दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने चर्चित गीतिका शर्मा सुसाइड केस में हरियाणा के पूर्व गृह राज्य मंत्री गोपाल कांडा को बरी कर दिया है। गोपाल कांडा पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। विशेष न्यायाधीश विकास ढुल ने मामले में सह-आरोपी अरुणा चड्ढा को भी बरी कर दिया। 25 जुलाई को फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा।
गीतिका शर्मा मौत ने अगस्त 2012 में सुसाइड किया था। तब वह दिल्ली स्थित एमडीएलआर एयरलाइंस में कार्यरत थीं। इस एयरलाइंस का स्वामित्व कांडा के पास ही था। अपने सुसाइड नोट में शर्मा ने ‘मानसिक उत्पीड़न’ के लिए कांडा को जिम्मेदार माना था। वह उस समय हरियाणा सरकार में गृह राज्य मंत्री और एमडीएलआर समूह के प्रबंध निदेशक थे। अगले वर्ष यानी 2013 में गीतिका शर्मा की माँ ने भी आत्महत्या कर ली थी।
शुरुआत में कांडा पर बलात्कार और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था, बाद में अप्राकृतिक यौन संबंध का आरोप जोड़ा गया, कांडा और चड्ढा पर मई 2013 में मुकदमा चलना शुरू हुआ। उन्होंने मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने उस वर्ष जुलाई में बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोपों को खारिज कर दिया। 6 दिसंबर, 2013 को ट्रायल कोर्ट ने कांडा और चड्ढा पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चलाने का नया आदेश पारित किया।
कांडा ने खुद को निर्दोष बताया है। उन्होंने 2019 के एक साक्षात्कार में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था: “सच्चाई यह है कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया। कोई भी किसी पर कुछ भी आरोप लगा सकता है। क्या निर्वाचित उम्मीदवारों में से केवल मैं ही आपराधिक मामले का सामना कर रहा हूँ? कम से कम 12 विधायक ऐसे हैं जो विभिन्न आरोपों के साथ कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं…”
कौन हैं गोपाल कांडा?
कांडा वर्तमान में हरियाणा लोकहित पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वह सिरसा निर्वाचन क्षेत्र से हरियाणा विधान सभा के सदस्य हैं। उन्होंने मई 2014 में अपने भाई गोविंद कांडा के साथ पार्टी की स्थापना की थी, शुरुआत में वह एक प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभरे जो भाजपा को हरियाणा में नई सरकार बनाने में मदद कर सकते थे। 2019 के राज्य विधानसभा चुनावों के बाद उनकी पार्टी ने भाजपा का समर्थन किया।
90 के दशक में कांडा ने रेडियो ठीक करने की एक खोली, जिससे महीने में कुछ सौ रुपये की कमाई हो जाती थी। वहां से वह और उनके भाई जूते के व्यवसाय में आ गए और सिरसा में एक स्टोर खोला। युवावस्था में कांडा ने व्यापारियों, कारोबारियों और राजनेताओं तक पहुंचने के लिए अपने दोस्तों का इस्तेमाल किया। उन्होंने और उनके भाई ने जल्द ही एक जूते की फैक्ट्री खोली।
उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं थीं, जिसके लिए वे सबसे पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस पार्टी के बंसीलाल के करीब आए। लेकिन जैसे ही बंसी लाल की सरकार गिरी, कांडा ने पाला बदलकर चौटाला परिवार का दामन थाम लिया। हरियाणा कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के साथ उनकी दोस्ती ने कांडा को अपना व्यवसाय बढ़ाने में मदद की। सिरसा से कांडा ने अपना ठिकाना गुड़गांव में स्थानांतरित कर लिया और रियल एस्टेट का कारोबार शुरू कर दिया।
गोपाल कांडा का उदय
2007 में कांडा ने अपने पिता ‘मुरली धर लाख राम’ के नाम पर MDLR एयरलाइंस शुरू करने की घोषणा की। मुरली धर सिरसा के मशहूर वकील थे और 1926 में आरएसएस से जुड़े थे।
एमडीएलआर एयरलाइंस के पास कम दूरी की उड़ान की ही अनुमति थी। एयरलाइंस को दो साल के भीतर बंद भी कर दिया गया। कांडा ने पहले इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ने का प्रयास किया, लेकिन उनके नाम पर विचार नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने सिरसा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
यह तब हुए जब कांग्रेस पार्टी के भूपेंद्र हुड्डा 2009 में मुख्यमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल की तलाश में थे। कांग्रेस बहुमत से पीछे रह गई और हुड्डा ने कांडा को सिरसा से एयरलिफ्ट करवाया। कड़ी सौदेबाजी करने वाले कांडा मंत्री पद से कम पर तैयार नहीं थे। उन्हें गृह विभाग मिल गया।
गोपाल और उनके भाई गोविंद कांडा, चौटाला बंधुओं के करीबी सहयोगी हुआ करते थे। गोपाल को 2005 तक इनेलो के अभय चौटाला का खास आदमी माना जाता था। लेकिन उनके रिश्ते में तब तनाव आ गया जब चौटाला ने उन्हें अपने गढ़ सिरसा में चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी।
हरियाणा सरकार में गृह मंत्री के रूप में कार्य करते समय, कांडा को गीतिका शर्मा मामले में गिरफ्तार किया गया और उन्हें पद से हटना पड़ा। 2013 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कांडा के खिलाफ यौन शोषण के आरोप हटा दिए और उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। 2016 में कांडा बंधुओं पर सिरसा में अवैध रूप से एक संपत्ति बनाने का आरोप लगा, इस मामले की 2009 से जांच चल रही है।
कांडा और उनकी सहयोगी अरुणा चड्ढा को तलब करने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को दिल्ली की एक अदालत ने 2020 में यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि पूरी रिकॉर्ड फ़ाइल में “याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई किसी भी धमकी के संबंध में एक भी शिकायत या रिपोर्ट नहीं है।”