट का कहना है कि यह धारणा पूरी तरह गलत है। एस्टर आरवी हॉस्पिटल की सीनियर स्पेशलिस्ट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. पूजा टी के अनुसार, दिन में केवल 2 सिगरेट पीने से भी शरीर पर असर एक महीने के अंदर दिखने लगता है। निकोटिन बहुत तेजी से दिमाग के रिवॉर्ड सिस्टम को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे लत की नींव डाल देता है।
निकोटिन कैसे करता है दिमाग पर असर
डॉ. पूजा बताती हैं कि निकोटिन एक फास्ट-एक्टिंग केमिकल है। इसकी छोटी और नियमित मात्रा भी दिमाग को इसकी आदत डाल देती है। शुरुआत में हल्की क्रेविंग होती है, लेकिन यही आगे चलकर आदत और फिर लत का रूप ले लेती है। कई लोग समझ ही नहीं पाते कि वे कब नियमित स्मोकर बन गए।
सबसे पहले दिल पर पड़ता है असर
दिन में दो सिगरेट भी हार्ट और ब्लड वेसल्स पर सीधा असर डालती हैं। निकोटिन हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर को अस्थायी रूप से बढ़ा देता है और रक्त नलिकाओं को संकुचित कर देता है। इससे दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। डॉ. पूजा के अनुसार, लगातार ऐसा होने से खून थोड़ा चिपचिपा हो जाता है, जिससे खून के थक्के (क्लॉट) बनने का खतरा बढ़ता है और शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचने में कमी आने लगती है।
फेफड़ों को भी होता है नुकसान
हल्की स्मोकिंग का असर फेफड़ों पर भी साफ दिखता है। सिगरेट का धुआं एयरवे की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचाता है, जिससे सूजन और ज्यादा बलगम बनने लगता है। एक महीने के भीतर ही गले में जलन, हल्की खांसी, सीने में जकड़न या एक्सरसाइज करते समय सांस फूलने जैसी समस्याएं शुरू हो सकती हैं। डॉ. पूजा बताती हैं कि लोग अक्सर इन लक्षणों को मौसम या सामान्य थकान समझकर नजरअंदाज कर देते हैं।
इम्युनिटी और स्किन पर भी असर
सिगरेट में मौजूद जहरीले केमिकल्स शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ाते हैं। इससे इम्युनिटी कमजोर होती है और घाव भरने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इसके अलावा ब्लड फ्लो कम होने से स्किन डल दिखने लगती है, मुंह और मसूड़ों में जलन या सूजन की समस्या भी हो सकती है। यानी असर सिर्फ अंदरूनी अंगों तक सीमित नहीं रहता।
क्या यह नुकसान हमेशा के लिए होता है?
अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति सिर्फ एक महीने तक दिन में 2 सिगरेट पीता है और फिर छोड़ देता है, तो ज्यादातर मामलों में स्थायी नुकसान नहीं होता। डॉ. पूजा के अनुसार, स्मोकिंग जल्दी छोड़ने पर शरीर खुद को काफी हद तक रिपेयर कर लेता है। लेकिन वह यह भी चेतावनी देती हैं कि माइक्रोस्कोपिक स्तर पर कोशिकाओं को नुकसान शुरू हो चुका होता है, खासकर फेफड़ों और रक्त नलिकाओं में। अस्थमा, हार्ट डिजीज या जेनेटिक रिस्क वाले लोगों में इसका असर ज्यादा और लंबे समय तक रह सकता है।
लाइट सिगरेट भी नहीं है सुरक्षित
कई लोग मानते हैं कि लाइट, लो-टार या फिल्टर सिगरेट कम नुकसानदेह होती हैं। लेकिन डॉ. पूजा के अनुसार, सभी तरह की सिगरेट, चाहे लाइट हो, बीड़ी हो या हैंड-रोल्ड तंबाकू… शरीर में निकोटिन और हजारों जहरीले केमिकल पहुंचाती हैं। भारत में बीड़ी कई मामलों में ज्यादा निकोटिन और कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ती है, जिससे दिल और फेफड़ों को और ज्यादा नुकसान हो सकता है।
पहली बार पीने वालों और नियमित स्मोकर में फर्क
पहली बार सिगरेट पीने वालों को चक्कर आना, उलटी, घबराहट, दिल की धड़कन तेज होना, सिरदर्द और गले में जलन जैसे लक्षण ज्यादा महसूस होते हैं। वहीं आदतन स्मोकर को तुरंत लक्षण कम दिखते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर नुकसान बढ़ता रहता है, जो आगे चलकर फेफड़ों की बीमारी, हार्ट डिजीज, स्ट्रोक और कैंसर का खतरा बढ़ा देता है।
निष्कर्ष
डॉ. पूजा के अनुसार, हल्की स्मोकिंग भी सुरक्षित नहीं है। असली खतरा इस बात में है कि दिमाग कितनी जल्दी निकोटिन का आदी बन जाता है।
जो चीज मजाक या प्रयोग के तौर पर शुरू होती है, वही आगे चलकर आदत और फिर गंभीर बीमारी की वजह बन सकती है। समय रहते सिगरेट छोड़ना ही शरीर को पूरी तरह स्वस्थ रहने का सबसे अच्छा मौका देता है।
एस्टर आरवी हॉस्पिटल में सीनियर स्पेशलिस्ट पल्मोनोलॉजिस्ट,डॉ. पूजा टी पल्मोनोलॉजी टीम की अहम सदस्य हैं और सांस से जुड़ी बीमारियों के इलाज की एक्सपर्ट हैं। ये रेस्पिरेटरी केयर, डायग्नोस्टिक व थैरेप्यूटिक प्रोसीजर्स, स्लीप मेडिसिन और क्रिटिकल केयर सेवाएं देती हैं। मरीज उनके सौम्य, धैर्यवान और उपचार की सराहना करते हैं।
डिस्क्लेमर
यह स्टोरी सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार की गई है। किसी भी तरह के स्वास्थ्य संबंधी बदलाव या डाइट में परिवर्तन करने से पहले अपने डॉक्टर या योग्य हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
