Parliament Security Rules: संसद की सुरक्षा में सेंधमारी के बाद लोकसभा में फिलहाल ‘दर्शकों’ के लिए पास जारी करने पर रोक लगा दी गई है। बुधवार (13 दिसंबर) को दो लोगों ने एक-एक कर दर्शक दीर्घा से लोकसभा में छलांग लगाई और कलर स्मोक से धुआं-धुआं कर दिया था। दोनों ने दर्शक दीर्घा तक पहुंचने के लिए मैसूर के भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा के अनुरोध पर जारी किए गए पास का इस्तेमाल किया था। लोकसभा के भीतर सांसदों ने एक आरोपी की पिटाई भी की। घटना के बाद सुरक्षा संबंधी चूक को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह भी सवाल उठ रहा है कि धुआं करने वाला डब्बा (स्मोक कनस्तर) लेकर आरोपी कैसे अंदर चले गए? सांसदों द्वारा दर्शक दीर्घा के लिए पास जारी करने से संबंधित सवाल भी उठ रहे हैं। तो सबसे पहले जानते हैं, ‘विजिटर्स’ के लिए पास बनाने की प्रक्रिया क्या है?
कौन किसके लिए जारी करवा सकता है पास?
एमएन कौल और एसएल शकधर द्वारा लिखित “Practice and Procedure of Parliament” के अनुसार, “कोई सांसद केवल उन लोगों के लिए विजिटर्स कार्ड जारी करने के लिए आवेदन कर सकता है जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।”
विज़िटर कार्ड के लिए आवेदन करने वाले सदस्यों को एक प्रमाणपत्र देना भी अनिवार्य होता है, जिसमें उन्हें बताना होता है कि “नामित आगंतुक मेरा रिश्तेदार है/व्यक्तिगत मित्र है/व्यक्तिगत रूप से मेरा जानने वाला है और मैं उसके लिए पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूं।” सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, आगंतुकों का एक फोटो पहचान पत्र ले जाना अनिवार्य होता है।
नियमों के मुताबिक, विजिटर्स को पास के लिए अपना पूरा नाम बताना पड़ता है। साथ ही पिता या पति का भी पूरा नाम दिया जाना अनिवार्य होता है। पब्लिक गैलरी के लिए एंट्री पास Centralised Pass Issue Cell (CPIC) द्वारा जारी किया जाता है। जिस दिन का पास चाहिए होता, उससे एक दिन पहले शाम चार बजे तक CPIC में रिक्वेस्ट डालना होता है।
क्या है प्रवेश की प्रक्रिया?
सांसद की सिफारिश पर संसद या संसदीय कार्यवाही देखने के लिए जिस व्यक्ति के नाम पास जारी किया जाता है, उसे लोकसभा की दर्शक दीर्घा यानी विजिटर्स गैलरी तक पहुंचने के लिए तीन लेयर की चेकिंग से गुजरना पड़ता है:
पहला लेयर- संसद परिसर में घुसने से पहले ही विजिटर्स की जांच होती है। आगंतुक परिसर के अंदर कुछ भी नहीं ले जा सकते। फोन, नोटबुक आदि बाहर ही जमा कर लिया जाता है, केवल आईडी और विजिटर्स पास के साथ अंदर जाना होता है। अंदर घुसने से पहले विजिटर्स की अच्छे से तालीश ली जाती है और मेटल डिटेक्टर से गुजारा जाता है।
दूसरा लेयर- पहले सिक्योरिटी चेक से करीब 200-250 कदम दूर आगंतुकों की फिर से तलाशी ली जाती है। विजिटर्स के पास की जांच की जाती है। इसके बाद सुरक्षाकर्मी उन्हें अंदर जाने देते हैं।
तीसरा लेयर- यह सुनिश्चित करने के लिए कि विजिटर्स पेन कैप या टिशू पेपर जैसी कोई छोटी चीज भी लेकर न चले जाएं, एक और राउंड स्कैनिंग की जाती है। आईडी और पास के अलावा जो भी मिलता है, हटा दिया जाता है। ऐसी कोई भी चीज जिसे अंदर फेंका नहीं जा सकता, उसे अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है।
तीन लेयर की जांच के बाद, संसद की सुरक्षा में लगे कर्मी विजिटर्स को दर्शक दीर्घा के अंदर लेकर जाते हैं। लोकसभा में प्रत्येक दर्शक दीर्घा में सात पंक्तियां हैं। सबसे आगे की पंक्ति सांसदों के बैैठने की जगह से साढ़े 10 फीट ऊपर है। प्रत्येक दर्शक दीर्घा में पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विसेज के दो लोग तैनात होते हैं। जैसा कि पहले बताया आगंतुकों और प्रेस सहित कुल छह दर्शक दीर्घाएं हैं।
