सर्दियों का मौसम आते ही बहुत से लोगों को सिरदर्द और माइग्रेन की समस्या परेशान करने लगती है। ठंडी सुबह, धूप की कमी और बदला हुआ रूटीन शरीर पर सीधा असर डालता है। कई बार सुबह उठते ही सिर भारी लगता है, तो कभी ठंडी हवा लगते ही तेज दर्द शुरू हो जाता है। खासकर माइग्रेन के मरीजों के लिए सर्दियां किसी चुनौती से कम नहीं होतीं। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों मानते हैं कि मौसम में बदलाव से शरीर का संतुलन बिगड़ता है, जिससे सिरदर्द की समस्या बढ़ जाती है।
ठंडी हवा का सिर पर सीधा असर
सर्दियों में जब ठंडी हवा सीधे माथे, कान या गर्दन पर लगती है, तो सिर की नसें सिकुड़ जाती हैं। इससे दिमाग तक जाने वाला ब्लड फ्लो अचानक बदल जाता है और सिर में तेज दर्द होने लगता है। कई लोग इसे झनझनाहट या ब्रेन फ्रीज जैसा दर्द बताते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, ठंड बढ़ने से वात दोष असंतुलित हो जाता है, जो नसों से जुड़ी समस्याओं और दर्द को बढ़ाता है। यही वजह है कि ठंड में सिर को ढककर रखना बेहद जरूरी माना जाता है।
पानी कम पीना भी बनता है कारण
सर्दियों में प्यास कम लगती है, इसलिए लोग पानी पीना भूल जाते हैं। शरीर में पानी की कमी होने पर खून गाढ़ा हो जाता है और दिमाग तक ऑक्सीजन की सप्लाई सही से नहीं पहुंच पाती। इसका असर सीधे सिरदर्द के रूप में दिखता है। माइग्रेन के मरीजों में डिहाइड्रेशन दर्द को और ज्यादा बढ़ा सकता है। इसलिए सर्दियों में भी पर्याप्त मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है।
धूप की कमी और विटामिन डी
सर्दियों में धूप कम निकलती है, जिससे शरीर में विटामिन डी की कमी हो सकती है। विटामिन डी का सीधा संबंध सेरोटोनिन हार्मोन से होता है, जो मूड और दर्द को नियंत्रित करता है। जब सेरोटोनिन का स्तर कम होता है, तो माइग्रेन का खतरा बढ़ जाता है। आयुर्वेद में इसे पित्त दोष के असंतुलन से जोड़ा जाता है। रोज थोड़ी देर धूप में बैठना इस समस्या से बचाव में मदद कर सकता है।
भारी रजाई और गलत पोस्चर की समस्या
ठंड में लोग भारी रजाई ओढ़कर एक ही पोजिशन में घंटों सोए रहते हैं। इससे गर्दन और कंधों की मांसपेशियों पर ज्यादा दबाव पड़ता है। यही दबाव धीरे-धीरे सिरदर्द का कारण बन जाता है। सर्वाइकल से जुड़ा सिरदर्द सर्दियों में ज्यादा देखने को मिलता है। सही तकिया और सोने की सही पोजिशन अपनाना बहुत जरूरी है।
साधारण सिरदर्द और माइग्रेन में अंतर
साधारण सिरदर्द आमतौर पर पूरे सिर में हल्का या मध्यम दर्द देता है और थोड़े आराम से ठीक हो जाता है। वहीं माइग्रेन में सिर के एक हिस्से में तेज दर्द होता है, साथ में मतली, उलटी, रोशनी और आवाज से चिढ़ भी हो सकती है। आयुर्वेद में माइग्रेन को ‘अर्धावभेदक’ कहा गया है और इसे वात व पित्त दोष के असंतुलन से जोड़ा जाता है।
आयुर्वेदिक उपाय
सर्दियों में सिरदर्द और माइग्रेन से राहत पाने के लिए आयुर्वेद में कुछ आसान और असरदार उपाय बताए गए हैं। गुनगुने तिल या सरसों के तेल से सिर की मालिश करने से नसें शांत होती हैं और ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। अदरक और तुलसी की चाय दर्द और सूजन को कम करने में मदद करती है। नस्य कर्म यानी नाक में 2-2 बूंद तिल का तेल या गाय का घी डालना माइग्रेन के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसके अलावा गुनगुने पानी की भाप लेने से सिर की जकड़न कम होती है और त्रिफला चूर्ण पाचन सुधारकर सिरदर्द की समस्या को घटाता है।
निष्कर्ष
सर्दियों में सिरदर्द से बचने के लिए पर्याप्त पानी पीना, सिर और कानों को ठंडी हवा से बचाना, समय पर सोना और बहुत ज्यादा ठंडा व भारी भोजन करने से बचना जरूरी है। इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर आप सर्दियों में सिरदर्द और माइग्रेन की परेशानी से काफी हद तक राहत पा सकते हैं।
डिस्क्लेमर
यह स्टोरी सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार की गई है। किसी भी तरह के स्वास्थ्य संबंधी बदलाव या डाइट में परिवर्तन करने से पहले अपने डॉक्टर या योग्य हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
