भागदौड़ भरे लाइफस्टाइल और खराब खानपान के चलते कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। जिसमें मोटापा सबसे ज्यादा आम होता जा रहा है। हर दूसरा व्यक्ति मोटापे से परेशान है। हालांकि, वजन को कम करने के लिए लोग कई प्रकार के तौर तरीके अपनाते हैं। मोटापे के चलते ही शरीर में कई स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का खतरा अधिक बढ़ जाता है। मोटापे के लिए अलावा लिवर से जुड़ी समस्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है। खराब और अनहेल्दी खानपाने के चलते फैटी लिवर के मरीजों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। एक नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जिसके अनुसार मोटापे को कम करने वाली कुछ दवाओं के सेवन से लिवर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, इन दवाओं से फैटी लिवर की समस्या से भी राहत मिलती है।

स्टडी से हुआ चौंकाने वाला खुलासा

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में हाल ही में प्रकाशित, चल रहे चरण 3 परीक्षण के प्रारंभिक परिणामों के अनुसार, फैटी लिवर रोग से पीड़ित लगभग तीन में से दो लोगों ने डेढ़ साल तक सेमाग्लूटाइड 2.4 मिलीग्राम की साप्ताहिक खुराक लेने के बाद लिवर की कुछ चर्बी और सूजन को कम किया। रिपोर्ट में बताया गया कि लगभग तीन में से एक मरीज में लिवर फाइब्रोसिस या लिवर पर होने वाले घाव में भी कमी देखी गई, जो लिवर को ठीक से काम करने से रोकता है।

मेटाबोलिक डिसफंक्शन-एसोसिएटेड स्टेटोटिक लिवर डिजीज (MAFLD) को नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज के नाम से जाना जाता है। यह एक पुरानी स्थिति है, जिसमें लिवर पर फैट जमा हो जाता है। जिससे लिवर में सूजन, घाव और यहां तक कि लिवर कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। भारत में MAFLD का प्रचलन 9% से 32% के बीच होने का अनुमान है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

लिवर विशेषज्ञ और इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के कुलपति डॉ. एस.के ने बताया कि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अध्ययन है, जो MASLD पर सेमाग्लूटाइड के प्रभाव पर चरण 2 परीक्षण के निष्कर्षों पर आधारित है। चरण 2 परीक्षण आमतौर पर खुराक तय करने के लिए किए जाते हैं और वर्तमान परीक्षण के लिए दवा की उच्चतम 2.4 मिलीग्राम खुराक का उपयोग किया गया था। परिणाम बताते हैं कि सेमाग्लूटाइड लेने वाले 62.9% लोगों में लिवर की चर्बी और सूजन में कमी देखी गई, जबकि प्लेसबो लेने वाले लोगों में यह 34.3% था। प्लेसबो लेने वाले 22.4% की तुलना में सेमाग्लूटाइड लेने वाले 36.8% प्रतिभागियों में लिवर की कठोरता भी कम हुई।

उन्होंने बताया कि इस परीक्षण में प्रतिभागियों ने अपने शरीर के वजन में लगभग 10% की कमी की, जबकि पहले यह 14% दर्ज किया गया था। कुल मिलाकर अध्ययन फैटी लिवर रोग के लिए आशाजनक परिणाम दिखाता है।

दवा कैसे काम करती है? क्या ये वजन कम होने के असर हैं?

सेमाग्लूटाइड जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट के रूप में जानी जाने वाली दवाओं के एक वर्ग से संबंधित है, जो इंसुलिन के स्राव को बेहतर बनाने के लिए कुछ आंत हार्मोन की क्रिया की नकल करते हैं और ग्लूकागन के स्राव को रोकते हैं। इससे किडनी ग्लूकोज उत्पादन को उत्तेजित करता है और पाचन को धीमा करके भूख को भी कम करता है। अध्ययन वजन घटाने के भ्रामक चर पर ध्यान नहीं देता है, इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि देखे गए सुधारों का कोई अन्य कारण है या नहीं।

वहीं, NCBI में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, लिवर को हेल्दी रखने के लिए विटामिन ए और विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा शरीर में जरूर होनी चाहिए।