सदन के पटल पर वॉच एंड वार्ड के साथ-साथ लॉबी में सुरक्षाकर्मी भी होते हैं। जरूरत पड़ने पर मार्शल को भी बुलाया जाता है। लोकसभा में सीटों की 12 पंक्तियां हैं। स्पीकर के दाईं ओर ट्रेजरी बेंच (सत्ताधारी सांसदों के लिए) और बाईं ओर विपक्ष के बैठने की व्यवस्था है।
स्पीकर के पास है पूरी पावर
संसद की ई-लाइब्रेरी पर एक किताब उपलब्ध है। यह नियमों की किताब है। किताब का शीर्षक ‘Rules of Procedure and Conduct of Business in the Lok Sabha’ है। इस किताब के नियम नंबर 386, 387 और 387A से लोकसभा में आगंतुकों/बाहरी व्यक्तियों का अंदर जाना, बाहर निकलना और निकाल दिया जाना तय होता है।

संसद का वह क्षेत्र जो केवल सांसदों के लिए आरक्षित नहीं है, वहां पर अजनबियों का आना-जाना स्पीकर के आदेश से तय होता है। नियम मुताबिक, स्पीकर के आदेश से विजिटर्स को संसद के किसी भी क्षेत्र से बाहर निकाला जा सकता है। सदन की गरिमा के विपरीत आचरण करने वालों को हिरासत में भी लिया जा सकता है।
कहां हुई चूक?
नियमों के तहत दर्शक दीर्घा में सुरक्षा कर्मचारियों को निगरानी रखनी होती है। साथ ही यह सुनिश्चित करना होता है कि आगंतुक किसी तरह का दुर्व्यवहार न करें या सदन की गरिमा के विपरीत आचरण न करें।
पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विसेज और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने द इंडियन एक्सप्रेस को उन कारणों के बारे में बताया है, जिससे 13 दिसंबर की घटना को अंजाम दिया जा सका। वे कारण हैं- सुरक्षा कर्मचारियों की कमी, नए संसद भवन में सदन के फर्श से दर्शक दीर्घा तक की ऊंचाई का कम होना, आगंतुकों की संख्या में वृद्धि और जूतों की जांच ना किया जाना।
सांसद जहां बैठते हैं उसके ऊपर ठीक छह गैलरी हैं। सबसे आगे की गैलरी की ऊंचाई फर्श से महज साढ़े 10 फिट है। अधिकारियों ने कहा, “यह ऊंचाई पहले के संसद भवन की तुलना में कम है। इस कम ऊंचाई के कारण ही दोनों शख्स सदन में कूद पाए।” घटना के बाद लोकसभा अध्यक्ष और विभिन्न सदनों के नेताओं की बैठक में दर्शक दीर्घाओं के सामने शीशा लगाने का सुझाव दिया गया है।
पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विसेज में शामिल सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस के कर्मियों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्हें हर दिन सैकड़ों विजिटर्स की जांच करनी पड़ रही है, जबकि कर्मचारियों की संख्या सीमित है। बता दें कि नई संसद भवन में कार्यवाही चलने के बाद से उसे देखने आने वालों की संख्या बढ़ी है।
सूत्रों ने बताया कि संसद के अंदर आमतौर पर 301 सुरक्षा अधिकारी तैनात रहते हैं, लेकिन बुधवार को 176 सुरक्षा अधिकारी मौजूद थे। एक अधिकारी ने कहा, “हमारे पास छात्र और अन्य लोग बसों में भरकर आ रहे हैं… हमें हर किसी के पास और आईडी की जांच करनी होती है।”
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि दोनों व्यक्तियों ने अपने जूतों के अंदर रंगीन धुएं के डिब्बे छिपा रखे थे, जिनकी आमतौर पर जांच नहीं की जाती है। वह कहते हैं “हमारे पास स्कैनर और मेटल डिटेक्टर हैं। सभी प्वाइंटों पर तलाशी भी ली गई। हालांकि, हम आम तौर पर जूतों की जांच नहीं करते हैं… प्रथम दृष्टया स्मोक क्रैकर्स प्लास्टिक से बने प्रतीत होते हैं, इसलिए वह मशीनों की पकड़ में नहीं आए।”