ऑस्टियोपोरोसिस जिसे साइलेंट बोन डिज़ीज़ भी कहा जाता है, ये बीमारी धीरे-धीरे हड्डियों को कमजोर और पतला बना देती है, जिससे हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है। यह बीमारी बिना किसी शुरुआती स्पष्ट लक्षणों के विकसित होती है, इसलिए ज़्यादातर लोगों को इसका पता तब चलता है जब कोई हड्डी टूट जाती है। लेकिन आप जानते हैं कि हड्डियों की इस बीमारी के बॉडी में कुछ शुरुआती संकेत दिखते हैं जो कमजोर हड्डियों की तरफ इशारा करते हैं।

अपोलो अस्पताल, शेषाद्रीपुरम, बेंगलुरु में सलाहकार आर्थोपेडिक सर्जन, डॉ.शशिकिरण आर ने बताया ऑस्टियोपोरोसिस का समय पर पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है, जिससे अपंगता से बचाव होता है और जीवन की गुणवत्ता बेहतर रहती है। आइए जानते हैं कि हड्डियां कमजोर होने के हाथ-पैरों और दांतों में कौन-कौन से लक्षण दिखते हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

कलाई या हाथ का बार-बार फ्रैक्चर होना

कलाई और हाथ की छोटी हड्डियां अक्सर सबसे पहले ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित होती हैं। कभी-कभी मामूली गिरने या खुद को संभालने की कोशिश करने पर भी फ्रैक्चर हो सकता है। अगर मामूली चोट या हल्के झटके में हड्डी टूट जाए, तो यह हड्डियों की कमजोरी यानी ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती लक्षण हो सकता है। बार-बार होने वाले फ्रैक्चर को हल्के में न लें, ये हड्डियों की कमजोरी का संकेत हैं।

हाथों में पकड़ कमजोर होना और जकड़न

कमजोर पकड़ सिर्फ बढ़ती उम्र का लक्षण नहीं है, बल्कि कई रिसर्च में पाया गया है कि ग्रिप स्ट्रेंथ का सीधा संबंध हड्डियों के घनत्व (Bone Density) से है। हाथों की हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर होने से उनकी ताकत घट जाती है। अगर जार खोलने, बैग उठाने या चीज़ों को मजबूती से पकड़ने में दिक्कत हो रही है, तो यह छिपे हुए ऑस्टियोपोरोसिस के संकेत हो सकते हैं।

कूल्हों और पैरों में दर्द या अचानक फ्रैक्चर

कूल्हे की हड्डी (Hip Bone) ऑस्टियोपोरोसिस से होने वाले सबसे आम और खतरनाक फ्रैक्चर वाली जगहों में से एक है। टांग की हड्डी या जांघ की हड्डी में मामूली चोट से भी फ्रैक्चर होना असामान्य है। ये बीमारी वजन उठाने वाली हड्डियों जैसे जांघ की हड्डी, पिंडली की हड्डी और हिप जॉइंट का घनत्व कम कर देती है। बिना किसी बड़ी चोट के पैरों में बार-बार दर्द रहना, या हल्की गिरावट के बाद हड्डी टूट जाना ऑस्टियोपोरोसिस के वार्निंग साइन हैं।

कद कम होना और पैरों का मुड़ना

ऑस्टियोपोरोसिस रीढ़ की हड्डी (Spine) को प्रभावित करती है, जिससे शरीर के ढांचे में बदलाव आने लगता है। रीढ़ की हड्डियों में सूक्ष्म फ्रैक्चर (Micro-fractures) से हड्डियां सिकुड़ जाती हैं और शरीर का संतुलन बिगड़ता है। अगर आप भी कद को छोटा महसूस कर रहे हैं, शरीर झुका हुआ या पैर टेढ़ा होने जैसे लक्षण देख रहे हैं तो ये सिर्फ बुढ़ापे की निशानी नहीं है, बल्कि यह हड्डियों की कमजोरी का संकेत है।

मसूड़ों का पीछे हटना और दांतों का ढीला होना

जबड़े की हड्डी भी ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित होती है, इसलिए दांत और मसूड़ों की सेहत हड्डियों की स्थिति का शुरुआती संकेत देती है। जबड़े की हड्डियों में घनत्व कम होने से दांतों को सहारा देने वाली हड्डी कमजोर पड़ जाती है। मसूड़ों का पीछे हटना, दांतों का ढीला होना या डेंचर का फिट न बैठना, ये सब कमजोर हड्डियों के लक्षण हो सकते हैं।

पैरों के नाखूनों का टूटना और पैरों में दर्द

पैरों की हड्डियां भी ऑस्टियोपोरोसिस के असर से बच नहीं पातीं। पैरों की छोटी हड्डियां कमजोर पड़ने पर स्ट्रेस फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही खनिजों की कमी और कमजोर ऊतक (Tissues) नाखूनों को भी भंगुर बना देते हैं। पैरों में दर्द रहना, चलने पर फ्रैक्चर हो जाना या नाखूनों का जल्दी टूटना ये सभी हड्डियों की कमजोरी का लक्षण हो सकता है।

अगर आपमें ऐसे लक्षण दिखें तो क्या करें?

  • अगर आप भी अपनी बॉडी में इस तरह के लक्षण महसूस करते हैं तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। हड्डियों से जुड़ी इस बीमारी के लिए आप ऑर्थोपेडिक या एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से संपर्क करें।
  • DEXA स्कैन कराएं, यह टेस्ट हड्डियों का घनत्व मापता है और बीमारी की पुष्टि करता है।
  • कैल्शियम और विटामिन D की कमी को समय रहते पूरा करें।
  • लाइफस्टाइल में बदलाव करें। वेट-बेयरिंग एक्सरसाइज करें, धूम्रपान और शराब से बचें और हेल्दी डाइट लें।
  • जरूरत पड़ने पर दवा लें।डॉक्टर कुछ दवाएं और हार्मोन थेरेपी जैसी दवाएं सुझा सकते हैं।

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