प्री-डायबिटीज़ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रक्त में शुगर का स्तर सामान्य से अधिक होता है, लेकिन इतना ज्यादा नहीं होता कि उसे डायबिटीज़ की श्रेणी में रखा जाए। प्री डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसे डाइट और लाइफस्टाइल में सुधार करके रिवर्स किया जा सकता है। इस बीमारी को अगर इग्नोर किया जाए तो न सिर्फ फैटी लिवर की परेशानी बढ़ती है बल्कि और भी कई बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है। फैटी लिवर एक ऐसी समस्या है, जिसमें लिवर की कोशिकाओं में अत्यधिक मात्रा में फैट जमा हो जाता है। ये लिवर की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और समय के साथ लिवर इंफ्लेमेशन, सिरोसिस या अन्य मेटाबॉलिक बीमारियों का कारण बन सकता है।

जब किसी व्यक्ति को प्री-डायबिटीज़ और फैटी लिवर दोनों की समस्या होती है तो उन्हें इंसुलिन रेजिस्टेंस की परेशानी होती है। इसका मतलब है कि शरीर इंसुलिन बना तो रहा है, लेकिन कोशिकाएं उस पर सही ढंग से प्रतिक्रिया नहीं कर रही हैं।

सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली में  इंटरनल मेडिसिन में डॉ. मनीषा अरोड़ा के मुताबिक  शरीर में शुगर लेवल बढ़ने लगता है और अतिरिक्त फैट लिवर में जमा होने लगता है, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। इसे ऐसे समझिए जैसे आपके पास ताले की सही चाबी है, लेकिन ताला जाम होने की वजह से चाबी काम नहीं कर रही। डॉ. अरोड़ा बताती हैं कि प्री-डायबिटीज़ और फैटी लिवर दोनों के जोखिम कारक लगभग समान हैं। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि प्री डायबिटीज और फैटी लिवर की परेशानी एक साथ होने पर सेहत पर कैसा होता है असर।

ब्लड शुगर तेजी से करता है स्पाइक

जब शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन को सही से रिस्पॉन्ड नहीं करतीं तो ब्लड में शुगर का स्तर तेजी से बढ़ने लगता है और टाइप-2 डायबिटीज़ में बदल सकता है। जिन लोगों को प्री डायबिटीज है वो लाइफस्टाइल और डाइट में बदलाव करके इस परेशानी से निजात पा सकते हैं।

दिल की बीमारियों का बढ़ रहा है खतरा

प्री-डायबिटीज़ और फैटी लिवर, दोनों ही हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड प्रेशर से जुड़े होते हैं। इनसे हार्ट अटैक, स्ट्रोक और ब्लड वेसल ब्लॉकेज का खतरा बढ़ जाता है।

थकान, सुस्ती और ब्रेन फॉग का बढ़ता है खतरा

लिवर की क्षमता घटने और ब्लड शुगर असंतुलन के कारण शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है। व्यक्ति को थकान, सुस्ती, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई जैसी समस्याएं होती हैं।

इम्यून सिस्टम हो सकता है कमजोर

फैटी लिवर शरीर में इंफ्लेमेशन बढ़ाता है, जबकि प्री-डायबिटीज़ इम्यूनिटी को कमजोर करता है। इससे बार-बार संक्रमण होने लगते हैं।

पाचन और मेटाबॉलिज्म में बढ़ जाती है गड़बड़ी

लिवर जब फैट से भर जाता है, तो वह भोजन को सही ढंग से डाइजेस्ट और मेटाबोलाइज्ड नहीं कर पाता। इससे अपच, पेट फूलना, गैस और वजन बढ़ने और घटने जैसी दिक्कते हो सकती हैं।

टाइप-2 डायबिटीज़ और सिरोसिस का खतरा

अगर ध्यान न दिया जाए तो ये दोनों बीमारियां आगे चलकर टाइप-2 डायबिटीज़, लिवर इंफ्लेमेशन (हेपेटाइटिस) या लिवर सिरोसिस जैसी गंभीर बीमारियों में बदल सकता हैं।

फैटी लिवर और प्री डायबिटीज को कैसे करें कंट्रोल

एक्सपर्ट के मुताबिक हेल्थ से जुड़ी इन दोनों स्थितियों को लाइफस्टाइल में सुधार करके काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। एक्सपर्ट ने बताया आप अपने वजन को कंट्रोल करें। अपने शरीर का सिर्फ 5–10 प्रतिशत वजन घटाने से लिवर में जमा फैट कम किया जा सकता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस को सुधारा जा सकता है। डाइट में सब्जियों, फलों, लीन प्रोटीन, दालों, साबुत अनाज और हेल्दी फैट से भरपूर डाइट का सेवन करें।

कुछ फूड स्थिति को बिगाड़ सकते हैं जैसे अधिक चीनी, रिफाइंड कार्ब्स और मीठे ड्रिंक इनसे परहेज करें।  इसके साथ ही नियमित शारीरिक गतिविधि (exercise) और शराब का सीमित सेवन भी जरूरी है। अगर इन सभी आदतों को अपनाया जाए तो आसानी से फैटी लिवर को रिवर्स किया जा सकता है और प्री-डायबिटीज़ से टाइप-2 डायबिटीज़ में बढ़ने का जोखिम काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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