“वो कहते हैं ना जाको राखे साइयां, मार सके न कोय” इस लोकप्रिय कहावत का मतलब ही ये है कि भगवान की कृपा जिस पर होती है, उसको कुछ नहीं हो सकता, फिर चाहे कुछ भी हो जाए। दरअसल, एक 2 साल के बच्चे को मिथाइलमेलोनिक एसिडेमिया नामक लिवर से जुड़ी गंभीर समस्या थी। बच्चे के इलाज के लिए मां के पास पैसे नहीं थे। बच्चे का इलाज दिल्ली के एम्स अस्पताल में चल रहा था। लिवर ट्रांसप्लांट पर आने वाले खर्चे को पूरा करने के लिए मां असमर्थ थी। ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया ने जीवन रक्षक की भूमिका निभाई और एक साल बाद बच्चा पूरी तरह से ठीक हो गया।

सोशल मीडिया बना जीवन रक्षक

दरअसल, बच्चे की मां ने मिलाप ऑर्गेनाइजेशन के माध्यम से निःशुल्क क्राउडफंडिंग का सहारा लिया और सोशल मीडिया पर फंड डोनेट करने की अपील की। बच्चे की मां ने बताया कि मेरा नाम सानिया है। मेरा 2 वर्षीय बेटा मिथाइलमेलोनिक एसिडेमिया नामक एक आनुवंशिक बीमारी से जूझ रहा है और उसका इलाज दिल्ली एम्स में चल रहा है। उसे लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होगी, जो एम्स में नहीं किया जा सकता है और उसे एक निजी अस्पताल में भेजना होगा, जिसमें आवश्यक सुविधाएं हों, जिसकी अनुमानित लागत ₹25,00,000 है। मैं यह राशि जुटाने में असमर्थ हूं और अपने बेटे की बीमारी के कारण काम नहीं कर सकती। मैं अपनी मां के साथ रहती हूं, जो हम दोनों का भरण-पोषण करती हैं।

‘फरिश्ते’ की पड़ी नजर

बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर टिनीफिजिशियन नाम के अकाउंट से मदद की अपील की गई। टिनीफिजिशियन ने अपनी पोस्ट में लिखा कि हमारे एक मरीज (1.5 साल का) जो मिथाइल मैलोनिक एसिडेमिया से पीड़ित है, उसे जीवित रहने के लिए लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है। परिवार के पास आर्थिक तंगी है। अगर आप कर सकते हैं तो कृपया मदद करें।

इसके बाद कहा जाता है न कि डॉक्टर मरीज के लिए भगवान का रूप होते हैं। टिनीफिजिशियन की पोस्ट पर The Liver Doc के नाम से प्रसिद्ध सिरियेक एबी फिलिप्स (Cyriac Abby Philips) नजर पड़ी और उन्होंने बच्चे के परिजनों से संपर्क कर अपने सेंटर में इलाज करने जिम्मा उठाया। अब एक साल बाद बच्चे को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।

बच्चे को नई जिंदगी मिलने के बाद Cyriac Abby Philips ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया और बताया कि ये सफलता छोटी-मोटी माइक्रो-मैनेजमेंट और एक छोटे से व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए हुआ, जिसमें दिल्ली और कोच्चि के डॉक्टर शामिल थे। इस चमत्कार को करने के लिए एम्स, दिल्ली की बाल रोग और पोषण टीम और मेरे अस्पताल की ट्रांसप्लांट सर्जरी टीम और क्रिटिकल केयर टीम को बहुत-बहुत धन्यवाद, जिसे हम चिकित्सा विज्ञान कहते हैं।