हमारी आंखें दुनिया को देखने का सबसे अहम जरिया हैं, लेकिन अक्सर हम इन्हीं आंखों की देखभाल में लापरवाही कर देते हैं। प्रदूषण, तनाव, मोबाइल-स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल और बढ़ती उम्र के साथ आंखों पर दबाव बढ़ता जाता है। कई बार हम आंखों से जुड़े शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं। नतीजा यह होता है कि एक गंभीर बीमारी धीरे-धीरे आंखों की रोशनी छीन लेती है। इस बीमारी का नाम है ग्लूकोमा, जिसे आम भाषा में काला मोतिया कहा जाता है। ओजस मैक्सीविजन आई हॉस्पिटल्स की नेत्र रोग विशेषज्ञ, लेसिक और मोतियाबिंद सर्जन डॉ. अंकिता मूलचंदानी बताती हैं कि अगर समय रहते ग्लूकोमा की पहचान और इलाज न हो, तो यह आंखों की रोशनी हमेशा के लिए छीन सकता है।

क्या है ग्लूकोमा (काला मोतिया)

ग्लूकोमा एक ऐसी आंखों की बीमारी है, जिसमें आंखों के अंदर का दबाव धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। इस दबाव का सीधा असर आंखों की आप्टिक नर्व यानी नेत्र तंत्रिका पर पड़ता है। यही नर्व आंखों से मिली जानकारी को दिमाग तक पहुंचाती है। जब इस पर लगातार दबाव पड़ता है, तो नर्व कमजोर होने लगती है और देखने की क्षमता कम होती चली जाती है। सबसे खतरनाक बात यह है कि ग्लूकोमा की शुरुआत में कोई साफ लक्षण नजर नहीं आते, इसलिए लोग इसे पहचान ही नहीं पाते।

क्यों बढ़ रहा है ग्लूकोमा का खतरा?

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.अंकिता मूलचंदानी के अनुसार, ग्लूकोमा होने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण बढ़ती उम्र है। 40 साल की उम्र के बाद इसका खतरा बढ़ जाता है। अगर परिवार में किसी को पहले से काला मोतिया रहा हो, तो जोखिम और भी ज्यादा हो जाता है। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, माइग्रेन और आंखों की पुरानी सर्जरी भी ग्लूकोमा की वजह बन सकती है। आंखों में पहले कभी गंभीर चोट लगी हो, तो भी सावधानी जरूरी है।

शुरुआती लक्षण क्यों नहीं दिखते

ग्लूकोमा की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इसके शुरुआती लक्षण साफ नजर नहीं आते। व्यक्ति को लगता है कि सब ठीक है, जबकि अंदर ही अंदर आंखों की नसें खराब हो रही होती हैं। जब बीमारी बढ़ने लगती है, तब नजर के किनारों से दिखना कम होने लगता है, जिसे ब्लाइंड स्पॉट कहा जाता है। कई मामलों में सिरदर्द, आंखों में दर्द, रोशनी के चारों ओर घेरे दिखना, आंखों का लाल होना, मतली और उल्टी जैसी शिकायतें भी सामने आती हैं। इन संकेतों को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

समय पर जांच ही है सबसे बड़ा बचाव

ग्लूकोमा से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है नियमित आंखों की जांच। खासकर 40 साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को साल में एक बार नेत्र विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। जांच के दौरान आंखों के दबाव को मापा जाता है, जिससे समय रहते बीमारी पकड़ी जा सकती है। अगर शुरुआती स्टेज में इलाज शुरू हो जाए, तो आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है।

इलाज के क्या हैं विकल्प

ग्लूकोमा का इलाज दवाइयों, लेजर और सर्जरी के जरिए किया जाता है। डॉक्टर सबसे पहले आई ड्रॉप्स के जरिए आंखों का दबाव कम करने की कोशिश करते हैं। जरूरत पड़ने पर लेजर ट्रैबेक्यूलोप्लास्टी या ग्लूकोमा फिल्टरिंग सर्जरी की जाती है। इलाज का मकसद बीमारी को बढ़ने से रोकना होता है, क्योंकि जो रोशनी एक बार चली जाती है, उसे वापस लाना मुश्किल होता है।

खानपान और जीवनशैली का रखें ध्यान

आंखों की सेहत के लिए संतुलित आहार बहुत जरूरी है। विटामिन A, C और E से भरपूर भोजन आंखों के लिए फायदेमंद होता है। हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, फल और नट्स को डाइट में शामिल करें। साथ ही तनाव कम करें, पर्याप्त नींद लें और स्क्रीन टाइम सीमित रखें।

बुजुर्गों के लिए खास सलाह

फिटनेस ट्रेनर नवनीत रामप्रसाद के अनुसार, 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए सिर्फ लंबी वॉक करना ही काफी नहीं है। जरूरत से ज्यादा या गलत तरीके से एक्सरसाइज शरीर को कमजोर भी कर सकती है। इसलिए उम्र के हिसाब से संतुलित व्यायाम और डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।

निष्कर्ष

ग्लूकोमा एक साइलेंट किलर बीमारी है, जो बिना शोर किए आंखों की रोशनी छीन लेती है। लेकिन समय पर जांच, सही इलाज और थोड़ी सी सावधानी से इस खतरे को टाला जा सकता है। आंखों की हल्की-सी भी परेशानी हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि आंखें हैं तो ही दुनिया रंगीन है।

डिस्क्लेमर

यह स्टोरी सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार की गई है। किसी भी तरह के स्वास्थ्य संबंधी बदलाव या डाइट में परिवर्तन करने से पहले अपने डॉक्टर या योग्य हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।

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