पैंक्रियाटिक यानी अग्न्याशय का कैंसर घातक माना जाता है। हाल में इसका टीका इजाद किया गया है, जिसे प्रभावी पाया गया है। यह एमआरएनए टीका है, जो सर्जरी के बाद रसौली (ट्यूमर) को फिर से उभरने से रोक सकता है। एक अध्ययन के मुताबिक, पैंक्रियाटिक कैंसर से पीड़ित 10 में से 9 लोग दम तोड़ देते हैं। बीते साठ साल में बचने की गुंजाइश के इस दर में कोई सुधार नहीं आया है। असरदार उपचार भी नहीं है।
हाल में अमेरिका में शोधकर्ताओं ने अग्न्याशय कैंसर के 16 मरीजों को एमआरएनए वैक्सीन लगाई। उससे पहले उनके ट्यूमर निकाल लिए गए थे। 18 महीने की परीक्षण अवधि के अंत में आधे मरीजों में बीमारी दोबारा नहीं हुई। सर्जरी के कुछ ही महीनों में लौट आने वाली कैंसर जैसी बीमारी के उपचार में ये प्रयोग एक बड़ी कामयाबी है।
टीके के प्रयोग को लेकर मिली सफलता से पैंक्रियाटिक कैंसर के विशेषज्ञ उत्साहित हैं। हाइडलबर्ग में जर्मन कैंसर शोध केंद्र में ट्यूमर इम्युनोलाजिस्ट नील्स हलामा ने ताजा घटनाक्रम को अद्भुत और अप्रत्याशित बताया। उल्म स्थित ग्रैस्टोएंट्रोलाजिस्ट थोमास ज्युफरलाइन ने इसे पूरी तरह से नई पद्धति वाली निर्णायक सफलता करार दिया। उनके सहकर्मी अलेक्सांद्र क्लेगर ने इसे चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति लाने वाला बड़ा कदम बताया।
कुल 16 मरीजों पर किए गए इस अध्ययन के निष्कर्ष नेचर पत्रिका में प्रकाशित किए गए। अध्ययन का दायरा छोटा था, लेकिन सबसे घातक और लगभग लाइलाज कैंसर में से एक के उपचार में एमआरएनए तकनीक के सफल उपयोग का यह पहला उदाहरण है। मरीजों के ट्यूमर के लिहाज से कैंसर के टीके बनाने में वर्षों की कोशिश के बाद यह निर्णायक सफलता मिली है।
न्यूयार्क स्थित मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में मरीजों के ट्यूमर यानी रसौलियों को निकालकर जर्मनी भेजा गया। बायोनटेक नाम की कंपनी ने ट्यूमर के टिश्यू के जीनोम की सीक्वेंसिंग की और उनमें तथाकथित नियोएंटीजन के म्युटेशन की मौजदूगी के लिए जांच की गई। इसके बाद हर मरीज के लिए लक्षित नियोएंटीजन के एक चयन को इकट्ठा किया गया। फिर इससे एमआरएनए टीका तैयार किया गया। इसके बाद अग्न्याशय में प्राइमरी ट्यूमर को सर्जरी से निकालने के नौ हफ्ते बाद पहली बार मरीजों को टीका लगाया गया। मरीजों को कीमोथेरेपी भी दी गई। कैंसर को प्रतिरोध प्रणाली बंद करने से रोकने वाले मालीक्यूल भी लगाए गए।
आठ मरीजों में अध्ययन के अंत तक ट्यूमर लौट कर नहीं आया। दूसरे आठ मरीजों में प्रतिरोध प्रणाली ने काम नहीं किया। उनका कैंसर लौट आया। माउंट सिनाई में न्यूयार्क के इकाह्न स्कूल आफ मेडेसिन में कैंसर इम्युनोलाजी की शोधकर्ता नीना भारद्वाज ने कहा, प्रतिरोध कायम करने और ज्यादा लंबे समय तक के बचाव के शुरुआती संकेत के बीच एक स्पष्ट सहसंबंध मिला है। उनके मुताबिक ज्यादा व्यापक और बड़े क्लिनिकल परीक्षणों के जरिए निष्कर्षों की पुष्टि किए जाने की जरूरत है।
पैंक्रियाज यानी अग्न्याशय, पेट के भीतर गहराई में मौजूद एक छोटा सा अंग है। वहां पनपने वाला कैरकीनोमा दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौत की प्रमुख वजहों में से एक है। मुख्य समस्या ये है कि पेंक्रियाटिक कैंसर का पता बहुत आखिरी अवस्था में चल पाता है। शुरू में शिनाख्त का कोई तरीका नहीं है, और कैंसर के असामान्य रूप से बड़ा होने या दूसरे अंगों में फैलने से पहले, मरीजों में कोई लक्षण भी नहीं नजर आते।
रसौली को सर्जरी से निकालना भले ही संभव है लेकिन वो अक्सर फिर से पनप उठती है। इलाज को जटिल बनाने वाली दूसरी बात ये है कि कैंसर लगातार बदलता रहता है। वो न सिर्फ पर्यावरण को बदलता है बल्कि खुद भी पर्यावरण से बदल जाता है। नतीजतन, दो लोगों में पेंक्रियाटिक कैंसर ऐसे जैसे नहीं होते। यह बात उपचार को खासतौर पर कठिन बना देती है। टीकों की मदद से कैंसर के खिलाफ लड़ाई का विचार नया नहीं है।
2010 में प्रोस्टेट कैंसर के लिए टीके को अमेरिका में मंजूरी मिल गई थी। पिछले कुछ समय से कैंसर की एमआरएनए टीकों पर शोध जारी है। हाल ही में दो कंपनियों के द्वारा तैयार एमआरएनए टीका त्वचा के कैंसर के इलाज में सफल पाया गया है।