आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों का लाइफस्टाइल पूरी तरह से बहुत बदल चुका है। गलत खानपान और अनहेल्दी लाइफस्टाइल के चलते लोगों को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो रही हैं। अनहेल्दी डाइट और फिजिकल एक्टिविटी की कमी के चलते फैटी लिवर की समस्या भी बहुत देखने को मिल रही है। लिवर से जुड़ी इस बीमारी में एक्स्ट्रा फैट जमा हो जाता है। इसे हेपेटिक स्टिओटोसिस भी कहा जाता है। फैटी लिवर महिलाओं के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। लाइफस्टाइल, खानपान और हार्मोनल कारकों के चलते महिलाओं में ये समस्या आम होती जा रही है। हालांकि, लिवर से जुड़ी समस्या होने पर महिलाओं को कुछ खास संकेत दिखाई देते हैं, जिनकी समय रहते पहचान करनी चाहिए और देखभाल करने से बचाव किया जा सकता है।
हेल्थ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि गलत खानपान के चलते लिवर के आसपास फैट जमा होने लगता है, इसी कंडीशन को नॉन अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज यानी एनएएफएलडी कहा जाता है। वहीं, अगर इस समस्या का समय रहते इलाज न कराया जाए, तो ये लिवर सिरोसिस का कारण भी बन सकती है। खासकर रजोनिवृत्ति के बाद की महिलाओं या पीसीओएस या इंसुलिन प्रतिरोध जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाओं में यह बीमारी होने का खतरा अधिक हो सकता है। शुरुआती लक्षण अस्पष्ट या न के बराबर हो सकते हैं, लेकिन लक्षणों को पहचानने और कारणों को समझने से स्थिति को और गंभीर होने से पहले ही पकड़ने और ठीक करने में मदद मिल सकती है। हालांकि पुरुषों में फैटी लिवर रोग होने की संभावना महिलाओं की तुलना में कहीं अधिक होती है, लेकिन रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में यह जोखिम काफी बढ़ जाता है।
जापान में लगभग 17,000 लोगों पर एक वर्ष तक किए गए 2021 के एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि फैटी लिवर रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में काफी अधिक आम है। हालांकि, अध्ययन से पता चलता है कि 50 से 59 वर्ष की आयु की महिलाओं में अन्य आयु वर्ग की महिलाओं की तुलना में इसका जोखिम अधिक होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि फैटी लिवर रोग के विकास में सेक्स हार्मोन की भूमिका होती है। विशेष रूप सेसी रम टेस्टोस्टेरोन के लेवल में वृद्धि से लिवर रोग विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) से पीड़ित महिलाओं में एमएएसएलडी का जोखिम भी बढ़ जाता है, यह एक ऐसी स्थिति है जिसकी विशेषता आंशिक रूप से एस्ट्रोजन का कम स्तर है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (NIH) के अनुसार, 75% तक अधिक वजन वाले लोग और 90% से ज्यादा गंभीर मोटापे से ग्रस्त लोग भी एमएएसएलडी से पीड़ित हैं।
पेट में बेचैनी या भारीपन
फैटी लिवर से पीड़ित कई महिलाओं को पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में, जहां लिवर होता है, हल्का दर्द या भारीपन महसूस होता है। यह बेचैनी आती-जाती रहती है और अक्सर इसे पेट फूलने या अपच समझ लिया जाता है। ऐसा बार-बार होने पर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
लगातार थकान
लगातार थकान एक आम लक्षण है। फैटी लिवर एनर्जी मेटाबॉलिज्म को प्रभावित कर सकता है, जिससे महिलाओं को पर्याप्त आराम के बाद भी थकावट या सुस्ती महसूस हो सकती है।
मोटापा या अधिक वजन होना
शरीर का वजन, खासकर पेट की चर्बी, फैटी लिवर के प्रमुख कारणों में से एक है। पेट के आसपास जमा चर्बी लिवर में वसा के संचय में वृद्धि से गहराई से जुड़ी होती है।
टाइप 2 डायबिटीज
डायबिटीज या प्री-डायबिटीज से ग्रस्त महिलाओं में अक्सर इंसुलिन की कमी के कारण फैटी लिवर की समस्या होती है। इस स्थिति में लिवर की कोशिकाओं में वसा आसानी से जमा हो जाती है।
हाई कोलेस्ट्रॉल
कई महिलाओं में अनजाने में कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ जाता है, जिससे समय के साथ लिवर की सेहत बिगड़ती है।
हार्मोनल परिवर्तन
रजोनिवृत्ति के दौरान हार्मोनल बदलाव या पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) जैसी स्थितियां इंसुलिन प्रतिरोध और शरीर में वसा को बढ़ा सकती हैं, जिससे महिलाओं में फैटी लिवर का खतरा बढ़ जाता है।
वहीं, द लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चलता है कि रोजाना सिर्फ 7,000 कदम चलना भी स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए काफी हो सकता है।