प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद पहुंचे। लेकिन एयरपोर्ट पर पीएम के स्वागत के लिए राज्य के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) न पहुंचे। ये घटना 2 जुलाई की है जब नरेंद्र मोदी भाजपा की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए हैदराबाद पहुंचे थे। आमतौर पर ऐसा होता है कि किसी राज्य की राजधानी में प्रधानमंत्री के पहुंचने पर उस राज्य के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रदेश के मंत्री आदि स्वागत करने पहुंचते हैं।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब केसीआर पीएम मोदी को एयरपोर्ट रिसीव करने न पहुंचे हो, पिछले कुछ महीनों में ऐसा तीन बार हो चुका है। मई 2022 में भी केसीआर पीएम के स्वागत के लिए एयरपोर्ट नहीं पहुंचे थे। 5 फरवरी 2022 को भी प्रधानमंत्री तेलंगाना के दौरे पर थे लेकिन मुख्यमंत्री उनका स्वागत करने हवाई अड्डा नहीं गए। भाजपा की तरफ से हर बार प्रोटोकॉल के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता है लेकिन तेलंगाना राष्ट्र समिति का तर्क होता है कि निजी दौरे पर आए पीएम के स्वागत के लिए सीएम का जाना जरूरी नहीं है। तेलंगाना राष्ट्र समिति केसीआर की पार्टी का नाम है।
भाजपा से क्यों भिड़ रहे हैं केसीआर? : केसीआर के मन में भाजपा और मोदी के प्रति ऐसी तलख़ी हमेशा न थी। तेलंगाना के मुद्दे पर केसीआर यूपीए 2 से अलग हो गए थे। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद तेलंगाना राष्ट्र समिति ने कई मुद्दों पर भाजपा को समर्थन दिया, नोटबंदी और जीएसटी ऐसे ही मुद्दे हैं। पिछले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी टीआरएस ने भाजपा उम्मीदवर को वोट किया था।
लेकिन पिछले कुछ सालों में भाजपा ने जैसे-जैसे तेलंगाना में सरकार बनाने की बात दोहराई है, वैसे-वैसे केसीआर का रुख भाजपा और मोदी के प्रति कड़ा होता गया है। भाजपा तेलंगाना में खुद को मजबूत करने का मन बना चुकी है, 18 साल बाद हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन उसी दिशा में बढ़ता कदम था। बैठक में अमित शाह ने खुलकर कहा कि केसीआर की समस्या जल्द ही खत्म हो जाएगी, क्योंकि तेलंगाना में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है। बता दें कि राज्य के गठन के बाद से लगातार दो बार टीआरएस ही सत्ता में रही है। राज्य में विधानसभा का अगला चुनाव 2023 के अंत में होने वाला है। केसीआर की स्थिति अब भी मजबूत है लेकिन विपक्ष के रूप में कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है और भाजपा मजबूत हो रही है।
चुनावी समीकरण: 2014 में हुए राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में केसीआर की पार्टी को 119 में से 63 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस 21 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में टीआरएस के सीटों की संख्या बढ़कर 88 हो गयी और कांग्रेस की घटकर 19 रह गई। पिछले दो उपचुनाव और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के अलावा लोकसभा चुनाव में भी भाजपा तलंगाना में खुद को एक विकल्प के रूप में उभारने में सफल रही है। 2020 में दुब्बाक और 2021 में हुजूराबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे। 2018 में दुब्बाक सीट पर भाजपा 13.75% वोट लेकर हार गयी थी। टीआरएस नेता सोलिपेटा रामलिंगा के निधन के बाद यह सीट खाली हुआ। उपचुनाव में भाजपा ने न सिर्फ इस सीट को जीता बल्कि वोट प्रतिशत 38.5 कर लिया।
हुजूराबाद विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी यही हुआ। यहां भाजपा से जीतने वाले एटाला राजेंदर टीआरएस नेता हुआ करते थे। भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर केसीआर ने उन्हें मंत्रीमंडल से निकाल दिया। राजेंदर टीआरएस से इस्तीफा देकर भाजपा में चले गए। भाजपा ने उन्हें उपचुनाव में हुजूराबाद सीट से उतार दिया। राजेंदर को 107022 वोट मिले, जबकि टीआरएस उम्मीदवार गेलू श्रीनिवास यादव 83167 पर ही थम गए।
2020 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में तो भाजपा ने बड़ी बढ़त हासिल की। 99 सीटों पर जीतने वाली टीआरएस 55 पर पहुंच गई और भाजपा ने 48 सीटों पर कब्जा कर लिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आयी। राज्य की 17 सीटों में से 9 पर टीआरएस और 4 पर भाजपा ने जीत दर्ज की। वहीं कांग्रेस 3 सीट ही जीत पायी।
कर्नाटक के अपवाद को छोड़ दें, जहां 2008 में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनी थी, तो भाजपा अभी तक दक्षिण भारत पर पूरी तरह पकड़ बनाने में सफल नहीं हो पायी है। माना जा रहा है कि इसकी शुरुआत तेलंगाना से हो सकती है। यही वजह है कि केसीआर आक्रमक होकर भाजपा और केंद्र की मोदी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं और खुद को बेहतर बता रहे हैं।