National Epilepsy Day 2023: एपिलेप्सी आज के समय में सबसे कॉमन बीमारियों में से एक है, जिसे अधिकतर लोग मिर्गी के नाम से भी जानते हैं। इस बीमारी से पीड़ित लोगों को बार-बार दौरे पड़ते हैं, इस दौरान चंद मिनटों के लिए वे अपना होश पूरी तरह खो बैठते हैं। अधिक चिंता की बात यह है कि ये दौरे किसी भी समय पड़ सकते हैं और इससे पीड़ित शख्स को इसका जरा अहसास नहीं होता है। जाहिर है ऐसे में एपिलेप्सी से पीड़ित शख्स की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित होती है और इसके चलते उन्हें तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कड़ी में इस गंभीर बीमारी को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 17 नवंबर को नेशनल एपिलेप्सी डे (National Epilepsy Day) मनाया जाता है। आइए इस मौके पर जानते हैं इस बीमारी का कारण, इसके लक्षण और संभव इलाज के बारे में-
क्यों पड़ते हैं मिर्गी के दौरे?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मिर्गी ब्रेन से जुड़ी एक बीमारी है, जो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। वहीं, अलग-अलग एज ग्रुप में मिर्गी की अलग-अलग वजह होती हैं। बच्चों में अधिकतर मस्तिष्क का विकास सही ढंग से न होने पर (ब्रेन के न्यूरॉन्स की ग्रोथ न होने पर) मिर्गी की समस्या को देखा जाता है। वहीं, बात बड़ों की करें तो वयस्कों में भी ब्रेन से जुड़ी किसी तरह की परेशानी जैसे ब्रेन ट्यूमर, सिर के पिछले हिस्से में चोट लगना, एड्स, दिमागी बुखार, ब्रेन में गांठ और सिर में चोट लगने के चलते उन्हें इस समस्या से जूझना पड़ सकता है। शराब या नशीली दवाओं का ज्यादा सेवन करने से मिर्गी की परेशानी हो सकती है, इसके अलावा अगर ब्रेन में ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है, तो भी मिर्गी का दौरा पड़ सकता है।
क्या हैं इसके शुरुआती लक्षण?
इससे पहले बता दें कि दो बार से ज्यादा दौरे पड़ने की शिकायत को एपिलेप्सी में शुमार किया जाता है। अब बात लक्षणों की करें तो इसमें चेहरे, गर्दन और हाथ की मांसपेशियों में बार-बार झटके आना, टेंपररी कंफ्यूजन होना, अचानक खड़े-खड़े गिर जाना, कुछ समय के लिए कुछ भी याद नहीं रहना, मुंह से थूक निकलने लगना, डर या एंग्जाइटी, चक्कर के साथ सिर में झनझनाहट महसूस होना, बेकाबू होकर ताली बजाना या हाथ रगड़ना, हार्ड मांसपेशियां जैसी परेशानिया नजर आ सकती हैं।
किन्हें है ज्यादा खतरा?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मिर्गी की बीमारी के सबसे ज्यादा मामले कम वाले देशों में मिलते हैं। वहीं, हमारे देश भारत में इस समय लाखों लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। एपिलेप्सी छोटे बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। इनमें भी खासकर 10 साल की उम्र तक के बच्चों को ज्यादा खतरा होता है। अगर कोई बच्चा पैदा होने के बाद रोता नहीं है, तो ये मिर्गी का संकेत हो सकता है। इसके अलावा ब्रेन ट्यूमर, दिमाग में गांठ, ब्रेन में असामान्यता, सिर में चोट लगना, जेनेटिक प्रॉब्लम या अधिक चिंता, डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों में इसका खतरा अधिक होता है।
क्या है संभव इलाज?
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, इस समस्या में अलग-अलग उम्र के लोगों का इलाज अलग-अलग तरीके से किया जाता है। अधिकतर मरीजों को दवाओं के जरिए ठीक किया जा सकता है। वहीं, जिन मरीजों पर दवाएं बेअसर होती हैं, उनके मामले में सर्जिकल प्रक्रिया के जरिए इस बीमारी का इलाज किया जाता है। वहीं, एक बार ये बीमारी होने पर इससे बचाव के लिए जरूरी है कि आप किसी भी तरह का तनाव लेने से बचें, शराब या नशीली दवाओं का सेवन न करें, डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाओं का नियमित सेवन करें, दिमाग पर किसी भी तरह के तनाव से बचें, हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं। इन सब के अलावा पर्याप्त नींद लेना बेहद जरूरी है।
Disclaimer: आर्टिकल में लिखी गई सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य जानकारी है। किसी भी प्रकार की समस्या या सवाल के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।
